बोल बिंदास-कोरोना महामारी की वजह से बच्चों पर मड़राते वैश्विक संकट पर चर्चा के लिए आयोजित लॉरिएट्स एंड लीडर्स फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन समिट का समापन नोबेल विजेताओं, वैश्विक नेताओं और युवा संगठनों ने इस मांग के साथ किया कि कोविड-19 से प्रभावित समाज के सबसे कमजोर और हाशिए के बच्चों की सुरक्षा के लिए तत्काल एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद दी जाए। कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के अमेरिका चैप्टर द्वारा आयोजित इस समिट में पिछले दो दिनों के दौरान कोविड-19 से तेजी से उभरते वैश्विक बाल अधिकार संकट पर गहन विचार-विमर्श किया गया और इसके समाधानों के लिए विश्व समुदाय से फौरन कार्रवाई करने का आह्वान भी किया गया। ताकि संकट के समय एक पूरी पीढ़ी को बर्बाद होने से बचाया जा सके।
इस अवसर पर लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट के संस्थापक नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी ने विश्व समुदाय और सरकारों से बच्चों को उनका उचित हिस्सा (फेयर शेयर) देने की वकालत की। उन्होंने कहा, “समिट में वक्ताओं द्वारा प्रदर्शित की गई नैतिक प्रतिबद्धता और करुणा ने कोविड-19 संकट से बच्चों को उबारने हेतु राहत उपायों के तौर पर एक ‘फेयर शेयर’ का आह्वान किया है। बच्चों के राहत स्वरूप जो वैश्विक रुख रहा है, वह घृणित रूप से असमान, अन्यायपूर्ण और अनैतिक है। लॉरिएट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन द्वारा जारी ‘फेयर शेयर रिपोर्ट’ से पता चला है कि दुनिया की सरकारों ने कोविड-19 से समाज के सबसे कमजोर लोगों को बचाने हेतु जो 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर देने का वायदा किया था, उसमें से उनने अभी तक केवल 0.13 प्रतिशत ही आवंटित किया है।”
समिट में महामारी के विनाशकारी आर्थिक और सामाजिक प्रभावों के परिणामस्वरूप दुनिया के बच्चों के सामने पेश हो रही चुनौतियों पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया। समिट में जारी “फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन रिपोर्ट” में इस बात का खुलासा भी हुआ कि महामारी के दौरान बाल श्रम, ट्रैफिकिंग, स्कूल से बाहर होने वाले बच्चों की संख्या, गुलामी और बाल विवाह में बढ़ोतरी होगी। ऐसे में अगर समाज के कमजोर और हाशिए पर पड़े बच्चे सरकारों की प्राथमिकता में शामिल नहीं होते हैं, तो कोई कारण नहीं कि लाखों लोगों की जान खतरे में नहीं पड़ जाए। उल्लेखनीय है कि दुनिया के सबसे कमजोर और हाशिए पर पड़े 20 प्रतिशत बच्चों और समुदायों की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष रूप से एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग पर अमीर देशों से फौरन कार्रवाई करने का आह्वान किया गया है। इस मांग पर अपना समर्थन जाहिर करने और हस्ताक्षर करने के लिए वैश्विक नेताओं और नीति निर्माताओं से एक खुला आह्वान भी किया गया है, जिसे इस महीने के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान प्रस्तुत किया जाएगा।
लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन समिट में नोबेल विजेताओं और वैश्विक नेताओं सहित दुनिया के 40 से अधिक देशों के सरकारी प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी और 5000 से अधिक नीति निर्मातओं, बाल अधिकार कार्यकर्ताओं, अकादमिक जगत के लोगों, बुद्दिजीवियों और युवा नोताओं ने हिस्सा लिया। श्री कैलाश सत्यार्थी की अगुआई में आयोजित लॉरिएट्स एंड लीडर्स सम्मिट फॉर चिल्ड्रेन में शामिल प्रमुख हस्तियों में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा, स्वीडन के प्रधानमंत्री श्री स्टीफन लोफवेन, भारत की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमति स्मृति ईरानी, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस घेब्रेयसस, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक श्री गाय राइडर, यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनेरिटा फोर, ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गार्डेन ब्राउन, नीदरलैंड्स के विदेश, व्यापार और विकास मंत्री एचई सिग्रिड काग, आर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनोमिक को-आपरेशन एंड डिवेलेपमेंट (ओईसीडी) के महासचिव एचई जोस एंजेल गुरिया के नाम शामिल है। नोबेल शांति विजेताओं में श्रीमती लेहमाह गॉबी, श्रीमती तवाकोल कर्मन, श्री मुहम्मद यूनुस, श्री जोस रामोस होर्ता, डॉ. रिगोबर्टा मेन्चू और श्री जोडी विलियम्स सहित कई अन्य वैश्विक नेताओं ने भी सम्मेलन को संबोधित किया। इसके अलावा कई पूर्व बाल मजदूरों और छात्र नेताओं ने भी सम्मेलन को संबोधित किया।
समिट के समापन अवसर पर श्री कैलाश सत्यार्थी ने कोविड-19 से प्रभावित असहाय और वंचित बच्चों के लिए दुनिया को एकजुट होने का आह्वान किया। श्री सत्यार्थी ने कहा, ‘‘ ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’ का आह्वान सिर्फ एक मांग नहीं, बल्कि दुनियाभर के नैतिक नेतृत्व का न्याय के लिए एक शंखनाद है। हम अपने बच्चों को असहाय नहीं छोड़ेंगे। फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के प्रति हमारा सामूहिक वायदा है। इसके साथ ही दुनिया की सरकारों से हम सामूहिक रूप से इसकी कार्रवाई का आह्वान करते हैं। हम यहां यह घोषित कर रहे हैं कि कोविड-19 के दौरान और उसके बाद संकट से निपटने के लिए हमेशा की तरह उनके व्यवहार को इस बार बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम और अधिक बाल श्रम, ट्रैफिकिंग और बाल दासता को स्वीकार नहीं करेंगे। हमारे पास कार्रवाई करने के अलावा अब और कोई विकल्प नहीं है। हमारे बच्चों के लिए उनके अधिकार, उनकी स्वतंत्रता, उनका भविष्य, उनका फेयर शेयर चाहिए।”
इस अवसर पर स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोफवेन ने कहा, “मैं अपने समन्वित प्रयासों को आगे बढ़ते देखना चाहता हूं, ताकि हम महामारी से उत्पन्न समस्या के समाधान के तौर पर एक उचित, स्थायी और लोकतांत्रिक अधिकारों को सुनिश्चित कर सकें। मैं कमजोर और हाशिए के बच्चों की सुरक्षा के बाबत इस समिट के जरिए हो रही अंतरराष्ट्रीय पहल और प्रतिबद्धता का स्वागत करता हूं।” वहीं नीदरलैंड्स के विदेश, व्यापार और विकास मंत्री एचई सिग्रिड काग ने गरीब और वंचित बच्चों के लिए अलग से राहत कोष बनाने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा, “मैं आपके इस प्रयास की सराहना करता हूं जिसमें कोविड-19 से प्रभावित समाज के कमजोर और हाशिए पर के बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के बाबत एक राहत कोष बनाने की बात की जा रही है।”
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनेरिटा फोर ने भी विश्व समुदाय से कोविड-19 से प्रभावित बच्चों पर खास ध्यान का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हमें बच्चों के बुनियादी अधिकारों को प्राप्त करने की तत्काल आवश्यकता है। हमें उन लोगों और समुदायों के साथ खड़ा होना चाहिए जो बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे हैं।” विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने कहा, “हम अपने बच्चों और युवाओं को लगातार संकट में पड़े देखना जारी नहीं रख सकते। हमें उनको उनके बुनियादी अधिकारों से सुरक्षित करने के लिए अपनी मांगों पर ध्यान केंद्रित करके रखना होगा।” वहीं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाई राइडर ने कोरोना महामारी से बढ़ने वाले बाल श्रम पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, “किसी भी नैतिक और करुणावान व्यक्ति को बाल श्रम को समाप्त करने को पूर्ण प्राथमिकता देनी होगी।”
यूनाइटेड नेशंस स्पेशल एनवॉय फॉर ग्लोबल एजुकेशन और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन ने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते हुए कहा, ‘‘हमें इस महत्वपूर्ण बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि शिक्षा ही वह हथियार है, जो बच्चों को बाल श्रम, ट्रैफिकिंग और बाल विवाह के चंगुल से बाहर निकाल सकता है।” वहीं नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ. रिगोबर्टा मेन्चू ने भी बच्चों की शिक्षा को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा, ‘‘सरकारों को बजट को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए समर्पित करना चाहिए। अभी शिक्षा जनसंख्या के बहुत छोटे हिस्से तक पहुंच रही है। बहुत सारे बच्चों को कई कारणों से स्कूल छोड़ना पड़ रहा है। हमारी प्राथमिकता सभी बच्चों को स्कूल भेजने की होनी चाहिए।”
इस अवसर पर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लेमाह गॉबी ने बाल श्रम के खिलाफ सबको एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा, “हमारी दुनिया एक भयावह दौर से गुजर रही है। आशा कि हम बाल श्रम और बाल दासता को समाप्त करने की कार्रवाई करने के प्रति पूरी दुनिया को एकजुट कर पाएंगे।”
एक अन्य नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और ईस्ट तिमूर के पूर्व राष्ट्रपति जोस रामोस होर्ता ने कहा, “यदि हम बच्चों को उनका फेयर शेयर दिलाने में असफल होते हैं, तो उसके जिम्मेदार भी हम ही होंगे। हम बच्चों को धोखा देने के दोषी हैं। आइए हम-सब बच्चों के लिए मिल-जुलकर काम करें।”
इस अवसर पर आर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनोमिक को-आपरेशन एंड डिवेलेपमेंट (ओईसीडी) के महासचिव एचई जोस एंजेल गुरिया ने बच्चों को विकास योजनाओं और नीतियों के केंद्र में रखने की वकालत की। उन्होंने कहा, ‘‘समाज के सबसे कमजोर लोगों यानी बच्चों के जीवन और कल्याण की रक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर पड़े बच्चे महामारी से सबसे ज्यादा असुरक्षित और पीड़ित हुए हैं। हम सभी देशों से यह सुनिश्चित करने को कहते हैं कि बच्चों को उनके बुनियादी अधिकार मिलें। सामाजिक नीतियों के केंद्र में बच्चों को रखने के समर्थन के लिए आप ओईसीडी पर भरोसा कर सकते हैं।”