विजयदशमी से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख ने अपने संबोधन से पहले महात्मा गांधी और नानक की सीख का जिक्र करते हुए भारतीय सेना को और मजबूत बनाने की बात कही। मोहन भागवत ने कहा कि एससी-एसटी वर्ग से आने वाले समाज के वंचित समूह, प्रताड़ित लोगों को मजबूत करने की जरूत है। उन्होंने अर्बन नक्सल की अवधारणा का भी जिक्र करते हुए कहा कि देश में चले छोटे आंदोलनों में भारत तेरे टुकड़े होंगे कहने वाले भी दिखे। इस पर चिंता जताते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर इनका प्रचार चल रहा है और उसका कंटेंट पाकिस्तान, इटली, अमेरिका से आ रहा है। भागवत ने बिना नाम लिए एससी-एसटटी ऐक्ट पर पैदा हुए हालिया गतिरोध का भी जिक्र किया। उन्होंने एक तरह से मोदी सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि समाज में फैल रहे असंतोष का हल करना होगा, दबे लोगों को उनका हक देना होगा। भागवत ने सबरीमाला का जिक्र करते हुए कहा कि इस बारे में फैसला आने से पहले इससे प्रभावित लोगों को विश्वास में लिया जाना चाहिए था।
मोहन भागवत एक बार फिर राम मंदिर बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि राजनीति की वजह से मामला लंबा खिंच गया। उन्होंने एक तरह से मोदी सरकार को नसीहत देते हुए राम मंदिर पर कानून तक लाने की बात तक कही। उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं कि सरकार है फिर क्यों नहीं। संघ प्रमुख ने कहा कि सरकार बनने से हर काम नहीं हो जाता।
संघ प्रमुख ने कहा कि इस देश में बाबर के रूप में भयानक आक्रमण की आंधी आई। उन्होंने कहा कि बाबर के समय या फिर अंग्रेजों की समय में हम इसलिए परतंत्र हो गए क्योंकि हमारे समाज का आचरण प्रतिकूल नहीं था। मोहन भागवत ने कहा, ‘दुनिया को संकट से हमने बचाया। उन्होंने कहा, ‘बाबर के रूप में भयानक आक्रमण की आंधी आई। उसने न हिंदुओं को बख्शा, न मुसलमानों को बख्शा। समाज को रौंदा क्योंकि समाज में अपनी कमी आ गई थी। स्वार्थ प्रबल हो गए थे। समाज का आचरण प्रतिकूल हो गया था। इसलिए दूर से आए एक बर्बर आक्रमणकारी को देश की सारी लड़ाइयों में जीत मिली। फिर गुरुनानक इस देश में आए। उन्होंने समाज की स्थिति को जानते हुए एक आध्यात्मिक आचरण की बात कही। फिर गुलामी के रास्ते से निकल हम फिर से स्वतंत्र हुए।’
महात्मा गांधी, बोस का किया जिक्र
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में महात्मा गांधी को भी याद किया। उन्होंने कहा, ‘सांस्कृतिक जागरण की परंपरा देश में लगातार चल रही है। देश में राजनीति को लेकर भी अभिनव प्रयोग हुए। अंग्रेजों की दासता काल में महात्मा गांधी का प्रयोग ऐसा ही है। सत्य और अहिंसा के आधार पर राजनीति की कल्पना हमारे ही देश का शख्स कर सकता है। लोग अंग्रेजों के सामने निहत्था घर के बाहर खड़े हुए। शस्त्र के आधार पर भी लड़ने वाले लोग थे। इसी नैतिक बल के आधार पर बोस जैसे महानुभाव ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की और स्वतंत्र भारत की पहली सरकार विदेश में बनाई। उसे भी 150 साल हुए हैं।
पाकिस्तान और चीन की तरफ से खतरे के प्रति आगाह किया
मोहन भागवत ने कहा कि भारत सबके कल्याण की कामना करता है लेकिन दुनिया में हमारे शत्र भी हैं। उन्होंने कहा, ‘उनसे तो बचने का उपाय करना होगा। पड़ोसी देश में सरकार बदली लेकिन सीमा के पास के राज्यों में उसकी क्रिया में कमी नहीं आई। हम ऐसा बनें कि शत्रु में हिम्मत न हो। सेना को इसी लिहाज से मजबूत बनाने की जरूरत है। पिछले सालों में भारत की दुनिया में प्रतिष्ठा बढ़ी है उसकी वजह यही है कि हम इस दिशा में आगे बढ़े हैं।’
उन्होंने कहा, ‘सैनिक सीमा पर अकेले हैं। उनकी सुरक्षा और उनकी परिवारों की सुरक्षा का दायित्व हमारा है। गोली का जवाब गोली से देने वालों की हिम्मत रखने वालों की चिंता कौन करेगा। इस बार में शासन प्रशासन द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं, इसकी गति बढ़ाए जाने की जरूरत है।’ मोहन भागवत ने कहा कि समुद्री सीमा की रक्षा की भी जरूरत है। उन्होंने चीन से आने वाले खतरे के प्रति आगाह करते हुए कहा कि वे ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ पर काम कर रहे हैं और उन्होंने समुद्री देशों की मदद से ऐसा किया है।
नियो लेफ्ट और अर्बन नक्सलवाद के लिए चिंता जाहिर की
संघ प्रमुख ने कहा, ‘देश में छोटे-छोटे मुद्दों को भी तूल दिया गया। इसपर आंदोलन हुए, जिसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश हुई और हम यह समझ भी सकते हैं, लेकिन इनमें भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगाने वाले, जो प्रकट रूप से कहते हैं कि बंदूक की नली पर सत्ता चाहिए। इन आंदोलनों में ऐसे भी चेहरे दिखे। हमारे देश में असंतोष है और उसके खिलाफ चल रहे आंदोलन में ये भी शामिल हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसका प्रचार चल रहा है जिसका कंटेंट पाकिस्तान, इटली, अमेरिका से चलता है। इसे निओ लेफ्ट कहते हैं जिसका प्रचलित शब्द है अर्बन माओवाद। माओवाद हमेशा से अर्बन रहा है।
परोक्ष रूप से एससी-एसटी ऐक्ट पर गतिरोध का भी जिक्र किया
मोहन भागवत ने एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मोदी सरकार द्वारा पलटने के बाद पैदा हुए गतिरोध, आंदोलन पर भी परोक्ष रूप से टिप्पणी की।
हिंदुत्व अपनी राष्ट्रीय पहचान: भागवत
मोहन भागवत ने एक बार फिर हिंदुत्व की व्याख्या करते हुए कहा कि यह हमारी राष्ट्रीय पहचान है। यह किसी देवी देवता, किसी पूजा परपंरा और खान पान से संबंधित नहीं है। मोहन भागवत ने कहा कि गुरुनानक ने भी हिंदुस्थान की बात कही है। देश में अगर संविधान के आधार पर भावनात्मक एकता लानी है तो हिंदुत्व को युगानुकूल रूप में खड़ा करना होगा ताकि लोग इसका व्यवहार करें।