मिलिए बॉलीवुड के उस एक बड़े परिवार से जो एक फीसदी भले फिल्म प्रोडयूसर की श्रेणी में आते हैं
नायक नहीं खलनायक हूं मैं … बॉलीवुड तो स्वयं चीख चीख कर गा बजा कर ये बता ही चुका है । बॉलीवुड के अंडरवर्ल्ड कनेक्शन किसी से छिपे नहीं है । खान ही खान क्यों छाए हुए हैं ये भी छिपा नहीं है । सुशांत सिंह राजपूत हादसे ने बॉलीवुड की गंदगी को बाहर ला दिया है । वैसे तो फिल्मों , टीवी सीरियलों और अब वेब सीरीज़ में ये गंदगी हमारे युवा वर्ग के सामने झूठे आदर्श प्रस्तुत करती है । कंगना रानौत जिस तरह से हिम्मत करके बॉलीवुड के बड़े सितारों .तथाकथित यूथ आईकॉन, बड़े मंहगे सितारों के असली चेहरे सामने ला रही है उसमें मुझे कोई हैरानी नहीं हो रही है । कंगना ने कहा 99 प्रतिशत सितारे नशीली दवाएं लेते हैं अश्लील पार्टियां करते हैं । पार्टियों में नेता , उद्योगपति भी आते हैं । अब ये जो एक प्रतिशत बचे वो कौन हैं ? बहुत अच्छे सिद्धांतवादी परिवार भी बॉलीवुड में हैं । एक परिवार है जिनसे मेरा दस साल से बहुत अच्छा परिचय है । अब तक कभी लिखा नहीं क्योंकि अपने निजी रिश्तों वो भी जब कोई बहुत बड़ा नाम हो बिना किसी कारण फेसबुक पर लिखने का औचित्य नहीं बनता । अब पिछले दो महीने से चर्चा ही बॉलीवुड की है । आज मैं आपको मिलाने जा रहीं हूं बॉलीवुड के अच्छे लोगों से —- हिंदी फिल्म जगत का किसी ज़माने में एक बहुत बड़ा नाम रहा है राजश्री प्रोडक्शंस । स्वर्गीय तारा चंद बडजात्या के इस प्रोडक्शन हाऊस ने साफ सुथरी फिल्में दीं जिन्हें समाज ने सिर आंखों पर लिया । पारिवारिक मूल्यों , प्रेम , स्नेह , मित्रता पर बनी उनकी साफ सुथरी फिल्में हमेशा हिट रहीं जिनमें प्रमुख हैं — दोस्ती , नदिया के पार , जीवन मृत्यु , पिया का घर , गीत गाता चल , तपस्या , दुल्हन वही जो पिया मन भाए , अंखियों के झरोखे से , सारांश , मैनें प्यार किया , हम आपके हैं कौन आदि हैं । राजश्री प्रोडक्शन की फिल्में पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखी गयीं । उनकी फिल्मों का संगीत यादगार और सदाबहार है । राजस्थान के कूचामान शहर में मारवाड़ी जैन परिवार में पैदा हुए जैन संस्कारों में पले बढ़े ताराचंद बड़जात्या हिंदी सिनेमा का इतना बड़ा नाम रहे जो शायद आज कोई भी नहीं है । ये परिवार आज भी अपने नैतिक मूल्यों , जैन धर्म के सिद्धांतो का पूरा पालन करता है भले ही उनको आर्थिक लाभ हो या न हो । स्वर्गीय ताराचंद बड़जात्या के सिर न तो सफलता का नशा चढ़ा था न ही उन्होनें वो सब रास्ते और जीवन शैली अपनायी जो उनके समकालीन अन्य सफल लोगों ने सफलता मिलते ही अपना ली थी । जिस तरह की साफ सुथरी पारिवारिक मूल्यों की फिल्में राजश्री प्रोडक्शंस बनाता है अपने निजी जीवन में स्वयं भी उन पर चलता है और व्यवहार में अति सरलता और सादगी है । आप कहेंगे मैं इतने दावे के साथ कैसे कह सकती हूं । मैं परिवार से पिछले दस वर्ष से निकटता के आधार पर ये दावे के साथ कह सकती हूं । वर्ष 2010 में ऋषिकेश परमार्थ आश्रम के स्वामी चिदानंद सरस्वती और साध्वी भगवती जी ने कैलास मानसरोवर चलने के लिए मुझ से पूछा । न करने का तो सवाल ही नहीं था । ये भोलेनाथ की अपार कृपा थी कि मुझे ये अवसर दिया जा रहा था । उस समय में ज़ी न्यूज़ में थी और मंथन कार्यक्रम बनाया करती थी । कहते हैं जब सौ जन्मों के पुण्य उदय होते हैं तो भोले नाथ के परम धाम कैलास मानसरोवर जाने का सौभाग्य मिलता है । भोले नाथ जी बुला रहे थे ऑफिस ने भी जाने की अनुमति दे दी । स्वामी चिदानंद जी के साथ बहुत सारे एनआरआई और भारत के बड़े बड़े उद्योगपति और बॉलीवुड के लोग भी इस ग्रुप में जा रहे थे । हम नेपाल के रास्ते गए थे इसलिए काठमांडु से आगे बढ़ना था । काठमांडु हवाई अड्डे पर विवेक ओबराय की मां वसुधा ओबराय से मिलना हुआ, वे परम शिव भक्त हैं और चौथी बार कैलास मानसरोवर जा रही थी । उनके साथ उनके समधी भी थे उनकी बेटी के सास ससुर । हम दो दिन काठमांडू के एक पांच सितारा होटल में रूके । यात्रा कुल मिला कर 17 दिन की थी । जब हम लौटकर फिर नेपाल आए तो स्वामी जी और साध्वी भगवती जी का इंटरव्यू किया । साध्वी जी ने कहा रजत बड़जात्या का भी इंटरव्यू कर लो । मैनें पूछा वो कौन है ? उन्होनें कहा हिंदी फिल्में बनाने वाले राजश्री प्रोडक्शंस वालों का युवा बेटा जो न शराब पीता है न सिगरेट , न प्याज लहसुन खाता है । मैनें कहा ठीक है साध्वी जी आप उनको फोन कर दीजिए मैं कर लेती हूं उनका इंटरव्यू । अंदर से मैं तो बहुत खुश हो गयी कि चलो जिनकी फिल्में देख देख कर बड़े हुए हैं आज उनसे मिलना होगा । मन ही मन सोचा इतने बड़े लोग हैं वो भी मुबंइया फिल्म इंडस्ट्री के पता नहीं कितना नखरा होगा ।
कैलास मानसरोवर यात्रा करके लौट कर सब बहुत प्रसन्न थे । भगवान भोले नाथ के परमधाम कैलास पर्वत के दर्शन , पवित्र मानसरोवर के किनारे स्वामी जी के आश्रम में 6 दिन रूकना शब्दों में वर्णन कठिन है । प्रतिदिन मानसरोवर पूजन , रूद्राभिषेक , हवन , कीर्तन और स्वामी चिदानंद जी का सत्संग । सुप्रसिद्ध वादक शिवामणि भी हमारे ग्रुप में थे उन्हें कोई भी वस्तु दे दो यहां तक कि खाली डिब्बे को भी वे अपना वाद्य बना लेते हैं । स्वामी जी के गुरूकुल के ऋषि कुमार हारमोनियम ,तबला , झांझ , खड़ताल बजाते और स्वामी जी बहुत मधुर स्वर में भजन गाते हैं । सत्संग के समय बहुत से लोगों की आंखों से झर झर आंसू बहते रहते । सच कहूं तो कैलास मानसरोवर यात्रा ने मेरे जीवन को भी एक नयी दिशा दी ।
स्वामी जी प्रतिदिन सत्संग में कहते थे ये बाहरी यात्रा है अंतर्यात्रा करो , और वो भी कम से कम सामान के साथ , एकस्ट्रा बैग- बैगेज यानि जीवन की बेकार की बातों घटनाओं को साथ लेकर मत चलो । रास्ते भर जहां भी रूकते नदियों के किनारे ही सांगे गुरंग नेपाल की ऋचा ट्रेवल कंपनी का मालिक जिन्होने पूरी यात्रा का आयोजन किया था । कैंप लगाता भोजन वहीं होता भोजन से पहले नदियों की पूजा और आरती । आलौकिक सुख मन में समेट कर सब लौटे थे । काठमांडू में साध्वी भगवती जी ने रजत बड़जात्या से समय तय करवा दिया । हमारा कैमरा सेट था रजत आए उनकी माता जी उर्मिला बड़जात्या भी उनके साथ आईं उनके मामा और मामी भी । मामा -मामी दिल्ली में रहते हैं । दिल्ली की पॉश मार्किट सुंदरनगर में उनकी एंटिक सामान की दुकान है । यही रजत बड़जात्या हैं देख कर यकीन ही नहीं हुआ । पूरी यात्रा में अति विनम्र , शालीन ,सबकी मदद करना और कहीं भी दिखावा नहीं अपने बड़े होने का गुमान या घमंड नहीं । रजत ने कैलास मानसरोवर के अपने अनुभव और अपनी जीवन शैली के बारे में बताया ।
कैमरा ऑफ होने के बाद उर्मिला जी से लंबी बात हुई । मैनें उर्मिला जी से पूछा बॉलीवुड का इतना बड़ा परिवार हो आप लोग , कितनों को आपने ब्रेक दिया यहां तक कि सलमान खान भी आज जो है वो राजश्री प्रोडक्शंस के कारण ही है । आप अपने बच्चों को इतना संयमित कैसे रख पायीं । उन्होनें कहा — “मेरे श्वसुर तारा चंद जी अपने सिद्धांतो के बहुत पक्के थे । एक ज़माना था राजश्री प्रोडक्शंस हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा और अग्रणी फिल्म निर्माता और डिस्ट्रिब्यूटर था । घर में होटल में बड़ी बड़ी पार्टियां होतीं थीं लेकिन कभी भी शराब और मासांहार सर्व नहीं किया जाता था ।
राजकपूर मेरे ससुर को बहुत ताने देते थे कि क्या तू घास फूंस और गंगाजल की पार्टी करता है लेकिन उन्होनें किसी की एक नहीं सुनी । अपने सिद्दांतो पर अडिग रहे । उनके बेटे और पोते भी उन्हीं की राह पर चले “। उर्मिला जी तारा चंद बडजात्या के पुत्र अजित बड़जात्या की पत्नी हैं । वे स्वयं भी कट्टर जैन परिवार से हैं । उनके पिता एंटिक में डील करते थे । पहले उनकी दुकान कनॉट प्लेस में थी । अपने विदेशी ग्राहकों को भी वे शुद्ध सात्तविक भोजन खिलाते थे । यदि वे मांसाहारी खाते थे तो साफ कह देते थे कि मांसाहारी की पेमंट आप स्वयं करना मैं नहीं करूंगा । यानी ये ऐसा परिवार है जो किसी भी कीमत पर अपने सिद्दांतो से समझौता नहीं करता । भले ही व्यापार में घाटा हो जाए । ये तो हुई सिद्दांतो की बात इनकी जीवन शैली और व्यवहार भी बहुत सरल है । यात्रा के बाद उर्मिला जी के साथ निरंतर संपर्क रहा । जब भी वे दिल्ली अपने भाई से मिलने आती फोन करती और मिलना होता । उनकी बेटी रुचि से भी संपर्क हुआ । रुचि सरलता,सादगी की प्रतीक है । बॉलीवुड की लड़कियों जैसी जीवन शैली बिल्कुल नहीं । मेरी एक परिचित के बेटे की शादी 2011 में मुबंई में थी । मैं शादी में गयी । उर्मिला जी ने कहा हमारे घर ज़रूर आना उन्होनें पता भेजा और लगातार फोन भी करती रहीं । सच कहूं तो मुझे बहुत संकोच लग रहा था मैं साधारण मध्यम वर्गीय परिवार की हिंदी पत्रकार ये इतने बड़े लोग दुविधा में मन था । लेकिन उनका और रूचि का आग्रह निरंतर बना रहा । उन्होनें कहा नाश्ता और लंच हमारे यहां ही होगा । शाम को चार बजे मुबंई से मेरी राजधानी से वापसी थी । बहुत संकोच के साथ मैं उनके घर गयी । समुद्र के किनारे वर्ली सी फेस में शानदार आलीशान बंगला । सिक्योरिटी के पास उन्होने मेरे लिए संदेश छोड़ा हुआ था । जैसे ही मैं उनके घर पहुंची परिवार के अनेक सदस्य मेरे स्वागत के लिए आ गए । उनका संयुक्त परिवार है बिल्कुल वैसे ही जैसा उनकी फिल्मों में दिखाया जाता है । सब लोग आत्मीयता और स्नेह से मुझ से बाते करते रहे । बहुत सारी बातें अनेक विषयों पर मेरा संकोच और भय निराधार साबित हुआ । लगा मैं तो अपने ही जैसे किसी परिवार में आयी हूं । बहुत अच्छा आथित्य किया नाश्ता ड्राईंग रूम में ही कराया । दोपहर के भोजन के लिए अपने डॉईनिंग रूम में ले गए , 15 कुर्सियों वाली विशाल डाईनिंग टेबल जिसमें रोटेटिंग सर्विंग ट्रैक है । डिशेज़ इस ट्रेक पर रहती हैं और घूमते हुए बारी बारी से सबके पास पहुंचती रहती हैं । उस दिन उनके घर साऊथ इंडियन भोजन का दिन था । अनेक तरह के डोसे , इडली ,उत्पम ,सांभर, लेमन राईस आदि आदि । उर्मिला जी ने बताया इतना बड़ा परिवार है इसलिए सब की पसंद का खाना एक दिन ना बना कर अलग अलग दिन तय कर रखें हैं । पूरे परिवार का व्यवहार बहुत ही अच्छा और प्रेम भरा कहीं भी अपने को बड़ा दिखाने की कोशिश नहीं । उस दिन लगा कि जो राजश्री प्रोडक्शंस अपनी फिल्मों में दिखाता है अपने असली जीवन में भी वैसा ही है । सूरज बड़जात्या भी लंच की टेबल पर थे । शायद ऐसे लोगों के लिए ही फल वाले वृक्ष झुके रहते हैं कहावत बनी है । लगभग तीन बजे मैनें कहा कि मैं रेलवे स्टेशन के लिए टैक्सी बुलवा लेती हूं । लेकिन अजीत बड़जात्या जी ने कहा नहीं उर्मिला तुम जाओ अच्छे से ट्रेन में सीट पर बिठा कर आना , रास्ते के लिए सैंडविच और नींबू पानी बनवा कर दे दो । मैने कहा राजधानी ट्रेन है सब कुछ मिंलेगा इसलिए ज़रूरत नहीं है । जब हम कार में बैठ गए तो उन्होनें उर्मिला जी से कहा वर्ली सी लिंक से होकर जाना इनको दिखा दो । लेकिन दिल को छू लेने वाला उनका जो जेसचर था वो मैं कभी नहीं भूल सकती । जैसे कोई घर का कोई बड़ा अपने बच्चों को मेला बाज़ार भेजते हुए पैसे देता है उन्होनें उर्मिला जी से पूछा पैसे हैं इससे पहले कि वो कोई उत्तर देतीं उन्होनें अपनी जेब से निकाल कर दौ सो रूपए थमा दिए । उन दिनों वर्ली सी लिंक का एक तरफ का टिकट 75 रूपए था शायद । मुझे लगा मैं अपने नाना मामा के घर से लौट रही हूं इतना प्यार इतना स्नेह लेकर ।
2014 में फिर मुंबई जाना हुआ इस बार मैं अपने भांजे विनायक के दाखिले के बारे में गयी थी । नरसी मूंजी कॉलेज में मेरिट में विनायक का नाम आ गया था । जी न्यूज़ में मंथन कार्यक्रम बनाने के दौरान देश विदेश के बहुत सारे दर्शक निरंतर संपर्क में रहते थे । प्रोग्राम की टी आर पी रिकॉर्ड तोड़ थी कम से कम 22-25 और अधिक 55 -60 । दर्शकों के बहुत निमंत्रण, फैन मेल, पत्र , कार्ड आते रहते थे । एक हमारी जबरदस्त और नियमित दर्शक थीं RENU JAIN GUPTA मुंबई से । वे ऑन लाइन कॉल करतीं, कार्यक्रम पर कविताएं लिख कर भेजतीं , सुंदर सुदंर कार्ड बना कर भेजतीं । हम अपने दर्शकों की भागीदारी बहुत रखते थे । रेणु जी को जब पता चला कि मैं मुंबई आ रही हूं उन्होनें कहा आप मेरे घर के अलावा कहीं नहीं रूकोगी । आप मेरी बहन हो । रेणु जी का आत्मीय निमंत्रण स्वीकार करना ही पड़ा । इससे पहले रेणु जी और उनके पति दिल्ली आए थे ज़ी न्यूज़ के ऑफिस मिलने आए थे और हमारे घर भी आए थे । उर्मिला जी और रूचि को भी पता था कि मैं मुबंई आ रही हूं । सुबह की प्लाइट से मैं बांबे पहुंची सारा दिन दाखिले की भागदौड़ में बिता । शाम को उर्मिला जी का फोन आया उन्होने कहा आप सारा दिन थक गयी होगीं । आप जहां रूकी हो वहां का पता भेजो मैं और रूचि मिलने आ जाते हैं ।
मैने रेणु जी से पूछा । रेणु जी के पति पवन जैन वैसे एक बहुत बड़ी कंपनी में एच आर हेड थे उन दिनों ,और कंपनी ने पॉश इलाके में उनको दो बेडरूम फ्लैट दे रखा था । रेणु जी घबरा गयीं अरे बाप रे इतने बड़े लोग मैं कहां बिठाऊंगी क्या खिलाऊंगी मेरा तो छोटा सा फ्लैट है । मैनें उनको आश्वस्त किया कि वो बहुत साधारण, सरल लोग हैं फिल्मी नाज नखरे और अदाएं नहीं है । खैर रेणु जी किसी तरह तैयार हुईं संकोच के साथ । उर्मिला जी ने कहा हम दोनों डिनर करके आयेंगें फिर आराम से बैठ कर बात कर सकते हैं वरना जाने की जल्दी रहती है । दोनों मां बेटी आयीं । और रेणु जी से ऐसा घुल मिल गयीं जैसे कभी से जानती हों । जो परिवार 1947 से बॉलीवुड में जमा हुआ हो जिसका इतना बड़ा काम और नाम हो उनका ऐसा सीधा सरल व्यवहार शुद्ध सात्विक जीवन शैली । ज्यादा पैसा कमाने के लिए कभी अश्लीलता का सहारा भी नहीं लिया । आठ दशक से ज्यादा हो गए फिल्म इंडस्ट्री में आज तक परिवार किसी भी विवाद या गलत बात को लेकर मीडिया की सुर्खियों में नहीं आया । जितनी फिल्में बनायी वो सब हिट रहीं । बॉलीवुड में जिस तरह का वातावरण है, जहां ब्रैंड एंबेसेडर बनाने वाली कंपनियां भी सितारों से कहती हैं हिंदुत्व , परिवार ,राष्ट्रवाद की बात मत करो तभी तुमसे कांट्रेक्ट साईन करेंगें । ऐसे वातावरण में राजश्री प्रोडक्शंस की राह भी आसान नहीं है । लेकिन ये परिवार आज भी अपने मूल्यों पर अडिग है । कंगना रानौत जिन एक फीसदी परिवारों के अच्छा होने की बात कह रही हैं बड़जात्या परिवार उन्हीं एक फीसदी में से एक है ।