सुख के सब साथी, दुख में ना कोई-अतुल गंगवार

भारतीय सिनेमा के प्रख्यात कला निर्देशक नितिन देसाई की आत्महत्या की खबर ने विचलित कर दिया। उनकी आत्महत्या की जो वजह सामने आ रही है वह उनके उपर चढ़ा 250 करोड़ रुपये का कर्ज था जिसकी वजह से वो परेशान थे और शायद इसी परेशानी के कारण उन्होंने अपने जीवन का अंत कर लिया। उनकी आत्महत्या ने उनकी परेशानियों का कितना हल किया होगा ये तो उनके बाद उनके परिवार वाले ही समझ सकते हैं। लेकिन इतने बड़े सेट डिज़ाइनर का यूं अपनी जान ले लेना भारतीय सिनेमा में काम कर रहे लोगों के बीच रिश्तों का खोखलापन उजागर करता है। ‘जोधा अकबर’, ‘देवदास’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘हरीशचंद्राची फैक्टरी’, ‘लगान’, ‘प्रेम रतन धन पायो’ और ‘स्वदेश’ जैसी अनेकों फिल्मों को अपनी कला से निखारने वाले, उन्हें सुनहरे पर्दे पर जीवंत बनाने वाले नितिन देसाई की असमय मृत्यु ने एक बार फिर ये सिद्ध कर दिया की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लोगों के आपसी संबंध सिर्फ सुख के हैं। एक बार किसी का सितारा डूब जाये तो लोग उससे यूं दामन छुड़ा लेते हैं जैसे किसी को जानते ही ना हों।

नितिन देसाई की मृत्यु के कारण क्या होंगे ये तो नितिन ही बता सकते थे। लेकिन क्या उनके पास ऐसा कोई साथी सहारा ना था जो उन्हें इस संकट से बाहर निकाल लेता। जिन बड़े फिल्मकारों के साथ उन्होंने काम किया था, उनकी फिल्मों की सफलता में नितिन के कला निर्देशन का भी बड़ा योगदान था। क्या कोई इस बात से इंकार कर सकता है कि ‘जोधा अकबर’, ‘देवदास’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘लगान’, ‘हरीशचंद्राची फैक्टरी’ जैसी फिल्मों की भव्यता में नितिन देसाई का बहुमूल्य योगदान था। फिर क्या ये फिल्मकार अगर चाहते तो नितिन की मदद नहीं कर सकते थे? क्या नितिन ने उनसे मदद के लिए कहा था? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब नितिन अपने साथ ही ले गए हैं।

भारतीय सिनेमा में अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहां फिल्मकारों के आपसी रिश्ते उनकी फिल्मों की कहानियों की तरह ही काल्पनिक या यूं कहें कि नकली होते हैं। अपने ज़माने के मशहूर कलाकार मास्टर भगवान का साथ इस इंडस्ट्री के लोगों ने तब तक ही दिया जब तक वो उनके लिए पैसा कमाने की मशीन बन कर रहे। एक बार असफल होते ही भगवान दादा को अपने बंगले से निकल कर दादर की चाल में जीवन बिताना पड़ा। भारत भूषण जैसे हीरो का भी बचा जीवन गुमनामी और फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करके ही बिताना पड़ा। नादिरा जिनके हुस्न के लाखों दीवाने थे अंत समय में उनके पास कोई नहीं था। कुक्कु जैसी प्रख्यात नृत्यांगना जिनका फिल्म में होना ही उसकी सफलता की गारंटी होती थी, उम्र ढलने के बाद यूं भुला दी गई जैसे कभी थी ही नहीं। उनके अंतिम दिन बड़े कष्ट में बीते। एक लंबी फेहरिस्त है उन कलाकारों, टेक्निशियन की जो वक्त की मार का शिकार हुए। प्रसिद्ध संगीतकार आर.डी.बर्मन भी अपने अंतिम दिनों में परेशान रहे। कई बार आर्थिक परेशानी के अलावा काम का ना होना भी कलाकार को दर्द देता है। आर.डी. के साथ यही हुआ। उनकी असफलता के दौर में उनसे उनके साथ काम करने वाले फिल्मकारों को उनसे दूर कर दिया। एक समय बाद जब विधु विनोद चोपड़ा ने उन्हें फिल्म ‘परिंदा’ में संगीत देने के लिए अनुबंधित किया तो वह इतना डरे हुए थे कि उन्होंने एक बार धुन पसंद ना आने पर विधु विनोद चोपड़ा से ये भी कहा कि उन्हें फिल्म से ना निकालें, वह अधिक मेहनत करने के लिए तैयार हैं। आर.डी.की असमय मृत्यु के पीछे इंडस्ट्री के लोगों की बेरुखी भी एक कारण थी। ये बात ओऱ है उनकी मृत्यु के बाद प्रदर्शित ‘1942 अ लव स्टोरी’ की सफलता में उनके संगीत का अहम योगदान था।

पिछले दिनों कई कलाकारों ने अपने संकटों से निपटने में अपने को अक्षम पाया तो अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली। कई भावनात्मक स्तर पर टूटे हुए थे, तो कुछ आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे थे। किसी को अपना करियर खत्म होता दिखाई दे रहा था। आखिर ऐसा क्यों होता है कि जिस इंडस्ट्री में काम करके आप लाखों लोगों के चहेते बनते हैं अपनी निजी जीवन में आप उतने ही तन्हा, अकेले होते हैं? शायद ये बाज़ार ही है जो आपको आपकी मांग के अनुसार ही आपको उपयोगी मानता है और अनुपयोगी होते ही आपको कहीं किसी कोने में धकेल देता है। यही कोना आपके अंत का कारण बनता है।

पता नहीं नितिन देसाई अपनी मदद के लिए किसी को कह पाए थे या नहीं। किसी ने उनकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया था या नहीं। अगर बढ़ाया होता तो संभवत नितिन आज जीवित होते। या फिर वह अपने ही बड़े कद के बोझ तले दब कर रह गए। लोग क्या सोचेंगे उनके बारे में, ऐसा सोच कर वह किसी से कुछ कह ही नहीं पाए। अपनी व्यवसायिक नाकामी को किसी के साथ शेयर नहीं पाए। वजह कुछ भी हो एक प्रतिष्ठित कला निर्देशक का यूं हार मानना उनके चाहने वालों के लिए बहुत ही कष्टदायक है।

अब भारतीय मनोरंजन जगत को भी अपने नियम कायदे बदलने की आवश्यकता है। कलाकार बाज़ार में मिलने वाली कोई निर्जीव वस्तु नहीं है। वह भावनाओं संवेदनाओं का एक जीता जागता इंसान है। उसका संवेदनशीलता के साथ ध्यान रखने की आवश्यकता है। साथ ही वक्त रहते सभी कलाकारों को जीवन की वास्तविकताओं का भी ध्यान रखना चाहिए। एक दूसरे के अकेलेपन को बांटेंगे तो आप भी अकेले नहीं रहेंगे। नितिन देसाई की आत्महत्या एक असफल व्यवसायी द्वारा एक सफल कलाकार की हत्या है। आज हम अगर इस ओर ध्यान देंगे तो अवश्य कुछ कलाकारों को असमय मृत्यु से बचा सकेंगे।

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