पटना : सुप्रीम कोर्ट ने नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन देने के पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया. सोमवार को इस मामले की पहली सुनवाई करते हुए न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल और न्यायाधीश यूयू ललित की बेंच ने बिहार सरकार को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी बनाने का निर्देश दिया. कमेटी को 15 मार्च तक नियोजित शिक्षकों पर खर्च किये जाने वाली राशि के साथ-साथ समान वेतन देने पर राज्य सरकार पर पड़ने वाले भार और पूर्व में खर्च की जा रही राशि की विस्तृत रिपोर्ट देनी होगी.
इस मामले पर 15 मार्च को अगली सुनवाई होगी. खंडपीठ ने करीब एक घंटे तक बहस के दौरान केंद्र सरकार के असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा से को भी निर्देश दिया कि सर्वशिक्षा अभियान मद में केंद्र सरकार 60%राशि देती है. ऐसे में कितनी राशि खर्च होती है, उसका ब्योरा दें.
कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को भी पार्टी बना दिया है और एएसजी पीएस नरसिम्हा से कहा कि वह सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहें. सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी गयी कि इन शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के बराबर वेतन नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि ऐसा करने पर बिहार सरकार के खजाने पर एरियर का भुगतान करने के िलए 50,000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.
इसके अलावा वर्तमान वेतन भुगतान करने पर सालाना 28,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा. इस पर शिक्षकों की ओर से वरीय अधिवक्ता रंजीत कुमार ने इस आंकड़े का विरोध किया और कहा कि पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार खुद मात्र 10,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त बोझ पड़ने की बात कही थी, जबकि 60% राशि केंद्र ही देता है. इस पर अदालत ने बिहार सरकार को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट देने का आदेश दिया. अदालत ने टिप्पणी की कि आज नहीं तो कल इन शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन देना होगा. राज्य में नियोजित शिक्षक कुल शिक्षकों के लगभग 60% हैं और ऐसे में उनके साथ भेदभाव ठीक नहीं है. राज्य सरकार की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति अलग नियमावली पर हुई थी और इनकी शैक्षणिक योग्यता भी कम रखी गयी थी.
इस पर कोर्ट ने कहा जो शिक्षक पिछले 10 सालों से काम कर रहे हैं, उनकी योग्यता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. खंडपीठ ने बिहार सरकार की इस दलील पर आपत्ति जतायी कि इन शिक्षकों की योग्यता सही तरीके से नहीं जांची गयी है. इस पर अदालत ने कहा की बिना योग्यता जांचे इनकी नियुक्ति कैसे की गयी. वहीं, शिक्षकों की ओर से अधिवक्ताओं ने कहा कि राज्य सरकार शिक्षा में 23% तक राशि खर्च करती थी, लेकिन अब 15% तक ही राशि खर्च कर रही है.
सरकार पर पड़ेगा 15 हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट हू-ब-हू लागू करता है तो 3.5 लाख नियोजित शिक्षकों को वेतन देने में राज्य सरकार पर 15 हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. वर्तमान में नियोजित शिक्षकों के वेतन पर 10 हजार करोड़ सालाना सरकार खर्च करती है. फिलहाल नियोजित शिक्षकों को अधिकतम 25 हजार वेतन मिलता है, लेकिन पुराना वेतनमान लागू होने से 40 से हजार से ज्यादा वेतन हर महीने मिलेगा.
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित होगी कमेटी, 15 मार्च तक देनी है रिपोर्ट
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पहली सुनवाई, 15 मार्च को अगली सुनवाई
केंद्र सरकार के असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल से भी मांगा गया ब्योरा
आज नहीं तो कल इन शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन देना होगा
पटना हाईकोर्ट ने शिक्षकों के पक्ष में दिया था फैसला: पटना हाईकोर्ट ने 31 अक्तूबर, 2017 को समान काम के लिए समान वेतन की नियोजित शिक्षकों की मांग के पक्ष में फैसला सुनाया था. राज्य सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 15 दिसंबर को विशेष अनुमति याचिका दायर की. हालांकि कई शिक्षक संगठनों ने इससे पहले ही कैबिएट फाइल कर दी थी.
समान काम के लिए समान वेतन मामले पर सुनवाई शुरू हो गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को आगे बढ़ाया है. संगठन को भरोसा है कि हाईकोर्ट की तरह सुप्रीम कोर्ट में भी शिक्षकों की ही अंतिम जीत होगी.
केदार नाथ पांडेय, अध्यक्ष, बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ
सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में जो निर्देश दिया है, वह शिक्षकों के पक्ष में है. राज्य सरकार की दलीलों और आंकड़ों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया है और आकलन कर फिर से आंकड़ा देने का निर्देश दिया है. जल्द ही न्याय मिलेगा.
पूरण कुमार व केशव कुमार, बिहार पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ