स्त्री केवल परिवार निर्मात्री ही नहीं अपितु राष्ट्र निर्मात्री भी -माननीय सीता अन्नंदानम
29 जून 2023 , दिल्ली,राष्ट्र सेविका समिति की आद्य संचालिका वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर के 118 वें जन्म दिवस उत्सव पर मेधाविनी सिंधु सृजन, दिल्ली प्रांत द्वारा हंसराज कॉलेज कॉलेज में कार्यक्रम आयोजित किया गया। समिति इस दिन को संकल्प दिवस के रूप में मनाती आई है । आज के कार्यक्रम की मुख्य वक्ता माननीय सीता अन्नदानम (अखिल भारतीय प्रमुख कार्यवाहिका, राष्ट्र सेविका समिति), अध्यक्षा दीदी मां साध्वी ऋतंभरा (अधिष्ठात्री वात्सल्य ग्राम), मुख्य अतिथि माननीय कृष्ण गोपाल जी (सह कार्यवाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ),
विजया शर्मा (राष्ट्र सेविका समिति , अखिल भारतीय तरुणी प्रमुख व प्रांत प्रचारिका दिल्ली प्रांत), सुनीता भाटिया प्रांत कार्यवाहिका,दिल्ली प्रांत ,विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर बलराम पाणि डीन ऑफ कॉलेजेस ,दिल्ली विश्वविद्यालय, मुख्य अतिथि श्री प्रकाश सिंह निदेशक दक्षिणी परिसर, दिल्ली विश्वविद्यालय, माननीय सुनीता हल्देकर जी अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका, अंजू आहूजा जी अध्यक्षा शरण्या, सुरेंद्रा जी, राधा मेहता जी उत्तर क्षेत्र कार्यवाहिका, आशा दीदी अखिल भारतीय मार्गदर्शन मंडल व पालक अधिकारी रहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों की प्राचार्या व प्रोफेसर व लेक्चरर तथा समिति सेविकाओं ने कार्यक्रम में भागीदारी की ।
मेधाविनी सिंधु सृजन की संयोजिका प्रो. निशा राणा ने कार्यक्रम की प्रस्तावना दी व बताया कि विगत 10 वर्षों से मेधाविनी सिंधु सृजन प्रबुद्ध वर्ग की बहनों के साथ लगातार इस कार्य में गतिमान है। वे लगातार सेमिनार ,कैंप, चर्चाएं व वेबिनार्स कर रहे हैं ताकि समाज में एक विमर्श प्रस्तुत कर सकें।
इसके साथ ही साथ ‘हिंदू प्रकाश में महिला विमर्श” नामक पुस्तक का भी इस कार्यक्रम में विमोचन किया गया ।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता माननीय सीता अन्नदानम (राष्ट्र सेविका समिति) अखिल भारतीय प्रमुख कार्यवाहिका जी ने राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका और प्रथम संचालिका के विषय में यह बात कही कि समर्पण का भाव राष्ट्रहित के लिए होगा तो राष्ट्र उन्नति करेगा । उन्होंने कहा कि परिवार रूपी रथ का पुरुष रथी है तो स्त्री सारथी है इस प्रकार कृष्ण भगवान कृष्ण महाभारत में अर्जुन के सारथी थे और उनके दिशा-निर्देशों पर ही अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता उसी प्रकार स्त्री भी इस परिवार की सारथी है उसका सम्मान होना चाहिए ।उन्होंने कहा कि राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं के अंतर की अंतर्निहित शक्तियों को बाहर निकालने का कार्य कर रहा है और 650 जिलों तक नेटवर्किंग का कार्य हो रहा है केंद्र में जो विचार किया जाता है वही ग्रामीण स्तर तक ले जाने का कार्य समिति की बहने कर रही हैं उन्होंने स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देकर कहा कि भारत की महिलाओं का उद्धार करने का की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह स्वयं सिद्धा हैं, वे अपने जीवन के लक्ष्य को जानती हैं। वह अपना उद्धार स्वयं कर सकती हैं ।आज की महिलाओं में अपनी शक्तियों का विस्मरण हो गया है लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि महिलाएं अपनी संस्कृति, अपनी शक्तियों को फिर से स्मरण करें और समाज को एक नई दिशा दें। उन्होंने कहा कि माननीय लक्ष्मीबाई केलकर जी ने अपने वैधव्य को अभिशाप न मानकर शक्ति माना और राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुट गई तथा वर्धा में समिति की स्थापना की। हम अपनी कमियों को अपनी शक्ति बनाएं और जिस प्रकार भी संभव हो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें। यही लक्ष्मी बाई केलकर के जीवन का आदर्श वाक्य था । उन्होंने मौसी जी के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन की अनेक घटनाओं के माध्यम से बताया कि आज के युवा इस बात से परिचित हों कि किस प्रकार मातृशक्ति के संगठन द्वारा राष्ट्र निर्माण की नींव रखी गई। उन्होंने कहा कि समाज में नेतृत्व करने वाला व्यक्ति मौसी जी जैसा अनुकरणीय होना चाहिए। उनके जीवन और वाणी में मैं का स्थान नहीं था सब कुछ राष्ट्र को समर्पित था ।उन्होंने बताया कि मातृशक्ति संगठन द्वारा ही राष्ट्र और विश्व में परिवर्तन संभव है तथा मौसी जी ने मातृशक्ति को परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़ने वाली कड़ी कहा है। संस्कृति का रक्षण, भाषा, आचरण और व्यवहार द्वारा ही संभव है।
प्रत्येक राष्ट्र जो अपनी उन्नति चाहता है उसे अपनी संस्कृति और इतिहास को कभी नहीं भूलना चाहिए । हम अपनी नींव ,अपनी संस्कृति पर अडिग रहकर वर्तमान और भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं तो देश और समाज का निर्माण संभव होगा।
उन्होंने रामायण के महत्व को समझा और इसीलिए जगह स्थान स्थान पर जाकर रामायण के व्याख्यान दिए। सीता के जीवन से ही राम राम बने इसलिए महिलाओं को अपने समक्ष सीता का आदर्श रखना चाहिए। उन्होंने महिलाओं के जागरण के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया । देश की सुरक्षा का दायित्व भारत की माताओं को हैं ।माताएं इस समय भूल गई हैं इस कारण से समाज में मर्यादा व आचरण शुद्ध नहीं है। वे अगर अपने पुत्रों को देशभक्त , सभ्य व अच्छे नागरिक बनाने की जिम्मेदारी को निभाए तो भारत में सुरक्षा की कभी भी दिक्कत नहीं होगी और महिला सशक्तिकरण अपने आप हो जाएगा।
दीदी मां साध्वी ऋतंभरा जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। दीदी के बोलने से पूरा ऑडिटोरियम भक्तिमय हो गया। स्त्री स्वयं सिद्धा है अपने कर्तव्यों का बोध होने पर वह विश्व को दिशा दिखा सकती है ।शिक्षा का अर्थ नशे मे डूबना नहीं है। ना ही लिविग रिलेशनसिप मे है।
आप भारत की नारी है गन्गा के गन्गत्व को धारण करने वाली हैं।
उन्होंने कहा कि मौसी जी ने एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो कार्यकर्ताओं को तराशने का काम करता है। उन्होंने एक ऐसा वट वृक्ष लगाया जिसने अन्य कई वट वृक्षों को जन्म दिया।
इस संकल्प दिवस पर उन्होंने महिलाओं को संगठित होकर राष्ट्र को संगठित करने का संकल्प लेने का आह्वान किया।
मुख्य अतिथि माननीय कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि
वंदनीय लक्ष्मी बाई जी का संपूर्ण जीवन अनुकरणीय रहा है। । उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि जो परिवर्तन है वह अपनी सुरक्षा के लिए है, वह हमारा मूल नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत की महिलाएं वैदिक काल से ही जागरूक व शिक्षित थीं। वैदिक काल मैं 26 महिलाओं ने वेदों की ऋचाएं लिखी हैं। अपाला , मैत्री, गार्गी, सूर्या सावित्री, सीता ,सावित्री, दमयंती ,जैन धर्म व बौद्ध धर्म के समय की महिलाएं भी जागरूक व शिक्षित थीं।
अगर हम थेरीगाथा ग्रन्थ को देखे तो इसमें ७६ महिलाओं के शास्त्र ज्ञान का वर्णन मिलता है।
स्त्री पुरुष मे भेद करना गलत है। उल्लेखनीय है कि पाश्चात्य मे महिला ईश्वर नहीं हो सकती । किन्तु भारत मे शक्ति सद्बुद्धि और समृद्धि महिला है और जब देवता भी हार जाते है तो स्त्री शक्ति रक्षा करती है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहां की वर्तमान समाज में मां और बहनों का दायित्व और ज्यादा बढ़ जाता है ताकि समाज के भविष्य को वह संस्कार दें पाए ,पुरानी व्यवस्थाएं प्रकाश में आ रही हैं। मौलिक दर्शन को परिवार की महिलाएं ही संभाल कर रख सकती हैं और परिवारों में आदर्श की स्थापना हो।
आज अगर समाज में भी मातृशक्ति की गूंज है तो उसमें भी कहीं ना कहीं लक्ष्मीबाई केलकर के विचार को ही प्रधानता मिली है कि उन्होंने 1936 में जिस मातृशक्ति के विषय में सोचा था आज समाज में उस मातृशक्ति की उपस्थिति प्रत्येक भारतीय के मन में प्रेरणा का संचार करती है। महिला शक्ति अगर कुछ मन में ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है।
25 अक्टूबर ,1936 विजयदशमी के दिन उन्होंने महिलाओं के एक ऐसे संगठन की नींव रखी जो व्यक्ति निर्माण के साथ समाज और राष्ट्र के निर्माण में भी योगदान दे ।
राष्ट्र सेविका समिति भारतीय महिलाओं का सबसे बड़ा और सुदृढ़ संगठन है जिसकी शाखाएं पूरे भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी फैली हुई हैं। भारत के 2380 शहरों ,कस्बों और गांवों में समिति की 3000 शाखाएं चल रही हैं। समिति के 400 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। दुनिया के 16 देशों में समिति की सशक्त उपस्थिति दर्ज हो चुकी है ।
सेविका समिति सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक धरातल पर 1936 से काम कर रही है ।शाखाओं के माध्यम से समिति की सेविकाएं (सदस्या) समाज और देश के समग्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
इस कार्यक्रम में लगभग 600 बहनों ने भागीदारी की।