बिहार अपडेट:- वक्त किस तरह से अपने रंग बदलता है। बिहार के विकास के महापुरुष माने जाने वाले नीतीश कुमार 2020 के विधानसभा चुनाव में NDA के मुख्यमंत्री तो बनने वाले हैं ,लेकिन उनके दल जदयू के इन चुनाव में प्रदर्शन को देखते हुए लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। एक दो छुटभइये टाइप नेताओं ने तो ये कहना भी शुरू कर दिया है कि अब भाजपा को अपना मुख्यमंत्री बनाने का वक्त आ गया है। नीतीश को जनता ने मुख्यमंत्री के रूप में नकार दिया है। अगर हम इन चुनावों को मापदंड माने तो कहीं ना कहीं ये बात सही लगती है। जदयू का प्रदर्शन ना केवल 2015 से खराब रहा है। उसको पिछले चुनावों से 28 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। भाजपा ने ना केवल अपना प्रदर्शन सुधारा है बल्कि इस चुनाव में NDA की इस जीत का श्रेय भी नरेन्द्र मोदी के खाते में गया है। अब नीतीश की ये पारी भाजपा के रहमोकरम पर ही है। कहीं ना कहीं ये बात नीतीश के आत्मसम्मान को कचोट रही होगी।
एक वक्त था जब नीतीश ने नरेन्द्र मोदी की बाढ़ के समय में दी गई सहायता तक लौटा दी थी। उनके NDA से अलग होने का कारण भी मोदी का भाजपा में बढ़ता कद ही था। 2015 में उन्होंने राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और सरकार बनाई। हालांकि थोड़े समय में ही उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया और वो वापिस NDA में शामिल हो गए। 2020 के चुनावों के आरंभ से ही ये कहा जा रहा था कि बिहार की जनता परिवर्तन चाहती है और अगर भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़े तो उसकी सरकार बनना तय है। लेकिन शायद महाराष्ट्र के घटनाक्रम से डरी भाजपा ऐसा कोई प्रयोग करने से डर गई और उसने नीतीश के साथ चुनाव में जाने का फैसला किया। हालांकि पूरे चुनाव प्रचार में भाजपा ने नीतीश के मुख्यमंत्री बनने की बात ही कही लेकिन इस सच को कहीं ना कहीं वो भी समझ रही थी की नीतीश की छवि जनता के सामने ठीक नहीं है। रही सही कसर केन्द्र में NDA के सहयोगी लोजपा के चिराग पासवान ने पूरी कर दी। नीतीश को गरियाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि चुनाव के नतीजों में चिराग के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे वो खुश हो सकें। हां इतना ज़रूर है कि उनके राजनैतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। अपने पिता की तरह राजनैतिक मौसम को समझने में वो नाकाम रहे।
अब जब सारी अटकलों पर विराम लग गया है और यह तय है कि बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश एक बार फिर शपथ लेने जा रहे हैं, यही वो वक्त भी है जब नीतीश को अपनी सम्मानजनक विदाई का समय तय करना चाहिए। आज के बिहार के निर्माण में नीतीश कुमार के योगदान को नकारा नहीं जा सकता, इसलिए NDA के प्रमुख दल भाजपा को नीतीश की सम्मानजनक विदाई कैसे हो इसको देखना चाहिए।
अपनी अंतिम चुनावी रेली में नीतीश स्वयं कह चुके हैं ये उनका अंतिम चुनाव है। हालांकि बाद में उन्होंने उसका खंडन भी किया है। लेकिन चुनाव के नतीजों को देखते हुए उन्हें अपनी बात पर कायम रहना चाहिए, ये वास्तव में उनका अंतिम चुनाव ही है। बिहार के हित में अब एक नये उर्जावान नेतृत्व की आवश्यकता है। नीतीश को ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए कि उसने उसे एक मौका दिया है, राजनीती को सम्मान के साथ विदा कहने का। अब वक्त वह स्वयं तय करें कि कब उन्हें ऐसा करना है।
बिहार के लिए एक अच्छी बात ये है कि जदयू के उपर किसी विरासत का बोझ नहीं है। नीतीश की ये पार्टी वंशवाद के दंश से मुक्त है। वंशवाद का ज़हर किस तरह से कांग्रेस के पतन का जिम्मेदार है, यूपी में सपा में मुलायम यादव की विरासत को फिलहाल किसी तरह से अखिलेश ढो रहें हैं। विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने उसे करारी मात दी है। बिहार में तेजस्वी को जनता ने नकार दिया है। इस बात से कुछ लोग असहमत हो सकते हैं लेकिन अगर चिराग पासवान मौसम का मिजाज पढ़ने में गलती नहीं करते तो महागठबंधन की दुर्दशा कैसी हुई होती इसकी कल्पना करके भी उसके नेताओं की नींद उड़ जाती। ऐसे समय में अब भाजपा को एक नया नेतृत्व बिहार में देना होगा। बिहार की जनता को सुशील मोदी नहीं चाहिए, साथ ही पार्टी को भी सुशील मोदी की छाया से बाहर निकालना होगा। सुशील मोदी को भी ये समझना होगा उनके लिए भी अपनी भूमिका बदलने का सही समय है। उनकी आवश्यकता संगठन को है। यदि भाजपा अपने राज्य नेतृत्व में परिवर्तन नहीं करती है अभी तो उसके लिए आगे की राह कठिन होगी।
बिहार के लिए आवश्यक है नीतीश कुछ समय तक राज्य में शासन करें और उसके बाद भाजपा को सत्ता सौंप दे। भाजपा उनके लिए राष्ट्रीय राजनीति में कोई जगह देखे। वह राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति भी बनाए जा सकते हैं। भाजपा और जदयू मिलकर सरकार चलाये, राज्य की जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरे और फिर अगला चुनाव मिलकर लड़ें। अगर विलय होकर लडेंगे तो बेहतर होगा। हालांकि अभी तो वक्त है नई सरकार के गठन का, बिहार की जनता के किए वादे पूरे करने का, लेकिन अपने भविष्य का ध्यान रखने का।