कमलेश के.मिश्र
रंगे को रंगे तो क्या रंगे तुम
रंग दो कुछ बेरंग वसन को
प्रेम, रंग और उल्लास की नगरी है वृंदावन। पर इसी वृंदावन में एक उदास सी छाँह में बड़ी नीरस सी ज़िंदगी जीने को अभिसप्त हैं हज़ारों हज़ार विधवा माताएँ. विधवा सफ़ेद वसन पहने, रंग से दूर रहे, शुभ कार्यों में शामिल न हो – रूढ़िवादी समाज ने रच डाले ऐसे हज़ारों नियम. ऊपर से देश के कुछ ऐसे हिस्से जहाँ विधवा को घर से निकाल कर राह दिखा दी जाती है वृंदावन बनारस की. ज़रा पल भर कल्पना कीजिए, पल पल बेबसी के कितने सितम उठाती होगी वह महिला.
वेदना के इस वेग को समझे तो बहुत होंगे पर, पर इनको इस पीड़ा से निकालने, इनके नीरस और बेरंग सी ज़िंदगी में ख़ुशियों के रंग भरने की इकलौती पहल की देश के प्रख्यात समाज सुधारक और सुलभ स्वच्छता आंदोलन के जनक डॉक्टर विंदेश्वर पाठक ने. सन 2012 से डॉक्टर पाठक इन विधवा माताओं के बीच जाते हैं, इनके साथ साथ होली दिवाली रक्षाबंधन जैसे पर्व पूरे धूमधाम से मनाते हैं. इस साल इनके साथ होली खेलने का कार्यक्रम हुआ 27 फ़रवरी को. इस साल की होली इस मायने में ख़ास रही कि बच्चे, वेदपाठी पंडित, आसपास की महिलायें और ढेर सारे फ़िरंगी भी जुट आए इस रंगी महोत्सव में, इन माताओं के साथ होली खेलने. वृंदावन के राधाकृष्ण मंदिर का विशाल आँगन खचाखच भर गया. सैकड़ों किलो हरबल गुलाल और फूल फ़िज़ा में फैल गए. फागराग की सुरलहरी पर हर कोई झूम उठा था. पहली बार इस होली को देखरहा हर कोई दंग था.सफ़ेद वसन में सिमटा विधवा माताओं का तन नहीं मन ख़ुशीयों के हज़ार रंगों से रंगकर जब झूम रहा था तो ऐसा लग रहा था मानो मानवता चहक उठी है
बक़ौल डॉक्टर पाठक “ किसी वेद, किसी शास्त्र में नहीं लिखा है कि विधवा निर्वासित और नीरस जीवन जिए, फिर समाज को क्या हक़ इनकी ज़िंदगी से ख़ुशी के रंग छिनने का? जब मैं इनके बारे में सोचता था तो मन व्यथित हो उठता था, रात रात भर सो नहीं पाता था. फिर मैंने तय किया कि कोई आए न आए, मैं आऊँगा इनके बीच, दिवाली पर ख़ुशी के दीप जलाऊँगा और होली पर उमंग के रंग लगाउँगा.
आज देखिए हर वर्ग के लोग शामिल हो रहे हैं इस रंगोत्सव में. इनकी ज़िंदगी में इनका खोया सुहाग तो नहीं लौटा सकता पर खोई ख़ुशियाँ तो वापिस लाने का प्रयास कर ही सकता हूँ और वही मैं कर रहा हूँ. नतीजा यह कि आज ये माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र को हरबल गुलाल और मिठाई भेंट करने जा रहीं हैं और उन्होंने अपने निवास पर इन्हें सादर आमंत्रित भी किया है. यह दोहरी ख़ुशी की बात है” एक फ़िल्म के लिए इस महोत्सव को शूट करने का अवसर मिला और इस पावन पर्व में शरीक हुआ मैं भी. एक फ़िल्ममेकर के तौर पर मेरे लिए यह अकल्पनीय अनुभव हैं. यह मेरा सौभाग्य है.