नई दिल्ली । राष्ट्र सेविका समिति के प्रबुद्ध वर्ग मेधाविनी सिंधु सृजन, शरण्या संस्था ने दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान में नागरिकता संशोधन कानून और महिला सुरक्षा- देश की प्राथमिकता विषय पर विचार मंथन कार्यक्रम का आयोजन किया। नागरिकता संशोधन कानून पर मुख्य वक्ता राज्यसभा सांसद डॉ सुब्रमण्यन स्वामी और महिला सुरक्षा- देश की प्राथमिकता विषय पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा रेखा शर्मा मुख्य वक्ता थे ।
डॉ स्वामी ने 1947 से प्रारंभ करते हुए अब तक नागरिकता कानून में हुई प्रगति पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि देश के विभाजन के समय डॉक्टर अंबेडकर चाहते थे कि भारत और पाकिस्तान के बीच हिंदू और मुस्लिम आबादी का स्थानांतरण भी पूरी तरह होना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह का झगड़ा होने की संभावना न रहे लेकिन यह प्रस्ताव नेहरु जी ने स्वीकार नहीं किया और 1950 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत के साथ एक संधि की जिसमें दोनों देशों ने अपने-अपने देशों के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने का वचन दिया लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी इस संधि का पालन नहीं किया और वहां के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होने लगे। वर्तमान नागरिकता संशोधन अधिनियम अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से विस्थापित केवल 31313 हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध,जैन और पारसियों को नागरिकता प्रदान करेगा।
डॉक्टर स्वामी ने बताया कि पूर्व में इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह तथा तरुण गोगोई भी ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता देने के पक्षधर रहे हैं और और भारत ने इस संबंध में मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया है। उन्होंने तारिक फतेह, अदनान सामी और तस्लीमा नसरीन के भारत आने का हवाला दिया तथा बताया कि भारतीय नागरिकता कानून की शर्तें पूरी करने पर धार्मिक आधार पर प्रताड़ित मुसलमान जैसे शिया, अहमदिया इत्यादि भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं । डॉ स्वामी ने कांग्रेस और वामपंथियों पर तंज कसते हुए कहा कि उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध किया है तो मेरा कहना है कि मेरा देश कोई धर्मशाला नहीं कि कोई भी आए और चटाई बिछाकर सो जाए।
उपर्युक्त के अतिरिक्त डॉ स्वामी ने धर्म परिवर्तन, एनजीओ, राम मंदिर, गो हत्या प्रतिबंध तथा संस्कृत भाषा इत्यादि विषयों पर अपने विचार रखे।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा रेखा शर्मा ने कहा कि जब तक महिलाएं घर के अंदर और बाहर सुरक्षित नहीं है राष्ट्र निर्माण सार्थक नहीं हो सकता । महिला सुरक्षा के लिए वैचारिक स्तर को बदलना होगा । बच्चों को पालते समय अनुशासन और डर शब्द केवल बेटी पर ही लागू किया जाता है । अकेले कानून में अधिकार दिए जाने से बात नहीं बनती । कानून जिनके लिए बने हैं उन्हें उनका उपयोग करना भी आना चाहिए। पुलिस तथा अन्य सरकारी एजेंसियों को भी अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए क्योंकि अनेक ऐसी शिकायतें आती हैं जिनमें ऐसी एजेंसियों की महिलाओं के प्रति संवेदनहीनता झलकती है। उन्होंने महिला हेल्पलाइन के लिए बनी ऐप, यौन अपराधियों के डेटाबेस बनाने, नुक्कड़ नाटक, पोस्टर इत्यादि के माध्यम से देशभर में महिला सुरक्षा जागरूकता बढ़ाने की बात कही तथा देशभर में सभी शहरों का सुरक्षा ऑडिट किए जाने और साइबर सिक्योरिटी पर बल दिया।
गोष्ठी में राष्ट्रीय सेविका समिति कीअखिल भारतीय सहकार्यवाहिका रेखा राजे, प्रांत प्रचारिका विजया शर्मा, प्रांत कार्यवाहिका सुनीता भाटिया, उत्तरक्षेत्र संपर्क प्रमुख राधा मेहता, सिंधु सृजन की संयोजिका निशा राणा सहित समिति की 100 से अधिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया ।
राष्ट्र सेविका समिति विश्व का सबसे बड़ा महिला संगठन है जिसकी शाखाएं संपूर्ण भारत तथा विदेशों में भी स्थापित हैं। संगठन की विशालता का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत के लगभग 2400 शहरों और गांवों में इसकी लगभग 2800 शाखाएं नियमित रूप से चलती हैं । भारत के अलावा 16 अन्य देशों में भी समिति की उपस्थिति है । समिति महिलाओं के शारीरिक मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए कार्य करती है ताकि राष्ट्र के सामाजिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन में उनका अधिकतम योगदान हो।
मेधाविनी सिंधु सृजन वर्ग में विभिन्न कार्य क्षेत्रों से लेक्चरर, डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट एवं उद्यमी बहने जुड़ी हुई हैं। प्रबुद्ध वर्ग का प्राथमिक कार्य अपने विचारों को चर्चा, गोष्ठी, सेल्- डिफेंस ट्रेनिंग, हेल्थ चेकअप, सेमिनार, लेखन के द्वारा प्रबुद्ध महिलाओं एवं युवाओं में पहुंचाना है। समिति की विचारधारा में भारतीय चिंतन समाहित है जिसके प्रचार-प्रसार के लिए भी वह कार्य करती है। शरण्या संस्था लगभग 7 वर्ष पूर्व प्रबुद्ध वर्ग के ओपिनियन मेकर के तौर पर स्थापित किया गया था जॉब सेवा विस्तार तथा राष्ट्र सेविका समिति के विभिन्न अंगों के बीच संवाद स्थापित करने, प्रशिक्षण तथा मेडिकल शिविर इत्यादि आयोजित करने का काम करती है।