राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो द्वारा दिनांक 07 जुलाई, 2017 को जय सिंह रोड, नई दिल्ली स्थित एन डी एम सी कन्वेंशन सेंटर के सम्मेलन कक्ष में मुख्य अतिथि महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र के कर-कमलों से ऑनलाइन अनुवाद-प्रशिक्षण प्लेटफार्म का लोकार्पण किया गया। इस मौके पर प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली, भाषाविद् और तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. ओम विकास, भाषा-विज्ञानी और हंगेरियन तथा हिंदी के प्रसिद्ध अनुवादशास्त्री डॉ. विमलेश कांति वर्मा सहित राजभाषा विभाग के सचिव श्री प्रभास कुमार झा, संयुक्त सचिव डॉ. बिपिन बिहारी सहित केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/उपक्रमों आदि के अधिकारी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में बोलते हुए प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि अनुवाद की उपस्थित बहुत व्यापक है। भारत जैसे विशाल देश में अनेक भाषाएं तथा समुदाय हैं और उनके बीच खुद को व्यक्त करने के लिए अनुवाद एक सशक्त माध्यम है। इतिहास का ज्ञान, विभिन्न संस्कृतियों की जानकारी अनुवाद द्वारा ही संभव है। दुनिया के महान ग्रंथ अनूदित होकर ही आम-जन तक पंहुचते हैं। उन्होंने कहा कि आज दुनिया एक विशाल गांव के रूप में परिलक्षित हो रही है और एक दूसरे को समझने में अनुवाद का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। केंद्रीय अनुवाद ब्यूरों, राजभाषा विभाग द्वारा ऑनलाइन अनुवाद-प्रशिक्षण प्लेटफार्म को अत्यंत सकारात्मक बताते हुए श्री मिश्र ने कहा कि अनुवाद की दिशा में यह एक क्रांतिकारी पहल है और इससे सभी लोग लाभान्वित होंगे। उनका कहना था कि आज भी स्वास्थ्य, विधि तथा न्याय जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनुवाद की दिशा में और कार्य करने की आवश्यकता है तभी सरकार की विभिन्न योजनाओं में सरकार और जनता के बीच संवाद कायम हो सकेगा। केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो को अधिक सक्षम बनाने को जरूरी बताते हुए प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने राजभाषा विभाग द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की और विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन को सार्थक प्रयास बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राजभाषा विभाग के सचिव श्री प्रभास कुमार झा का कहना था कि हिंदी बोलने में संकोच या झिझक को त्यागना होगा। उनका कहना था कि आज हिंदी विश्व में सबसे ज्यादा बोली व समझी जाने वाली भाषा है और उन्हें खुद को हिंदी भाषी होने पर गर्व की अनुभूति होती है। हिंदी की प्रकृति को सामासिक तथा गंगा-जमुनी बताते हुए श्री प्रभास कुमार झा ने कहा कि इसके साथ-साथ हिंदी की प्रकृति स्वाधीन है। हिंदी की मुक्त प्रकृति का ही परिणाम है कि हिंदी भाषा में अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दों को ग्रहण करने की अद्भुत क्षमता है। राजभाषा विभाग द्वारा तैयार की जाने वाली वृहत शब्दावली का जिक्र करते हुए श्री झा ने बताया कि इस तरह की शब्दावली के विकास से आम-जन के लिए एक ही जगह पर विस्तृत शब्दकोष प्राप्त होगा। इसमें परिभाषित शब्दों के साथ-साथ सरल तथा प्रचलित शब्दों को भी समाहित किया जाएगा। उनका कहना था कि केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो द्वारा विकसित ऑनलाइन अनुवाद-प्रशिक्षण प्लेटफार्म से राजभाषा के कार्यान्वयन में प्रगति होगी तथा सभी को इसका लाभ होगा।
इससे पूर्व कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए राजभाषा विभाग के संयुक्त सचिव डॉ. बिपिन बिहारी ने कहा कि सरकारी योजनाओं का लाभ, संविधान में प्रदत्त अधिकार तथा न्याय को जन-जन तक पंहुचाने में अनुवाद की महती भूमिका है। उनका कहना था कि देश के कोने-कोने में स्थित भारत सरकार के कार्यालयों, उपक्रमों, संगठनों तथा बैंकों आदि में अनुवाद की व्यवस्था दशकों से चली आ रही है और राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय के अधीन केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो द्वारा ऑन लाइन अनुवाद प्रशिक्षण के ई-लर्निंग प्लेटफार्म से इस व्यवस्था से जुड़े सभी केंद्र सरकार के अधिकारियों/कर्मचारियों को अनुवाद कौशल का बुनियादी प्रशिक्षण देने में सहायता तो मिलेगी ही साथ ही अनुवाद की बारीकियों से भी अवगत किया जा सकेगा।
दो सत्रों में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो के निदेशक डॉ. एस एन सिंह ने ऑनलाइन अनुवाद-प्रशिक्षण प्लेटफार्म की उपयोगिता का बताते हुए कहा कि भारत सरकार की “सुशासन-चुनौतियां और अवसर” कार्ययोजना के अंतर्गत सरकारी तंत्र में कौशल विकास पर बल दिया गया है । इसी के मद्देनज़र राजभाषा विभाग ने केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो को अनुवाद प्रशिक्षण का ई-शिक्षण प्लेटफार्म तैयार करने का कार्य सौंपा। केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में इस प्रयोजन से एक टीम का गठन किया गया। ब्यूरो के संयुक्त निदेशक के नेतृत्व में दो अनुसंधान अधिकारियों की परिश्रमी और योग्य टीम ने अत्यंत उत्साह और समर्पण से इस कार्य को अंजाम दिया। उनका कहना था कि अनुवाद बड़ा व्यापक विषय है तथा अनुवाद का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन है हमारी सभ्यता । इसलिए हमारे विमर्श में अनुवाद भाषा-संवाद के बहाने सभ्यता संवाद है । हमारा मानना है कि मानव सभ्यता के विकास में संघर्ष के चाहे जो भी कारण रहे हों, समझौते की शुरूआत भाषाओं के बीच विचारों की आवाजाही से ही हुई होगी । इसलिए अनुवाद को भाषा-संवाद कहने में किसी तरह की अतिरंजना कत्तई नहीं है। उन्होंने ऑनलाइन अनुवाद-प्रशिक्षण प्लेटफार्म के बारे में विस्तृत जानकारी दी और बताया कि अभी इस श्रृंखला में 21 पाठ तैयार किए गए हैं जिनमें अनुवाद प्रशिक्षण का परिचय, प्रशासनिक भाषा और अनुवाद, वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों का अनुवाद, अनुवाद में व्यतिरेकी विश्लेषण की समस्या तथा हिंदी –अंग्रेजी वाक्य संरचना और अनुवाद जैसे अन्य महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में अपना वक्तव्य देते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली ने कहा कि पहले अभिव्यक्ति है फिर अनुवाद इसलिए मूल सोच अपनी भाषा में ही होनी चाहिए। इससे अनुवाद स्वत: ही सरल और सुस्पष्ट होगा तथा सरलीकरण की आवश्यकता भी नहीं रहेगी। भाषाविद् और तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. ओम विकास का कहना था कि मशीनी अनुवाद, अनुसृजन, मानवसृजन, सुबोध एवं सरल प्रारूप, तकनीकी शब्दावली एवं प्रयोगात्मकता पर विशेष बल देने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में बोलते हुए भाषा-विज्ञानी और हंगेरियन तथा हिंदी के प्रसिद्ध अनुवादशास्त्री डॉ. विमलेश कांति वर्मा का कहना था कि देश में 1652 भाषाएं हैं और हिंदी सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली भाषा है अत: इसे संप्रेषण के लिए सेतु का कार्य करना ही होगा। द्वितीय सत्र में अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने समारोह को अत्यंत सफल बताते हुए मौलिक चिंतन, लेखन तथा कार्यान्वयन पर विशेष बल देने को कहा।
राजभाषा भारती के विशेषांक का हुआ विमोचन
कार्यक्रम के दौरान राजभाषा विभाग द्वारा विगत 40 वर्षों से प्रकाशित होने वाली पत्रिका राजभाषा भारती पत्रिका के 150 वें अंक का विमोचन किया गया। विदित हो कि राजभाषा भारती पत्रिका की 5000 प्रतियां केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों/विभागों को निशुल्क वितरित की जाती है। पत्रिका ने वर्ष 1978 से आजतक 150 अंकों का सफर सफलतापूर्वक तय कर लिया है।
इस अंक में विशेषतय: राष्ट्रीय एकता एवं राजभाषा हिंदी को केंद्रित कर देश के विभिन्न हिस्सों से विद्वानों के लेख मंगवाए गए थे। पत्रिका का मुख्य आकर्षण माननीय गृह मंत्री जी का साक्षात्कार है जिसमें उन्होंने राजभाषा हिंदी से संबंधित अपने विचार पाठकों तक प्रेषित किए हैं। हिंदी के जाने-माने साहित्यकार, आलोचक तथा हिंदी सेवी डॉ. नामवर सिंह जी के साक्षात्कार ने इस अंक में चार चांद लगाने का कार्य किया है।