वो जब याद आये ,बहुत याद आये -असद भोपाली

सुधांशु टॉक
उर्दू अदब और फ़िल्म की दुनिया में असद भोपाली ऐसे बदक़िस्मत शायर-गीतकार हैं, जिन्हें अपने काम के मुताबिक वह शोहरत, मान-सम्मान और मुकाम हासिल नहीं हुआ, जिसके कि वे हक़दार थे. 1949 से लेकर 1990 तक अपने चार दशक के लंबे फ़िल्मी कॅरिअर में उन्होंने तक़रीबन चार सौ फ़िल्मों में दो हज़ार से ज्यादा गीत लिखे. जिसमें कि कई गीतों ने लोकप्रियता के नए सोपान छुए और आज भी रेडियो या टेलीविज़न पर जब उनके गाने बजते हैं, तो सुनने वाले झूम उठते हैं. असद भोपाली और उनके गीत याद आने लगते हैं.
‘‘असद को तुम नहीं पहचानते ताज्जुब है/ उसे तो शहर का हर शख़्स जानता होगा.’’ 10 जुलाई, 1921 को पुराने भोपाल में पैदा हुए असद भोपाली का हक़ीक़ी नाम असदुल्लाह ख़ां था.
असद भोपाली को अपनी योग्यता के मुक़ाबले फिल्मी दुनिया में काम नहीं मिला. इसकी वजह भी थे. शकील बदायूंनी, शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, साहिर लुधियानवी, मजरूह सुल्तानपुरी, राजेन्द्र कृष्ण, प्रेम धवन, जांनिसार अख़्तर जैसे नग़मानिगार पहले से मौजूद थे. एक बात और थी, हर संगीतकार की किसी न किसी नग़मानिगार के साथ ऐसी ट्यूनिंग थी कि वे अपने मनपसंद के नग़मानिगार के साथ ही काम करना पसंद करते थे. नौशाद-शकील बदायूंनी, एसडी बर्मन और रवि-साहिर लुधियानवी, शंकर जयकिशन-हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र के अलावा दूसरे गीतकारों को कम ही मौक़ा देते थे. ऐसे में असद भोपाली पर कौन तवज्जो देता. लेकिन उनमें एक जिजीविषा थी, जो वे फ़िल्मी दुनिया में डटे रहे.
 
इस बीच उन्हें ‘पारसमणि’ के गीत लिखने का प्रस्ताव मिला. यह एक फेंटेसी फ़िल्म थी. फ़िल्म के संगीत के लिए नए-नए आए संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल को चुना गया था. 1963 में फ़िल्म आई तो न सिर्फ़ इसका गीत-संगीत लोकप्रिय हुआ, बल्कि गानों के ही बदौलत फ़िल्म भी सुपर-डुपर हिट हुई. फ़िल्म के सभी गाने आज भी लोगों की ज़बान और यादों में ज़िंदा हैं. ख़ासतौर से ‘हँसता हुआ नूरानी चेहरा…’ और ‘वो जब याद आए, बहुत याद आए…’. ‘पारसमणि’ के बाद 1965 में आई फ़िल्म ‘हम सब उस्ताद है’ में भी लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल और असद भोपाली की जोड़ी ने कामयाबी का यही क़िस्सा दोहराया. इस फ़िल्म के भी सभी गाने पसंद किए गए. ‘अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो’, ‘प्यार बांटते चलो..’, ‘सुनो जाना सुनो जाना..’ जैसे गीतों ने संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और गीतकार असद भोपाली का नाम देश के घर-घर तक पहुंचा दिया. फ़िल्मी दुनिया ने भी अब असद भोपाली को नज़रअंदाज करना छोड़ दिया.
बाद में असद भोपाली ने अपने समय के प्रमुख संगीत निर्देशकों के साथ काम किया – पुराने भी और नए भी. नए संगीतकारों से उनकी बहुत अच्छी ट्यूनिंग बैठती थी. छोटे बजट और नए-नवेले अदाकारों के साथ आई फिल्मों में भी उन्होंने शानदार गीत लिखे. असद भोपाली की ख़ुद्दारी उन्हें निर्माता-निर्देशकों के घर जाकर उनसे काम मांगने से रोकती थी. उनका ज़मीर गवारा नहीं करता था कि वे उनसे अपने लिए काम की दरख़्वास्त करें. यही वजह है कि इतने सदाबहार गाने देने के बाद भी उनके कॅरिअर में उतार-चढ़ाव आते रहे. अपने और अपने परिवार की ख़ातिर, उन्हें जो काम मिला उसे पूरा किया. बस इस बात का ख्याल रखा कि कभी अपने गीतों का मेयार नहीं गिरने दिया. यही वजह है कि उनके कई सुपरहिट गीत उन फ़िल्मों के हैं, जो बॉक्स ऑफिस पर नाकामयाब रहीं. फ़िल्म भले ही नहीं चली, लेकिन उनके गाने खूब लोकप्रिय हुए.
कुछ फ़िल्मी दुनिया की मसरूफियत, कुछ मिज़ाज का फक्कड़पन जिसकी वजह से असद भोपाली अपने अदब को किताबों के तौर पर दुनिया के सामने नहीं ला पाए.
उनकी लिखी सैकड़ों नज़्में और ग़ज़लें जिस डायरी में थी, वो डायरी भी बरसात की नज़र हो गई. इस वाक़ये का जिक़्र उनके बेटे ग़ालिब असद भोपाली जो ख़ुद फ़िल्मी दुनिया से जुड़े हुए हैं, ने अपने एक इंटरव्यू में इस तरह से किया है,‘‘उन दिनों हम मुंबई में नालासोपारा के जिस घर में रहा करते थे, वह पहाड़ी के तल पर था. वहाँ मामूली बारिश में भी बाढ़ के से हालात पैदा हो जाते थे. ऐसी ही एक बाढ़, उनकी सारी ‘ग़ालिबी’ यानी ग़ज़ल, नज़्म आदि बहा ले गयी. तब उनकी प्रतिक्रिया, मुझे आज भी याद है. उन्होंने कहा था, ‘‘जो मैं बेच सकता था, मैं बेच चुका था, और जो बिक ही नहीं पाई वो वैसे भी किसी काम की नहीं थी.’’
एक शायर का अपने अदब और दुनिया का उसके जानिब रवैये को, उन्होंने सिर्फ़ एक लाइन में ही बयान कर दिया था. ज़िंदगी के बारे में ऐसा फ़लसफ़ा रखने वाले इस भोपाली शायर और नग़मानिगार का 9 जून, 1990 को इंतिकाल हो गया. जिस साल उनका इंतिकाल हुआ, उसी साल उनकी फ़िल्म ‘मैंने प्यार किया’ सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई. जो बॉक्स ऑफिस पर सुपर-डुपर हिट रही और इस फ़िल्म के गीत ‘कबूतर जा जा जा…’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफेयर अवार्ड भी मिला. फ़िल्मों में एक लंबी मुद्दत गुज़ार देने के बाद, असद भोपाली को अपनी ज़िंदगी के आख़िरी वक्त में यह अवार्ड हासिल हुआ.
असद भोपाली साहब की जन्म जयंती पर उनकी पुनीत आत्मा को शत शत नमन। सुनिये उनका लिखा यह सुपरहिट गीत फ़िल्म “पारसमणी” से। संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल । आवाजें मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर की
असद भोपाली अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे जब याद आते हैं, तो बहुत याद आते हैं….नमन

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