आधुनिकता की अंधी दौड़ में परिवार ही एकमात्र सहारा- सुनीता शर्मा

सुनीता शर्मा

वसुधैव कुटुंबकम् – जी-20 का यह ध्येय वाक्य है कि पूरा विश्व ही एक सूत्र में बंधा है और एक परिवार है और हम सभी बंधु बांधव लेकिन वर्तमान समाज में वसुधैव कुटुंबकम् की भारत में ही अवधारणा तेजी से बदल रही है ।आधुनिकता की इस दौड़ में दूसरों से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा में हम अपनों को ही पीछे छोड़ते जा रहे हैं ।गांवों, देहातों , कस्बों और छोटे शहरों से लगातार पलायन हो रहा है। गांव में परिवार पीढ़ियों से रहते हैं इस कारण पूरा गांव ही एक दूसरे को वर्षों से जानता है ।आज भी कमोबेश गांवों में यही स्थिति है। गांव और छोटे शहरों में भी पूरा मोहल्ला घर हुआ करता था। बचपन में जहां पूरा मोहल्ला, कॉलोनी पड़ोसी परिवार के दायरे में आते थे। हमारे घरों की दीवारें केवल घर तक सीमित न होकर पूरे मोहल्ले तक फैली थीं इस कारण पूरे मोहल्ले में कहीं किसी के घर जाने की कोई पाबंदी नहीं थी क्योंकि वह घर भी तो परिवार का हिस्सा ही थे ।यहां तक कि पड़ोस के घर में अगर कढ़ी चावल, छोले चावल, राजमा चावल बने हैं और अपने घर में घीया , तोरी तो क्या मजाल है हम यह तोरी, घीया खाएंगे ।पड़ोस की ताई जी के घर से हम बच्चों के लिए भी कढ़ी चावल तो आएंगे ही । ऐसे माहौल में परिवार के बच्चे सुरक्षित और आत्मविश्वासी ही बनेंगे ।इसका साक्षात् उदाहरण आज के 40- 50 वर्ष की आयु के लोग हैं जिन्होंने उस पड़ोसी धर्म को जिया है और पड़ोस कल्चर उनके खून में हैं ।यह रिश्ते चाहे पड़ोसी के थे लेकिन शाश्वत थे। मुझे याद है मेरे शहर कैथल में मेरे पड़ोस में चमन लाल ताऊ जी का घर था। उनके 4 पुत्र ,पुत्री ,बहुएं पोतों से भरा- पूरा परिवार। बड़ी सी डाइनिंग टेबल पर सभी जब भोजन करते तो दिन- भर के खट्टे -मीठे अनुभव सांझा होते । रचना भाभी जी, उषा भाभी जी को देख कर तो लगता था कि कितने प्यार और खुशी के साथ वे सबके लिए खाना बनातीं और भोजन परोसती थीं। मैं मान सकती हूं कि उस परिवार में सबसे बड़ी जिम्मेदारी ताई जी ने निभाई थी जिन्होंने अपने बच्चों को स्नेह के बंधन से बांधा था और आज भी यह परिवार मेरे शहर के लिए ,मेरे मोहल्ले के लिए एक आदर्श परिवार है।
फैशन, विकास की इस अंधी दौड़ में हम अपनों से ही दूर होकर जिंदगी को खुद जीने के दबाव में महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं ।धीरे-धीरे हमारे गांव ,देहात, छोटे शहर हमसे दूर होते जा रहे हैं। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में हमने अपने आप को संकुचित, निस्सहाय और असुरक्षित बना लिया है और इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में शायद जीना छोड़कर मृगतृष्णा के पीछे भाग रहे हैं लेकिन आज भी महानगरों में ऐसे भी परिवार मिल जाएंगे जो अभी भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं ।परिवार में चार पीढ़ियां तक एक साथ रह रही हैं वह भी पूरे मान सम्मान के साथ।
पटना के शरद खेतान की बात करूं तो उनके अपनी माताजी, पत्नी व बच्चों के साथ बहुत ही आत्मीय संबंध हैं।ये संबंध ऐसे हैं कि उनकी पुत्रवधू का यह कहना कि पापा ससुर बहुत कम और पापा अधिक हैं। हमारी सास मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली और दादी साथ खूब लाड लड़ाने वाली है।
दिल्ली के रविंद्र बंसल परिवार की तो बात ही निराली है उनकी माता जी का भी कुछ समय पहले ही देहांत हुआ है ।उनके परिवार में उनकी माताजी, पत्नी कमलेश 3 पुत्र ,3 पुत्र वधुएं, पोते- पोतियां एक छत के नीचे आधुनिकता, विकास की इस दौड़ में एक दूसरे का हाथ थामें मजबूती से झंझावात का मुकाबला कर रहे हैं। घर की बड़ी कमलेश जी से जब मैंने संयुक्त परिवार के विषय में बात की तो उन्होंने कहा कि पढ़े-लिखे बच्चे भी बड़ों के साथ का महत्व समझते हैं ।कम खोना, पाना बहुत ज्यादा। बच्चे बेफिक्र होकर अपने काम पर जाते हैं। छोटे बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं। बहुए कामकाजी हैं तब भी जितना सहयोग हो उससे ज्यादा करती हैं नौकरी के बावजूद भी । मैं एक बात बहुत अच्छी तरह से महसूस करती हूं कि मेरी लड़की को ससुराल जाकर जो सुविधा मिले वही मुझे मेरी बहू को भी देनी है । केवल मेरा ही योगदान नहीं है इस परिवार को संभाल कर रखने में, बच्चों ने भी अपनी तरफ से पूरा सहयोग दिया है। सभी मिलकर प्रयास कर रहे हैं तभी संयुक्त परिवार चल रहा है।

मैं एक बात पूरे विश्वास के साथ कहना चाहूंगी कि इन संयुक्त परिवारों के बच्चे, एकल परिवारों में पल रहे बच्चों से ज्यादा आत्मविश्वासी , संयमी ,कुशाग्र व शांत स्वभाव के अपनी जड़ों से जुड़े हैं तथा समाज सेवा के कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। ऐसे परिवारों में मुख्यतः तलाक की स्थिति बहुत ही कम देखने को मिलती है।
विकसित देशों में परिवार विघटन का प्रतिशत बहुत अधिक है। अगर हम विकसित अमेरिका की बात करें तो वहां तलाक का प्रतिशत 41% है जबकि हिंदुस्तान में है केवल 1% ।
एक बात और शोध से सामने आई है कि ऐसे बच्चे जिनके पेरेंट्स सिंगल पैरंट है वहां पर बच्चों के अंदर क्राइम, ड्रग्स, किशोरावस्था में गर्भपात की समस्याएं अत्यधिक हैं। परिवार में पिता सुरक्षा देता है वह बच्चों का आदर्श होता है। अगर दोनों मां-बाप व परिवार साथ है तो बच्चों की परवरिश बहुत बेहतर होती है और ऐसे में बूढ़े माता-पिता को भी सुरक्षा का एहसास होता है । हमारे पड़ोस में, हमारे परिवार में हम कितने लोगों को जानते हैं ,कितने लोग हमारे मुश्किल समय में हमारा साथ देंगा यह विचार मनुष्य में आत्मविश्वास की वृद्धि करता है।
भारत के परिवारों में तलाक के केस कम ही देखने को मिलते हैं । इसके पीछे का कारण यही है कि हम अभी भी अपने परिवारों से, माता-पिता से जुड़े हुए हैं जो हमें सही और गलत निर्णय में हमारी सहायता करते हैं। आधुनिकता के इस दौर में हम अपने परिवारों से दूर महानगरों की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे अपनों पर भी भरोसा नहीं कर पाते यहां तक कि अगर माता-पिता दोनों कामकाजी हैं जो कि महानगरों में रहने के लिए बाध्यता (आवश्यक) भी है क्योंकि इसके बगैर बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाना ,उनके सपनों को पूरा करना संभव नहीं है। वे घर से निकलते हुए सबसे पहले बच्चों को यही हिदायत देते हैं कि किसी भी परिचित, अपरिचित व्यक्ति के लिए घर के दरवाजे नहीं खोलने हैं ।अपरिचित की तो बात समझ में आती है परिचित के लिए भी नहीं क्योंकि महानगरों की इस दौड़ ने हमें अपनों से ही दूर कर दिया है ।अविश्वास की ऐसी खाई पैदा कर दी है जिसको पाटना संभव नहीं है ।अभी भी समय है अगर इस खाई को हमने नहीं पाटा, आपसी भरोसे को जिंदा नहीं रखा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे बच्चें हमसे दूर हो जाएंगे।महानगरों में फ्लैट कल्चर ने इतना प्रभाव डाल दिया है कि लोग पड़ोसियों से, परिवार के लोगों से जुड़ ही नहीं पाते, ना ही आत्मीय संबंध बन पाते हैं। बच्चे सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों के साथ और पूरी दुनिया के साथ बात करते हैं लेकिन अपने ही परिवार में माता-पिता ,भाई-बहन और कजिन इनसे दूर होते जा रहे हैं।
मुश्किल और तनाव के समय में ये बच्चे तब दूसरों से अपने सुख दुख को बांटने के लिए भी तैयार नहीं होंगे ।भरे पूरे परिवार समस्या नहीं आशीर्वाद हैं। संयुक्त परिवार उस वट वृक्ष की छांव के समान हैं जो मनुष्य को जिम्मेदार व सफल बनाने में, उसे परेशानी से लड़ने में ताकत देता है तथा सकारात्मक सोच का भाव पैदा करता है जो मनुष्य के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। अपने बड़ों का साथ दें, सहारा बनें और अपने बच्चों को एक सुरक्षित बचपन दें। पूरे संसार में भारत के संयुक्त परिवारों का जो उदाहरण दिया जाता है उसे भारत में भी अब हमें संभाल कर रखना होगा तभी वसुधैव कुटुंबकम् का जो सपना हमारे ऋषि-मुनियों ने देखा था वह पूर्ण होगा।

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