नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मुंबई की 24 हफ्ते की गर्भवती एक महिला को गर्भपात की इजाजत दे दी क्योंकि गर्भावस्था को जारी रखने पर उसकी जान जाने का खतरा हो सकता है। सात चिकित्सकों के एक बोर्ड ने न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव को बताया कि 22 साल की महिला के गर्भ में पल रहे अविकसित सिर वाले भ्रूण की जन्म के बाद बचने की संभावना नहीं है, जिसके बाद अदालत ने अपने फैसले में महिला को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी।
केईएम अस्पताल में महिला की जांच करने वाले मेडिकल बोर्ड ने कहा कि गर्भावस्था पूरी होने देने से मां के जीवन को खतरा हो सकता है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को कहा कि महिला का गर्भपात अदालत में आए सात चिकित्सकों की टीम द्वारा ही किया जाएगा और अस्पताल गर्भपात की इस पूरी प्रक्रिया को रिकॉर्ड रखेगा। गर्भपात की अनुमति देते हुए अदालत ने इस बात को भी रेखांकित किया कि महिला का पति भी इस फैसले से राजी है।
मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के तहत सामान्यतया 12 हफ्ते की गर्भवती महिला को गर्भपात की अनुमति दी जाती है। इसमें कहा गया है कि 12 से 20 हफ्ते के गर्भ को भी गिराने की अनुमति दी जा सकती है लेकिन इसकी शर्त यह है कि दो चिकित्सकों का दल यह राय दे कि गर्भवती महिला की जान को खतरा है या उसे गंभीर शारीरिक- मानसिक चोट पहुंच सकती है।