आदि कुंभस्थली सिमरियाधाम में होने जा रहे महाकुंभ-2017 की शास्त्र सम्मत तिथि का निर्धारण किया गया है. सर्वमंगला विद्वत परिषद की तरफ से सिमरिधाम, मिथिलांचल, बेगूसराय, बिहार में 05.07.2017 से 07.07.2017 को आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी में सर्वसम्मति से महाकुंभ की तिथियों का निर्धारण किया गया जो निम्न है. –
1. कार्तिक मास तुलार्क महाकुंभ- 2017 का ध्वजारोहण दिनांक 17 अक्टूबर, दिन मंगलवार को
2. महाकुंभ का विशेष पर्व स्नान 18, 19, 26 एवं 31 अक्टूबर एवं 4, 14, एवं 16 नवंबर को
संगोष्ठि में गोवा की राज्यपाल एवं मिथिला की बेटी महामहिम डा श्रीमती मृदुला सिन्हा, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती जी, द्वादश कुंभ पुनर्जागरण प्रेरणा पुरुष करपात्री अग्निहोत्री परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज, साधु समाज के संस्थापक महामंत्री स्वामी हरिनारायणानंद जी, काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष महामहोपाध्याय रामयत्न शुक्ल जी, दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित विश्व विद्यालय पंचांग के प्रधान संपादक डॉ रामचंद्र झा जी, काशी विद्वत परिषद के महामंत्री महामहोपाध्याय पंडित शिव जी उपाध्याय, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष श्री बलदेव भाई शर्मा, राष्ट्रीय समाचारपत्र अमर उजाला के संपादक श्री उदय कुमार एवं भारत वर्ष नेपाल के विश्व विद्यालयों से आए अन्यान्य विद्वान उपस्थित थे.
संगोष्ठी की अध्यक्षता पहले दिन काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष महामहोपाध्याय रामयत्न शुक्ल जी, दूसरे दिन त्रिभुवन विश्व विद्यालय नेपाल के न्याय विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ गोविंद चौधरी जी एवं तीसरे दिन देहरादून से आए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र जी ने किया.
संगोष्ठी के दौरान कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित विश्व विद्यालय पंचांग का भी लोकार्पण हुआ जिसमें यह सारी तिथियां अंकित हैं.
सिमरिया महाकुंभ की तिथियों का उल्लेख मिथिला के समस्त पंचांगों एवं दिल्ली से प्रकाशित सुलभ पंचांग में भी है.
साथ ही आध्यात्मिक पत्रिका दिव्य चक्षु का भी लोकार्पण संगोष्ठी में हुआ.
इस अवसर पर 5 जुलाई को सिमरियाधाम में महाकुंभ से पूर्व चातुर्मास्य ध्वजारोहण भी किया गया. चातुर्मास्य ध्वजारोहण गोवा की राज्यपाल डॉ श्रीमती मृदुला सिन्हा, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती जी, द्वादश कुंभ पुनर्जागरण प्रेरणा पुरुष करपात्री अग्निहोत्री परमहंस स्वामी चिदात्मन महाराज जी, धर्माचार्य स्वामी हरिनारायणानंद जी, दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ रामचंद्र झा जी, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष श्री बलदेव भाई शर्मा जी, राष्ट्रीय समाचारपत्र अमर उजाला के संपादक श्री उदय कुमार जी एवं देश के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे संत महात्मा एवं विद्वतजनों के कर कमलों से संपन्न हुआ.
संगोष्ठी के दौरान सिमरिया महाकुंभ-2017 के प्रतीक चिन्ह का भी लोकार्पण किया गया. (इसमें एक पीतल का कलश है जिसपर मधुबनी चित्रकारी में समुद्र मंथन का चित्र अंकित है. कलश के नीचे शुभत्व का प्रतीक अल्पना बना हुआ है. कलश के ऊपर आम्र पल्लव व पुष्प सुसज्जित है. पार्श्व में देदीप्यमान सूर्य की आभा बिखरी है.)
संगोष्ठी में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पुनः पारित हुआ कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से सिमरियाधाम की अत्यधिक महत्ता है. निर्विवाद रूप से यह स्थान समुद्र मंथन की महान ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है. यह भी कि आदि कुंभस्थली के रूप में सिमरियाधाम की प्रतिष्ठा है जिसके समस्त प्रमाण उपलब्ध हैं. आवश्यकता इसके प्रचार-प्रसार की है.
संगोष्ठी में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव भी पारित हुआ कि महाकुंभ दैव निर्धारित और शास्त्र सम्मत है. यह किसी संस्था-संगठन का नहीं अपितु लोक आयोजन है. यह सत्य है कि बीच के कालखंड में सिमरिया में महाकुंभ की कड़ी टूटी लेकिन कुंभ के अवशेष के रूप में कल्पवास की परंपरा बनी रही. इस लिहाज से सिमरियाधाम, बेगूसराय, मिथिलांचल एवं प्रकारांतर से बिहार प्रांत को इसे पुनर्जीवित और पुनर्जागृत करने का गौरव प्राप्त हो रहा है. अतः देश भर के परम आदरणीय संत महात्माओं, विद्वतजनों, संपूर्ण धर्मपरायण समाज का स्वयं प्रेरणा से यह दायित्व बनता है कि अपने सामर्थ्य से योगदान देकर इस महान पर्व को सफल बनाएं.
संगोष्ठी में महाकुंभ की तैयारियों से जुड़े समाचारों को प्रमुखता और विस्तार से स्थान देने के लिए समाचार पत्रों, समाचार चैनलों का भी धन्यवाद ज्ञापित किया गया. साथ ही मीडिया के बंधुओं से महाकुंभ की महत्ता और व्यापकता को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर इसके प्रचार-प्रसार का भी निवेदन किया गया.
संगोष्ठी में सरकार और प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करने का भी प्रयास किया गया. विद्वतजनों ने इस बात का भी उल्लेख किया कि सरकार और प्रशासन की ओर से जितनी गंभीरता और तैयारी महाकुंभ को लेकर होनी चाहिए वह नहीं दिख रही है.
इस बात का भी उल्लेख आया कि 2011 में सिमरियाधम में आयोजित अर्धकुंभ में भी प्रशासन की तरफ से दुरुस्त व्यवस्था नहीं थी जिस कारण श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना करना पड़ा था.
यहां यह उल्लेखनीय है कि एक मोटे आंकड़े के हिसाब से 2011 में सिमरियाधम में आयोजित अर्धकुंभ में देश भर से लगभग 90 लाख श्रद्धालुओं का आना हुआ था. अनुमान लगाया जा रहा है कि सिमरिया महाकुंभ- 2017 यह संख्या दो से ढाई गुना हो सकती है.
इस स्थिति को देखते हुए प्रशासन से जल्द से जल्द तमाम आवश्यक व्यवस्था करने का भी आग्रह संगोष्ठी में किया गया.
संगोष्ठी में काशी विद्वत परिषद, मिथिला विद्वत परिषद, एवं भारत वर्ष व नेपाल के अन्यान्य विश्व विद्यालयों के निम्न विद्वानों ने सहभागिता की.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ रामजीवन मिश्र
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निगमागम विभाग के डॉ कमलेश झा
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ सुधाकर मिश्र
दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सचिव डॉ विद्येश्वर झा
दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के अध्यक्ष डॉ बौआनंद झा
दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ दिलीप कुमार झा
त्रिभुवन विश्व विद्यालय नेपाल के न्याय विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ गोविंद चौधरी
बनौली संस्कृत महाविद्यालय, नेपाल की प्राचार्या कल्पना कुमारी
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, जगन्नाथ पुरी, भुवनेश्वर के न्याय विभाग के अध्यक्ष डॉ महेश झा
संस्कृत विभाग, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ रामविलास चौधरी
संस्कृत महाविद्यालय, मंदारी, पटना के पूर्व प्राचार्य एवं महावीर पंचांग निर्माता डॉ शिवेंद्र झा
संस्कृत महाविद्यालय, बरौनी के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ विनोदानंद झा
संस्कृत महाविद्यालय, रहीमपुर खगड़िया के प्राचार्य ज्योतिषविद् डा उमेश प्रसाद सिंह
दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलानुशासक डा सहजानंद राय
अखिल भारतीय श्री राम चरित मानस प्रचार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य सत्य नारायण मिश्र.
एवं अन्य अनेक विद्वानों ने संगोष्ठी में हिस्सा लिया.