विश्व पर्यावरण दिवस लें कुछ नए संकल्प-संजय स्वामी

Pic Anita Choudhary
संजय स्वामी प्रवक्ता राजनीति विज्ञान राष्ट्रीय संयोजक (पर्यावरण)  शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास

ये दुनिया पीतल दी नहीं, हम सब की है। ईश्वर की व्यवस्थाएं नियम बंद है, नैसर्गिक है, निरंतर गतिशील हैं। निर्बाध चल रही हैं। परंतु मानव अपनी जिम्मेदारी के प्रति बेहद लापरवाह है। ब्रह्मांड का सर्वश्रेष्ठ प्राणी अपने क्रियाकलापों से पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है। विविध प्रकार का प्रदूषण फैला रहा है। अधिकाधिक कूड़े कचरे का उत्पादन कर गंदगी के पहाड़ निर्मित कर रहा है। कचरा उत्सर्जन में योगदान स्वयं का है और प्रबंधन का दोष दूसरों के सिर मढ़ रहा है। सरकार ने नगरों- महानगरों के कचरे के निस्तारण का पुनीत कार्य सरकारी एजेंसियों को सौंप, व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी स्वयं ले कर नागरिकों को लापरवाह बना दिया है।

साक्षरता की दर तो आंकड़ों में काफी बढ़ गई है परंतु शिक्षित कितने हुए ? अनपढ़ों की तुलना में पढे- लिखो के कारण पर्यावरण अधिक प्रदूषित हो रहा है। अनपढ़ तो आज भी सड़क पर झाड़ू लगा, कचरा बुहार रहा है। मैला ढो शहर को साफ स्वच्छ बनाने में अपना योगदान दे रहा है।आपके घरों से कचरा बीन स्वावलंबन का मंत्र चरितार्थ कर रहा है। आपकी कारों को प्रतिदिन सुबह कपड़ा से झाड़ रहा है। कम पानी में आपके वाहनों की धुलाई सफाई कर रहा है। परंतु पढ़ा लिखा तो मोटर पंप चला पाइप से हजारों लीटर पानी कुछ ही मिनटों में बहाकर अपनी कार-बाइक की धुलाई करता है। अब आप ही निर्णय कीजिए की वास्तव में पढ़ा लिखा समझदार कौन है?

पूरे विश्व में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में अब पर्यावरणविदों, पर्यावरण प्रेमियों के साथ-साथ शिक्षक, विद्यार्थी तथा आम जन भी मनाने लगे हैं। सरकारें भी अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करती हैं। धीरे-धीरे पर्यावरण व प्रकृति के संरक्षण के प्रति एक सकारात्मक समझ विकसित होने लगी है। पिछले कई दशकों तक जिस प्रकार मानव ने अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाते हुए प्रकृति प्रदत्त चीजों का अधिकाधिक दोहन किया जिसका परिणाम यह हुआ, प्राकृतिक संसाधन धीरे धीरे सिमटने लगे। कृषि तथा उद्योगों के लिए अंधाधुंध जंगलों को काटा गया। जनसंख्या के साथ साथ मनुष्य की आवश्यकताएं बढ़ी। परिणाम भवन निर्माण, फर्नीचर, शहरीकरण, राजमार्ग – महामार्गों आदि के लिए अधिकाधिक वृक्षों का कटान हुआ।

इसी प्रकार जनसंख्या बढ़ने के कारण जल की अधिकाधिक आवश्यकता होने लगी। जल की आवश्यकता मात्र पीने भर के लिए या दैनिक क्रियाओं हेतु ही नहीं अपितु भवन निर्माण, उद्योगों, कृषि आदि के लिए बहुत अधिक मात्रा में जल का व्यय होता है। विडंबना मानव ने आवश्यकता का तो ध्यान दिया परंतु नदियों, तालाबों, झीलों के संरक्षण की भारतीय परंपरा को भूल गया तथा औद्योगिक दूषित जल को जीवन दायिनी नदियों, झीलों में निस्तारित करने का अविवेकी कर्म किया!! नासमझी का परिणाम यह हुआ कि दो प्रकार से जल के स्रोत संकटग्रस्त होने लगे. प्रथम जल के अधिकाधिक दोहन से स्रोत कुएं, तालाब, नदियां सूखने लगे, द्वितीय जल के प्रदूषित होने से। वैज्ञानिकों का अनुमान तथा समाज के लिए चेतावनी है कि अगले कुछ वर्षों के लिए ही जल बचा है।

जल के सीमा से अधिक प्रदूषित होने के कारण जलीय जीव व वनस्पति भी संकट में आ गए हैं। उनका अस्तित्व खतरे में है। पर्यावरणविदों का अनुमान है की नदियों में कचरा बहाने से सागर, महासागर भी प्रदूषित होते जा रहे हैं। समुद्र के एक वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में लगभग बयालीस हजार पॉलिथीन तैरती हैं।पर्यटकों की अज्ञानता से कचरा बढ़ता जा रहा है। जल-कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतलें, डब्बे, ठोस कचरा समुद्र की सतह पर जमा होता जा रहा है। यही स्थिति रही तो अगले कुछ वर्षों में समुद्र में मछलियां कम होंगी कचरा अधिक होगा।

पर्यावरण दिवस महज औपचारिकता न बने अपितु कुछ ठोस संकल्पों के साथ हम पर्यावरण दिवस, पर्यावरण सप्ताह, पखवाड़ा मनाएँ। वृक्षारोपण करें तथा वर्ष भर उनकी देखभाल का भी संकल्प लें। जीरो वेस्ट तकनीकी की ओर बढ़ें। आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ तो ऑक्सीजन, जल, प्राकृतिक संसाधन छोड़ कर जाएं। धरा को जीवन दें।यह वसुंधरा हम सभी की माँ है। इसे सजाने संवारने का कार्य प्रकृति व पर्यावरण के घटक नदियां,पहाड़,वर्षा-वसंत ऋतु बदलते मौसम तो करते ही हैं।सच में इस पृथ्वी को प्राकृतिक स्वर्ग बनाने में हम भी अपना अपना योगदान दें।

 

 

 

Advertise with us