कोरोना की महामारी काल में पिछले 45 दिनों से प्रवासी मज़दूरों का पलायन जारी है । हर दर्द से बेअसर ये बस चले जा रहे हैं । अंतहीन ये कंक्रीट रास्ते अपनी मंज़िल यानी गांव पहुँचने का सुखद अहसास दे रही हैं । एक सरकार ने इन्हें बॉर्डर तक बस से उतार दिया और दूसरी सरकारें इन्हें घर तक पहुँचने के लिए बस नहीं दे रहीं । लेकिन ये पाओं में पड़े मोटे मोटे छालों की परवाह किये बिना पैदल ही अपने गाँव की तरफ चले जा रहें है । क्या करें कोरोना की वजह से लॉक डाउन जो हैं । बंद कमरे में पड़ी सरकारें देश की रीढ़ इन मज़दूर वर्ग को सुविधा नहीं दे सकती । हर चीज बंद है । शहर रुका हुआ है, बस ये चलें जा रहें हैं ।हालांकि पिछले सप्ताह से सरकार काफी जद्दोजहद के बाद श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई है । मगर सरकार ने इनका दर्द समझने में देर कर दी । अब वक्त कहाँ है और न ही वो संयम अब रह गया । बस जल्दी पहुँचना हैं । ये मनःस्थिति हर राज्य से लौट रहे बिहार ,यूपी के लगभग सभी मज़दूरों की है । जिस शहर को कर्मभूमि मान कर 2-3 दशक से ज्यादा उसके विकास में दे दिया । प्रवासी हो कर भी जिसे अपना समझा और संजो कर रखा । आज उसी राज्य , उसी शहर ने बेगाना कर दिया । हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए बदहवास हाल में कई मंज़िल तक पहुँचे , और कइयों के मंज़िल हमेशा के लिए खो गए । नहीं पहुँच पाए हमारे बिहारी भाई , मेरे मज़दूर भी अपने गाँव। दिल्ली और पंजाब जिसके इफ्रास्ट्रक्चर की ये रीढ़ थे , जरूरत के समय में इन्हें बेगाना कर दिया और बिहार जिससे इनकी जड़ें जुड़ी हुई थीं उसने अपनाने से मना कर दिया और ये लोग बीच रास्ते में ही मौत के सिरहाने हो लिए ।
मत दो हमें “बस” हम तो बस मंज़िल तक पहुँच कर ही लेंगे दम ।
गुरुवार को फिर हमारे 16 से 20 प्रवासी मज़दूर मर गए । ना-ना, ना कोरोना वायरस ने उनकी जान नही ली । उनकी जान तो खराब प्रशासनिक व्यवस्था ने ली । जिसके पास आपदा से लड़ने के लिए सारी प्लानिंग तो थी मगर इनके लिए कोई प्लानिंग नहीं थी।
इतिहास अगर केजरीवाल और बाकी राज्यों और केंद्र सरकार को माफ नहीं करेगा तो माफ तो बिहार के नीतीश बाबू को भी नहीं करेगा ।
आप खुद ही सोचिए ये बिखरे बिस्किट के पैकेट, पॉलीथिन में पूड़ियां, बिखरी हुई चप्पलें..। यह सब बताने के लिए काफी था कि बुधवार की देर रात यहां मुजफ्फरनगर में मौत ने इन गरीबों पर तांडव रचा था । नहीं थीं तो वे लाशें, जो कुछ देर पहले लाशें नहीं थीं। घर पहुंचने की धुन में खोये इंसान थे। किसी को नहीं मालूम था, कि उसी जैसा इनसान, उनकी जिंदगी की सांसों की डोर खींच देगा। एक बस अपनी मस्ती में आई और इन्हें कुचल गई । सड़क प्रवासी मजदूरों की लाशों से बिछ गई। ये थे तो 40 मगर गिने गए सिर्फ छह थे।
इसी तरह एमपी के गुना में हुए हादसे में आठ की मौत हो गई। बिहार के समस्तीपुर में मजदूरों को ले जा रही बस और ट्रक में दो की मौत हो गई।
लेकिन ये महज संख्या नहीं। देश को गढ़ने वालों की नियति की क्रूर कहानी है। लॉकडाउन में जिंदगी अनिश्चितता के भंवर में फंसी तो वही घर याद आया, जिसे कभी ये सोचकर त्याग दिया था कि तेरी जमीन तो है, पर छाजन छीज गई। यानी यहां जिंदगी नहीं है। आसमान की ओर देखने वाले शहर आ गए कि काम करेंगे तो पेट भरेगा। जीवन चलने लगा, गांव को भुला दिया। लेकिन कोरोना के कहर से उपजी भूख ने जिंदगी की फिर सुध ली। उसी त्याज्य घर को गले लगाने दौड़े और बीच रास्ते मौत के गले लग गए। जिंदगी कहीं की न रही। लेकिन जो मजदूर गांव लौट रहा है, उसे अब फिर शहर लौटने को लेकर सोचना पड़ेगा। उसे अपने दर पे ही चादर बिछानी होगी। कहीं और दामन फैलाने का लाभ क्या। सरकारों की आंखें खुल जानी चाहिए कि पैसे खर्च हो रहे हैं तो दान की शक्ल में न हों। उसी से गांव में रोजगार खड़ा हो। परदेश की अट्टालिकाएं बनाने वाले खुद बेघर और जमीन पर खड़े हैं। कोरोना का सबसे बड़ा सबक यही होगा कि गांवों में विकास की इमारतें बनें। इस वक़्त मजबूरी में लोग गांव को गुलजार किये बैठे हैं। लेकिन यही खुशी से हो तो कैसा रहेगा। इसके लिए ग्रामीण इलाकों में रोजगार बढ़ाने का यही वक़्त है।
जहां तक मुजफ्फनगर के हादसे का सवाल है तो छह ने अपनी जान खो दी, क्योंकि बस चालक ने उन पर बेरहमी से वहां चढ़ा दी थी। छह की मौत हो गई जबकि चार घायल हो है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। हाइवे पर हुआ हादसा बेहद दर्दनाक था। बिहार में गोपालगंज जिले के निवासी कई मजदूर पंजाब में मजदूरी करते हैं। लॉकडाउन में वहीं। फंसे रह गए। वक्त ज्यादा बीता तो पैदल ही सफर करना तय किया। आखिर अपनी मंजिल पर निकल पड़े। पंजाब से सहारनपुर-मुजफ्फरनगर के रास्ते वह पैदल आगे बढ़ रहे थे। रोहाना टोल प्लाजा पर मजदूरों पर मौत ने झपट्टा मार दिया। काल बनकर आई रोडवेज बस ने 6 मजदूरों के परखचे उड़ा दिए।
मप्र के गुना में बस और ट्रक की टक्कर में आठ मजदूरों की मौत हो गई और 40 घायल हो गए। ये सभी महाराष्ट्र (Maharashtra) से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) आ रहे थे। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
बिहार के समस्तीपुर के पास प्रवासी मजदूरों की बस, ट्रक से टकरा गई। यह हादसा भी देर रात हुआ। इसमें दो लोग मारे गए और 12 जख्मी हो गए। बस मुजफ्फरपुर से कटिहार जा रही थी। बस में 32 मजदूर सवार थे।