बिहार अपडेट:हम सभी के लिए परम् सौभाग्य, आनंद व शुभ अवसर का विषय है कि श्री गुरु नानक देव जी महाराज का 550वां प्रकाश वर्ष, जो इस कार्तिक पूर्ण मास को प्रारंभ हो रहा है, हमारे जीवन में आया है। श्री गुरु जी महाराज ने अपने जीवनकाल में लगभग 45 हजार किमी की यात्रा, हिमालय से श्रीलंका तक, मक्का-मदीना, ताशकंद, ईरान, ईराक से लेकर तिब्बत, अरुणाचल प्रदेश की हिमआच्छादित पहाड़ियों, बंग्लादेश आदि तक की यात्रा करके तत्कालीन धार्मिक व सामाजिक नेतृत्व से संवाद कर उस समय की सामाजिक अंध कुरीतियों, जो समाज के बिखराव व अंधविश्वास का रूप धारण कर, उसे कमजोर कर रही थी, उनसे उभारकर भारत की आध्यात्मिक परंपरा को आगे बढ़ाकर उसे जीवन में पुरुषार्थ व परमार्थ की प्रेरणा देकर प्रभु सुमिरन के साथ जोड़ा। उन्होंने किरत कर, नाम जपु, वंड छको का मार्गदर्शन दिया जो आज भी वर्तमान संदर्भ में उतना ही प्रासंगिक है।
साथ ही उन्होंने समाज को आत्मसम्मान के साथ जीने व अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दी। वहीं तत्कालीन विदेशी आक्रांता बाबर को यमदूत की संज्ञा देकर उसके द्वारा किए गए अत्याचार के लिए उसकी कठोर शब्दों में निंदा की व चुनौती दी कि ऐसे आतंकी समय में भी मैं इस नश्वर काया की चिंता न करते हुए सत्य की बात कहूंगा और यह हिन्दुस्तान निश्चित ही अपने आप को संभालेगा। इसी जागरण व बलिदान परंपरा की निरंतरता में खालसा का संत सिपाही के रूप में अवतार हुआ, जिसने काबुल कंधार तक अपना राज्य स्थापित कर विदेशी आक्रांताओं के रास्ते सदैव के लिए बंद कर दिए तथा देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में एक महती भूमिका निभाई।
आज सारा समाज पैसे के लिए अंध प्रतिद्वंदता व पापाचार में फंसा हुआ है। गुरु महाराज ने कहा था कि अधिक माया पाप के बिना इकट्ठी नहीं होती है तथा मरने पर साथ नहीं जाती। श्री गुरु जी महाराज ने संतों व सिद्ध पुरुषों से भी यह संवाद किया कि वे केवल आत्म मोक्ष के लिए नहीं, बल्कि समाज का उद्धार करने के लिए भी हैं।
श्री गुरु जी महाराज ने हर विचारधारा व कार्यबल को सात्विक व उच्च जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया था जो आज भी प्रासांगिक है। हमें उनके इस प्रकाशवर्ष को आधार बनाकर सारे वर्ष ऐसे आयोजन करने चाहिए, जिनके माध्यम से सभी वर्गों यथा – बालक, युवा, उद्यमी, किसान, विद्वतजन आदि के बीच में जाकर उनके उपदेश का प्रचार प्रसार हो सके।
भय्या जोशी
सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ