बिहार विधानसभा चुनाव में राजनैतिक दलों का प्रचार जोरों पर है। 28 अक्टूबर को पहले चरण का मतदान है, इसी बीच सारे दलों ने अपना-अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है। सत्ताधारी दल जदयू ने जहां अपने घोषणा पत्र/संकल्प पत्र में सात निश्चय-2 लागू करने का वादा किया है वहीं मुख्य विपक्षी दल राजद ने कई लोक।लुभावनी वादों को घोषणा पत्र में शामिल किया है। कांग्रेस ने भी राजद की तर्ज पर ही अपने घोषणा पत्र को लुभावना बनाया है। राजद और कांग्रेस जहां 10 लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा कर रही है वहीं भाजपा 19 लाख लोगों को रोजगार देने की बात कह रही है। लोजपा ने भी अपने घोषणा पत्र में बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट का नारा दिया है।
एक तरफ जहां घोषणाएं/वादे की रेलमरेल है वहीं दूसरी तरफ कई चैनलों ने अपने ओपिनियन पोल जारी किए हैं, चैनलों के ओपिनियन पोल में जहां बिहार में फिर से एनडीए की सरकार बना रही है वहीं महागठबंधन को सौ से भी कम सीटों पर संघर्ष करता नजर आ रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर अभी भी नीतीश कुमार 31% के साथ पहले नम्बर की पसंद बन रहे हैं पर तेजस्वी यादव 27% जनता की पसन्द के तौर पर नीतीश से मात्र 4% ही पीछे चल रहे हैं। चिराग पासवान को बतौर मुख्यमंत्री सिर्फ 5% लोग और सुशील मोदी को बतौर मुख्यमंत्री सिर्फ 4% लोग देखना चाहते हैं।
ओपिनियन पोल के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 15 वर्षों के शासन के बाद लोग नीतीश कुमार से थोड़े नाराज तो हैं पर अभी भी बतौर मुख्यमंत्री लोगों की पहली पसन्द वही हैं।
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में कई क्षेत्रों में अच्छा काम हुआ है, हालांकि कई क्षेत्र अभी भी बदहाली के कगार पर हैं परन्तु बिहार की जनता जब राजद और एनडीए के कार्यकाल की तुलना करेगी तो निश्चित तौर पर नीतीश कुमार के पीछे खुद को खड़ा पाएगी, यही चुनौती अभी तेजस्वी के सामने है, हालांकि तेजस्वी ने अपने माता-पिता के कार्यकाल के लिए माफी मांगी है, टिकट बंटवारे में भी सभी वर्गों का ख्याल रखकर सोशल इंजीनियरिंग पर बल दिया है और पोस्टर्स-बैनर्स से अपने माता-पिता के फोटो को हटाकर एक सन्देश देने की कोशिश की है परंतु ये सन्देश लोगों पर कितना असर डालेगा, यह तो वक्त बताएगा। तेजस्वी की रैलियों में भीड़ जुट रही है, ये भीड़ वोट में कितना बदलेगा यह तो 10 नवम्बर को पता चलेगा।
देश में कोरोना काल के बाद बिहार में पहला चुनाव हो रहा है, चुनाव आयोग ने इसके लिए गाइड लाइन्स जारी किया है परंतु उनका पालन कहीं नहीं हो रहा । चुनाव आयोग के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए चुनाव प्रचार हो रहा है और उसका खामियाजा जनता के साथ साथ नेताओं को भी भुगतना पड़ रहा है, बिहार भाजपा के स्टार प्रचारक और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, स्टार प्रचारक शहनवाज हुसैन और राजीव प्रताप रुढ़ी कोरोना पॉजिटिव होने के बाद आइसोलेट हो गए हैं, वहीं अभी दो दिन पहले राज्य सरकार में मंत्री कपिलदेव कामत की कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गई। बिहार के एक सीनियर आईपीएस अधिकारी, पूर्णिया रेंज के आईजी विनोद कुमार की भी कोरोना से मौत हो गई।
कोरोना के बढ़ते खतरे को चुनाव के कारण इग्नोर किया जा रहा है, चुनाव आयोग के नियमों की व्यापक तौर पर अनदेखी कहीं बिहार को भारी ना पड़ जाए। जरूरत है कि ऐसे संक्रमण काल में चुनाव आयोग सख्ती से काम ले ।