अतुल गंगवार
सिनेमा का रुपहला पर्दा यूं तो अपनी चमक दमक से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है लेकिन इसके साथ ही सिनेमा से जुड़ी कहानियों में भी आम लोगों की रुचि बनी रहती है। आज हम ऐसे ही एक दिलचस्प कहानी को आपके साथ साझा करने वाले हैं। ये कहानी है शम्मी कपूर, आशा पारेख स्टारर अपने समय की सुपरहिट फिल्म- तीसरी मंजिल की।
आपको शायद ये बात जानकर हैरत हो कि तीसरी मंज़िल फिल्म के असली हीरो थे एवरग्रीन हीरो देव आनंद। इस फिल्म का निर्देशन कर रहे थे नासिर हुसैन साहब। देव आनंद और नासिर हुसैन अच्छे दोस्त थे। लेकिन एक पार्टी में कुछ ऐसा हुआ कि तीसरी मंज़िल की तस्वीर ही बदल गई। हुआ यूं कि देव आनंद के भाई विजय आनंद नासिर साहब के लिए एक फिल्म डायरेक्ट कर रहे थे, बहारों के सपने। इस फिल्म के हीरो थे राजेश खन्ना ( राजेश खन्ना अभी सुपर स्टार नहीं बने थे।)। ये फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट में बन रही थी। देव साहब नासिर से इसलिए नाराज़ थे कि उन्हें लगता था कि विजय आनंद का करियर बहारों के सपने जैसी छोटी फिल्म का निर्देशन करके खराब हो सकता है। उनकी ये चिंता जायज भी थी आखिर उस समय विजय आनंद द्वारा निर्देशित, देवआनंद की मुख्य भूमिका वाली फिल्म ‘गाइड’ प्रदर्शित होने वाली थी और उसकी चर्चा चारों ओर थी। देव और नासिर में इस बात को लेकर बहस हो गई और गुस्से में देव आनंद ने नासिर को कहा, मैं नहीं करता तेरी फिल्म और पार्टी छोड़कर चले गए। लोगों को लगा रात गई-बात गई। सुबह दोनों दोस्त एक साथ होंगे। लेकिन इस बार भाग्य ने कुछ ओर ही सोच रखा था। नासिर और देव की बोलचाल बंद हो गई। अब तीसरी मंज़िल का क्या होगा? ये सवाल नासिर हुसैन के सामने खड़ा था।
इस समय नासिर हुसैन की मदद के लिए आए शम्मी कपूर। शम्मी कपूर की ज़िंदगी में नासिर हुसैन का बड़ा योगदान था। आखिर 19 सुपर फ्लॉप फिल्मों के बाद किसी ने शम्मी के करियर को नई दिशा दी थी तो वो फिल्म थी, ‘तुमसा नहीं देखा’। इस फिल्म का निर्देशन किया था नासिर हुसैन ने। इसके बाद शम्मी की अगली ब्लॉकबस्टर फिल्म, ‘दिल दे के देखो’ के भी निर्देशक नासिर हुसैन थे। दोनों के बीच एक छोटी सी गलतफहमी हुई और शम्मी-नासिर के रास्ते अलग हो गए। लेकिन तीसरी मंज़िल के लिए एक बार फिर दोनों के रास्ते मिल गए। नासिर ने शम्मी से पूछा कि तुम मेरी अगली फिल्म करोगे? शम्मी ने कहा वो तो देव साहब कर रहें हैं। नासिर ने कहा अब नहीं कर रहे। शम्मी ने कहा मैं हां करने से पहले एक बार देव आनंद से बात करना चाहूंगा। नासिर ने कहा ओके। शम्मी कपूर ने देव आनंद से बात की, देव आनंद ने कहा तुमने सही सुना है मैं अब ये फिल्म नहीं कर रहा। शम्मी ने पूछा अगर मैं कर लूं तो आपको कोई ऐतराज तो नहीं होगा। देव आनंद ने कहा, बिल्कुल नहीं- गो अहेड। तो इस तरह तीसरी मंज़िल में शम्मी कपूर की एंटरी हुई।
यहां एक ओर बात हुई अब नासिर हुसैन ने तय किया कि राजेश खन्ना वाली फिल्म वो डायरेक्ट करेंगे और तीसरी मंज़िल विजय आनंद। यही तो देव आनंद भी चाहते थे कि उनका भाई तीसरी मंज़िल डायरेक्ट करे। तो भाग्य ने ये तो कर दिया कि फिल्म विजय के हिस्से में आ गई लेकिन देव आनंद अब फिल्म का हिस्सा नहीं थे। विजय आनंद अपने समय के बड़े टेलेंटिड निर्देशकों में गिने जाते थे। शम्मी कपूर इस बात को लेकर बहुत खुश थे कि विजय आनंद उनकी फिल्म को डायरेक्ट करने वाले हैं। लेकिन एक ओर समस्या का समाधान अभी बाकी था।
ये समस्या थी कि तीसरी मंज़िल का संगीत कौन देगा? नासिर हुसैन ने अपनी तीन फिल्मों के लिए आर डी बर्मन को साइन कर रखा था। शम्मी कपूर अपनी फिल्मों के संगीत पक्ष को लेकर बेहद संवेदनशील थे। उनके पसंदीदा संगीतकार थे ओपी नैय्यर, शंकर-जयकिशन जिनके विनिंग कॉंबिनेशन को शम्मी बदलना नहीं चाहते थे। नासिर हुसैन ने शम्मी कपूर से बात की और बताया कि वह चाहते हैं कि इस फिल्म का संगीत आर डी बर्मन दें। शम्मी जानते थे कि आर डी बर्मन काफी टेलेंटिड हैं, इसलिए वह उनसे मिलने के लिए तैय्यार हो गए। सीटिंग में क्या हुआ ये भी अपने आप में दिलचस्प कहानी है लेकिन बहरहाल शम्मी ने आर डी को पास कर दिया।
तीसरी मंज़िल एक म्यूज़िकल थ्रिलर थी। विजय आनंद के चुस्त निर्देशन, आर डी के कालजयी संगीत और पर्दे पर शम्मी और आशा पारेख की जवां जोड़ी। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। ये उस समय तक की शम्मी कपूर की सबसे बड़ी हिट फिल्म थी। तो देखा आपने किस तरह से भाग्य ने शम्मी कपूर की झोली में इस फिल्म डाला। सबसे बड़ी बात है देव आनंद ने इस फिल्म की सफलता को सेलिब्रेट किया और कहा कि ये फिल्म शम्मी जैसे एक्टर के लिए ही थी। मुझे नहीं पता कि अगर मैं इस फिल्म में होता तो ये कैसी बनती, शायद विजय इसे कुछ दूसरे अंदाज़ में बनाता। तो क्या होता ये तो वक्त ही बताता। इस फिल्म के बाद शम्मी कपूर देव आनंद, राज कपूर और दिलीप कुमार के लिए चुनौती बन गए थे।