भारत वर्ष के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार से कोरोंना महामारी में जिस सवेंदनशीलता, दूरदर्शिता तथा बहादुरी का परिचय दिया है वह स्वागत योग्य है। आज पूरा संसार डब्लू॰एच॰ओ, यू॰एन॰, यू॰स॰ऐ॰, यू॰के॰, फ़्रांस, जर्मनी , इसराइल , साउदी अरब, कुवैत, नेपाल, आदि सारे देश मोदी की भुरी भुरी प्रशंसा करते नहीं थकते हैं। जब इस महामारी में कारगर दवा hydroxychloroquine की 70% उत्पादन भारत में ही होती है, तब मोदी जी ने पूरे संसार को वह दवा उपलब्ध कराई, आज 55 देशों को भारत यह दवा भेज रहा है, पर इसका ध्यान रखते हुए कि भारत में कोई कमी ना हो। इस संकट की घड़ी में मानवता को बचाने के लिए यह अति उत्तम व वंदनिये क़दम है। वसुधैव कुटुम्बकम् – पूरा विश्व हमारा परिवार है, मोदी जी के इस प्रशंसनीय क़दम को ये श्लोक शाश्वत करता है। भारतीय संस्कृति का दर्शन है सर्वे भवन्तु सुखिना – सब सुखी हो, इसका बड़ा उदाहरण और कहाँ मिलेगा। साथ ही रहीम जी का ये दोहा भी आज के परिपेक्ष में चरितार्थ होता है –
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
हमें यह नहीं भुलना चाहिए कि मोदी जी पूर्व में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे हैं तथा ये मानव सेवा का व्रत उन्होंने वर्षों पहले ही संघ की शाखाओं में घुट्टी की तरह पी लिया था।
समाज का एक ऐसा अंग भी है जो ऐसे समय में हमेशा ही चुप चाप रहते हुए भी एक जागृत समाज सेवी की तरह सेवा कार्यों में लग जाता है। वस्तुत: जब लोग सोचना शुरू करते हैं तबतक संघ के स्वयंसेवक गली कूचे तक पहुँचकर सेवा कार्यों में जुट जाते है। हम सबने पहले भी देखा है कि संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र पर आयी किसी भी तरह की आपदा में समय समय पर हमेशा समाज के साथ खड़े दिखायी पड़ते हैं। विभिन्न सेवा कार्यों से भारत राष्ट्र को, पुनः प्रगति की गति में उन्नत करने के लिए हमेशा अग्रसर रहते हैं।
संघ विपरीत परिस्थितियों में अपनेआप को समयानुसार लचीलेपन के साथ ढाल लेता है, यह कला संघ को डॉ॰ हेडगेवार ने आरम्भ से ही, जब संघ के दूध के दाँत आ रहे थे उस समय संघ के स्वयंसेवको के स्वभाव में डाल दी थी। इसका जीता जागता उदाहरण पूरे संसार ने तब देखा जब संघ पर प्रथम प्रतिबंध 1948 में लगा, फिर १९७५ में दूसरे प्रतिबंध में भी अपने आप को बहुत तत्परता व शालीनता से समय की नज़ाकत को देखते हुए संघ के सभी कार्यों को पूरा करते हुए उस समय को शालीनता व गम्भीरता से निकाला। इसके अलावा प्रतिदिन शाखा जो जेल में ही लगाना, मुख पत्रों का सम्पादन तथा संघ समाज में अपने राष्ट्रवादी विचारों का प्रखरता से प्रचार करते रहना भी जारी रखा। संघ पर तीसरा प्रतिबंध 1992 में बाबरी ढाँचे के ध्वस्त होने पर लगा, जिसको संघ ने बिना विचलित हुए समवैधानिक तरीक़े से बढ़ते हुए सफलता से पार किया। झारखंड की बैठक में संबोधित करते हुए डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि स्वयंसेवकों का चरित्र ही संघ के एंबेसडर के रूप में काम करता है। आपकी छवि को समाज के लोग जिस रूप में देखते हैं, उसी के अनुसार संघ के बारे में भी धारणा बना लेते हैं। इसलिए अपने चरित्र पर विशेष ध्यान दें। फिर हम ऐसे स्वयंसेवकों का निर्माण करें जो विषम परिस्थितियों में भी समाज के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े रहें।
संघ गीत के इन पंक्तियो में स्वयंसेवक का ये स्वभाव परिलक्षित होता है –
प्यार नही व्यापार हमारा, पुरस्कार की चाह नहीं,
उपहारों का मोह नहीं, जयहारों की परवाह नहीं,
स्वयं प्रेरणा से माता की सेवा का व्रत धारा है,
सत्य स्वयमसेवक बनने का सतत् प्रयत्न हमारा है।
सामाजिक व प्राकृतिक विपदाओ में हम सबने पढ़ा कि संघ के स्वयंसेवक कैसे अपनी कमर कसते हैं, संघ के स्वयंसेवको द्वारा इस वैश्विक महामारी में अभूतपूर्व कार्य देखकर पूरा संसार हतप्रभ रह गया है। अगर संघ को समझना है तो इस महामारी में संघ के कुछ कार्यों का उल्लेख अवश्य होना चाहिए। पहले दिन से ही संघ ने योजनाबध तरीक़े से सेवा भारती के माध्यम से ‘’नर सेवा नारायण सेवा’’ का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। ‘’कोई भी भारत वर्ष में भूखा न सोए’’ यह संघ व उसके सहयोगी संगठनो का धयेय वाक्य है। दो लाख से ज़्यादा स्वयंसेवक सेवा कार्य में लगे हुए है, इसमें २००० डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट भी है।
RSS के डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट जो की संघ कि प्रेरणा से NMO ‘National Medicos Organisation’ के बैनर के तले 110 स्थानो पर पूरे भारतवर्ष में सेवा कार्यों में लगे हुए है। लगभग 500 डॉक्टर 18 प्रदेशों में विभिन्न सेवा कार्यों में सलग्न है। इसके अलावा food packets, ration, community kitchens, blood donation, student helpline, दिव्यांग helpline, transport सेवा, गौ सेवा, sex workers को भोजन, transgenders को भोजन, पशु पक्षियों की आहार व्यवस्था, घूमंतु जाती के लिए व्यवस्था, वनवासी बान्धुओ को सहायता आदि और भी कई क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक लगभग 25 प्रदेशों में कार्य कर रहे हैं, सेवा ज़ायदा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचे इसके लिए प्रदेशों को zone wise division किया गया है। केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश से जम्मू कश्मीर तक North इंडिया में महाराष्ट्र, इधर West Bengal, Assam और अन्य East व North East में 9 अप्रेल 2020 तक 2 लाख 9 हज़ार संघ कारकर्ता सेवा कार्यों में जुटे थे जो संख्या अब तक काफ़ी बढ़ चुकी है।
स्वयंसेवक और सेवा कार्यों के अलावा face mask, sanitizers, अस्पतालों की सफ़ाई, isolation wards की सफ़ाई इत्यादि में भी लगे हुए है। कार्यकर्ताओ को social distancing के बारे में भी समाज को जागृत कराने के लिए कहा गया है।
वो लोग जो एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में काम व मज़दूरी करने के लिए आये है, रोज़ कमा कर खाने वाला वो तबक़ा जो अपने परिवार के साथ इन प्रदेशों में बेरोज़गार हो गया है उनको कच्चे व पक्के भोजन के पैकेट बाटने का काम भी संघ के स्वयंसेवक कर रहे है। संघ के कार्यकर्ता इन खाने के पकेटों को पुलिस कर्मियों, सफ़ाई कर्मियों व ऐसे कई अन्य front line में समाज की सेवा में लगे हुए कर्मियों को बाट रहे हैं ।
संघ का सबसे महवपूर्ण कार्य है दैनिक शाखा, पर इस वैश्विक महामारी के शुरू होने के बाद संघ ने अपनी 60,000 दैनिक शाखाओ को रद किया परंतु – ‘online’ शाखाओं को लगाकर अपने कार्य को सुचारू रूप से चलाया भी। इतनी गहरी सोच केवल निस्वार्थ भाव से ही आ सकती है।
हर प्रांत में ये कार्य कैसे हो रहे हैं :-इसको समझने के लिए दिल्ली का उदाहरण लेते हैं। दिल्ली में प्रांत की बात करें तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की संगठनत्मक दृष्टि से 8 विभाग हैं जिसमें 30 ज़िले हैं, उसके नीचे हर ज़िले में 9 नगर हैं तथा हर नगर में 3-4 मंडल हैं तथा हर मंडल में 4-5 तक शाखायें हैं, तो संघ ने बहुत ही तत्परता से इस आपदा से निपटने के लिए इसी संगठनात्मक रचना का प्रयोग किया ताकि सब तक राहत कार्य पहुँच सके और कोई दोहराव ना हो, इसके साथ ही एक central helpline भी शुरू की है। एक दिन में 12000 तक call संघ के 150 tele callers attend करते हैं तथा सम्बंधित ज़िले में उसको forward कर देते हैं, जहाँ से ज़िला सम्पर्क प्रमुख अपने अपने ज़िले के नगर कार्यवाह उस मंडल या शाखा के कार्यकर्ताओं को call की detail देते हैं, जैसे की call करने वाले व्यक्ति की details, किस चीज़ की आवश्यकता है आदि। स्वयमसेवक अपने अपने क्षेत्रों में आवश्यकता के अनुसार आटा, चावल, दाल, मसाले, तेल आदि उनको पहुँचा देते हैं। इसके अतिरिक्त mask, दवाइयों का भी इंतिज़ाम कर रहें हैं। यह सेवा संघ के स्वयमसेवको द्वारा निशुल्क की जाती है। इसी लिए ये पौराणिक कथन सत्य सा प्रतीत होता ता कि ‘’संघे शक्ति कलयुगे’’।
इसके अतिरिक्त पशुओं की भी चिंता संघ के स्वयमसेवको ने की। इसी के तहत गायों के लिए केवल दिल्ली की बात करे तो 75000 किलो चारा 15 अप्रेल तक संघ के स्वयमसेवको ने दिया। स्वयमसेवको ने Street dogs के लिए दूध व पानी का भी ने प्रबंध किया। घूमंतु जाती के 2700 परिवारों को राशन किट का वितरण भी संघ ने किया। बच्चों के लिए नियमित रूप से दूध की व्यवस्था भी संघ के स्वयमसेवको ने की।
सिख समाज ने भी आगे बढ़कर समाज की यथासंभव सेवा की है। वहीं दूसरी ओर यह भी देखने में आया है की छोटे बड़े लाखों NGO’s भारत में हैं, पर लागत है वे केवल tax exemption या foreign funds इकट्ठा करने के लिए हैं, आज समय आ गया है कि समाज अपनी आँखों से देखे कि की इस विपत्ति के समय में कौन समाज की सेवा के लिए तन, मन, धन से खड़ा हुआ है।
रहीम के इस दोहे को संघ के स्वयमसेवक जीवंत करते हुए से प्रतीत होते हैं –
कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहुरीत। बिपति-कसौटी जे कसे, तेही सांचे मीत॥
अर्थात – धन सम्पत्ति हो, सुख के दिन होते हैं, तो अनेक लोग सगे-संबंधी बन जाते हैं। पर सच्चे मित्र व अपने तो वे ही हैं, जो विपत्ति की कसौटी पर कसे जाने पर खरे उतरते हैं। सोना सच्चा है या खोटा, इसकी परख कसौटी पर घिसने से होती है। इसी प्रकार विपत्ति में जो हर तरह से साथ देता है, वही सच्चा मित्र है।
इन सभी कार्यों को करते हुए सभी कार्यकर्ताओं ने पूरे सुरक्षा मानकों, सोशल डिस्टेंस और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन किया, साथ ही सरकार से जारी अधिकृत कर्फ्यू पास के साथ ही सभी सेवा कार्य करने का काम किया। बिना किसी सरकारी मदद के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी सेवा कार्यों को कर रहा है।