श्री सुशील कुमार मेरे 1973 से मित्र थे। उन्होंने 1973 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव लड़ा था। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के नाते में उनके प्रचार में गया था। वह मित्रता अभी तक बनी हुई थी।
श्री सुशील मोदी ने जीवनभर अपने आदर्शो को दृढ़ता से निभाया। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि वह उस शादी में नहीं जायेंगे जहाँ तिलक, दहेज़ होगा। उस प्रतिज्ञा के अनुपालन में वह अपने सगे भतीजे की शादी में भी नहीं गए।
राजनीति में रहना, उसमे सफल होना, हर चुनाव जीतना बड़ी बात है। बिहार विधानसभा, बिहार विधानपरिषद, लोकसभा और राज्यसभा: इन सबके चुनाव वह जीते। लम्बे समय तक बिहार के उप-मुख्यमंत्री रहे। उनकी चादर पर कोई दाग नहीं है। ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया। सफलता और ईमानदारी का यह अनोखा उदाहरण है।
देहदान और अंगदान के काम में उनकी अद्भुत रूचि थी। दिल्ली में वह उसका कार्यक्रम देखने और समझने आये थे। बिहार में उन्ही के द्वारा दधीचि देह दान समिति, बिहार की स्थापना और उसका विस्तार हुआ है। उस समय पटना में एक भी नेत्र बैंक नहीं था। अब हर जिले में है।
देहदान के प्रति उनकी निष्ठा यह थी कि अपने बेटे की शादी में उन्होंने केवल नारियल पानी पिलाया और शादी के पंडाल में देहदान – अंगदान का बूथ बना कर फॉर्म रखे गए। वहां 150 लोगों ने फॉर्म भरे।
2022 वर्ष में दिल्ली में देह-अंगदान करने वाली संस्थाओं, स्वास्थ्य क्षेत्र के संगठनों और सरकार के स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ मंत्री और अधिकारियों का बड़ा सम्मेलन हुआ था। श्री सुशील मोदी उसकी आत्मा थे। कार्यक्रम के आयोजन से लेकर उसकी विषयवस्तु और अतिथिओं की सहमति प्राप्त करने में उनका बड़ा योगदान था।
उस दौरान उन्होंने मुझे कहा था कि वह राजनीतिक जीवन के अंतिम पड़ाव पर थे। दोबारा चुनाव नहीं लड़ना था। भाजपा भी इस उम्र में लोगो को रिटायर कर रही है। उन्होंने कहा कि मैं अपना शेष जीवन देशभर में अंगदान – देहदान के लिए लगाऊंगा। भगवान ने इसका समय उन्हें नहीं दिया। वह इस काम की जिम्मेवारी हम पर छोड़ गए हैं। उनको सच्ची श्रद्धांजलि उनके जीवन मूल्यों के प्रति आदर और देह-अंगदान के काम के विस्तार से ही सुफल होगी।