“इंडिया केन डू इट”, तस्वीर का दूसरा पहलु बताती “द वैक्सीन वॉर”

इस धरती पर शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो अपने जीवन में कोरोना काल को याद रखना चाहेगा। पूरा विश्व इस त्रासदी का साक्षी बना ओर अपने अपने स्तर पर उसने ये कष्ट सहा। भारत में भी इस त्रासदी ने आम जन-मानस को हिला कर रख दिया। आज भी अगर उस समय को याद किया जाए तो एक सिरहन सी बदन में दौड़ जाती है। हर तरफ एक खौफनाक मंजर था। अस्पताल, घर, सड़क हर तरफ डर ही डर। ऐसा लग रहा था यमराज के पास कोई ओर काम नहीं है। आम लोगों में जहां एक ओर अपनो को खोने का ग़म था वहीं उसे लग रहा था सरकार क्या कर रही है। सरकार क्या कर रही थी वह अगर जानना है तो हमें देखनी चाहिए, “द वैक्सीन वॉर”। ये फिल्म नहीं है ये एक दस्तावेज है जिसे देश के प्रत्येक नागरिक को देखना चाहिए। इसे देखकर उसे पता चलेगा कि जहां एक ओर सरकार आम नागरिक को बचाने के लिए क्या कर रही थी और ऐसे समय में एक वर्ग ऐसा भी था जो सरकार पर लगातार उंगली उठाकर उसको कटघरे में खड़ा कर रहा था। वो सरकार को नाकारा साबित करके उसके तमाम प्रयासों पर पानी फेर रहा था। “द वैक्सीन वॉर” उन सारे सवालों के जवाब देने के साथ ही उन सारे लोगों को नंगा भी करती है जो उस दौर में भी व्यापार करने से बाज नहीं आ रहे थे। कोरोना टूल किट, लाशों, शमशानों की तस्वीरों की बिक्री, राजनेताओं के बड़बोल ऐसे तमाम छोटें बड़े  पहलुओं को उजागर करने का काम “द वैक्सीन वॉर” बखूबी करती है।

विवेक अग्निहोत्री पिछले कुछ समय से सरोकार से भरा सिनेमा बना रहें हैं। उनकी पिछली फिल्म कश्मीर फाइल्स ने ना केवल आम जनमानस को कश्मीर की त्रासदी से परिचित कराया बल्कि बॉक्स ऑफिस पर भी जिस तरह से इस फिल्म ने प्रदर्शन किया उससे ये भी साबित हुआ कि भारत में अब एक ऐसा दर्शक वर्ग भी तैयार हो रहा है जो अब सच देखना समझना चाहता है। अब कुछ लोग विवेक को ऐजेंडाधारी फिल्मकार मानते हैं कि वो एक खास वर्ग को प्रसन्न करने के लिए सिनेमा बना रहें हैं। तो यहां ये प्रश्न भी उठता है कि इससे पहले क्या एजेंडाधारी सिनेमा नहीं बनता था। तमाम काल्पनिक कहानियों के सहारे एक वर्ग विशेष को प्रसन्न किया जाता रहा। धीरे धीरे सिनेमा से बहुसंख्यक समाज की कला.संस्कृति,पारिवारिक मूल्यों, तीज त्यौहारों को या तो फिल्मों से गायब कर दिया। उसकी आस्था-विश्वास पर लगातार चोट पहुंचायी जाती रही। उसके ईष्ट देवताओं का मज़ाक बनाया जाता रहा। सैक्यूलरता के नाम पर एजेंडा ही तो परोसा जाता रहा। देश की प्रतिभाओं के साथ, देश के साथ किस तरह की साजिश हो रही थी, अब पिछले कुछ दिनों में अगर “ताशकंद फाइल्स”,  “ द कश्मीर फाइल्स”, “केरला स्टोरी”, “रॉकेट्री” जैसी फिल्में इन एजेंडाधारियों की पोल खोलती नज़र आ रहीं हैं तो ये बिलबिलाए हुए घूम रहें हैं।

“द वैक्सीन वॉर” एक एजेंडा फिल्म ही है। उसका एजेंडा है कोरोना त्रासदी के समय जब हमारे वैज्ञानिक देश की जनता को बचाने के लिए एक सुरक्षित वैक्सीन बनाने में लगे हुए थे वहीं कैसे अंतर्राष्ट्रीय फॉर्मा लॉबी देश के चंद धूर्त पत्रकारों, नेताओं, एन जी ओ के लोगों के दम पर किस तरह यहां अपना एजेंडा लागू करना चाहती थी, उस एजेंडे को जनता के सामने लाने का काम करना है। ये उन लोगों पर भी सवाल करती है जो लोग अपने देश के वैज्ञानिकों पर भरोसा नहीं करके विदेशी वैक्सीन पर भरोसा कर रहे थे। उन पत्रकारों पर भी सवाल करती है है जो जलती चिताओं की तस्वीर तो बेच रहे थे लेकिन कब्रिस्तान उन्हें नहीं दिखाई दे रहे थे। जलती चिताएं तो उनके लिए खबर थीं लेकिन विश्व के अनेक देशों में किस तरह से सामुहिक कब्रों में लोगों को दबाया जा रहा था वो उनके लिए खबर नहीं थी। ये फिल्म उन नेताओं पर भी सवाल खड़ी करती है जो इस आपदा में सरकार के प्रयासों के साथ खड़े ना होकर देश में ऐसे हालात पैदा करने चाहते थे जो आम जनता के डर को ओर बढ़ाये जिससे वो ऐसी हरकते करे की सरकार परेशानी में आ जाए। दिल्ली से लॉकडाउन के समय लोगों को पलायन पर मजबूर करना। ऑक्सीजन की चौगुना मांग करना और ना मिलने पर जनता में पैनिक बढ़ाना। ऐसे बहुत से सवाल हैं अगर उनके जवाब चाहिए तो आम जनता को ये फिल्म देखनी चाहिए। आखिर सच क्या है, उसे ये जानने का हक़ है। विवेक इस फिल्म में सिर्फ सवाल नहीं उठाते, उनके जवाब देने का काम भी करते हैं।

ये फिल्म ये भी बताती है कि हमारे देश के वैज्ञानिक क्या करने में सक्षम हैं। विशेषतौर से हमारी देश की महिलाएं किस तरह से इन क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रहीं हैं। द वैक्सीन वॉर उन सभी वैज्ञानिकों के प्रयासों को सामने लाने का काम कर रहीं है जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना संयम नहीं खोया। ये ऐसे लोग हैं जो बिना खबरों में आने की लालसा लिए अपने काम में लगे रहे। ये फिल्म रीयल लाइफ के नायकों को रील के माध्यम से हमारे समक्ष लाने का सफल प्रयास कर रही है। बहुत मुश्किल होता है रीयल लाइफ के किरदारों को रील पर हुबहू जीने में। गिरिजा ओक, नाना पाटेकर और पल्लवी जोशी ने सभी नायकों को पर्दे पर जीवंत कर दिया है। निवेदिता भट्टाचार्य, अनुपम खेर, सप्तमी गौड़ा, मोहन कपूर, रायमा सेन ने भी कड़ी मेहनत से उन लोगों को जीवंत कर दिया है।

कुछ लोग फिल्म के खिलाफ अभियान चला रहे है। कह रहे हैं कि विज्ञान जैसे विषय पर बनी ये फिल्म नीरस है। वैज्ञानिक शब्दावली इसको बोझिल बना रही है। ये सिनेमा का विषय नहीं है। जिससे लोग ये फिल्म ना देखें। तो जनाब सत्य तो हमेशा नीरस ही रहा है। मनोरंजन तो कल्पनाओं में ही होता है। फिर चाहें आप अपनी कहानी में आप गीत-संगीत, नाच-गाना भर कर लोगों का मनोरंजन करें या फिर सिनेमा के माध्यम से सत्य को उजागर करने का तथाकथित नीरस काम करें। मुझे खुशी है विवेक अग्निहोत्री जैसे फिल्मकार सिनेमा के सशक्त माध्यम का उपयोग लोगों को जागरुक करने में कर रहें हैं। “द वैक्सीन वॉर” का सत्य सामने आना आवश्यक है। ये फिल्म ना केवल इस सत्य को उजागर करने का काम कर रही है, ये फिल्म उन लाखों गुमनाम नायकों के प्रयासों को भी सम्मान दिलाने का काम कर रही है जिन्होंने इस अभूतपूर्व आपदा के समय दिन रात लग कर मानवता के लिए काम किया है। अब हमारा काम है कि हम इस फिल्म को देखें ओर तस्वीर के इस दूसरे पक्ष को भी जाने कि उस आपदा के समय जब हमसे हमारा मनोबल बढ़ाने के लिए थाली-ताली बजवाई जा रही थी तो उसी समय हमारे देश का नेतृत्व विपक्ष की चुनौतियों का सामना करते हुए भी अपने प्रतिभावान वैज्ञानिकों के पीछे खड़ा था। “टूल किट” का मुकाबला कर रहा था।

धन्यवाद विवेक एक ऐसे सच को सामने लाने के लिए जिसे देशवासियों के सामने लाना आवश्यक था। आखिर उन लोगों का एजेंडा देशवासियों के सामने लाना आवश्यक था जो सरकार का विरोध करते करते आम लोगों के जीवन से खेल रहे थे। सिनेमा के दर्शकों से निवेदन है कि विवेक का ये एजेंडा आप अवश्य देखें जिससे उन्हें पता चल सके उनके भला चाहने वाले किस तरह से विदेशी ताकतों के हाथों में खेल रहे थे। और ये खेल आज भी चल रहा है, मैदान बदल रहा है ( कभी किसान, कभी सीएए, एन आरसी, धारा 370 के हटने का विरोध, अल्पसंख्यकों को भड़का कर बहुसंख्यकों को धार्मिक अनुष्ठानों पर हमलें, आसमानी किताब पर सवाल उठाने पर फतवे आदि), खिलाड़ी बदल रहें हैं। लेकिन उनका एजेंडा नहीं बदला है। एजेंडा सिर्फ इतना है कि किसी तरह से सरकार बदल जाये। या फिर देश में टुकड़ों में बंटी सरकार सत्ता में आ जाये जिससे देश कमजोर हो जाए। अब ये निर्णय तो आम जनता को करना है कि उसे क्या चाहिए लेकिन उसे ये पता होना चाहिए कि आखिर सत्य क्या है। सत्य को उजागर करने का काम करती है “द वैक्सीन वॉर”। साथ ही ये विश्वास भी दिलाती है- “इंडिया केन डू इट”

 

 

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