बिहार में पहले चरण के लिए मतदान 28 अक्टूबर को होना है और अभी तक यानी 3 अक्टूबर तक सत्तारूढ़ गठबंधन का चेहरा-मोहरा साफ़ नहीं हुआ है। विपक्ष के महागठबंधन का पहले विघटन हुआ और जब शनिवार शाम को जब आख़िरकार महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई और सब कुछ ठीकठाक होने का दावा किया गया, तब प्रेस कॉन्फ्रेंस के आख़िर में विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी के मुकेश सहनी बुरी तरह बिदक गए। उनके समर्थकों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ही हंगामा खड़ा कर दिया।
उन्होंने तेजस्वी यादव पर पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगाते हुए यहां तक कह दिया कि उनका डीएनए ख़राब है, इसलिए ही उन्होंने ऐसा बर्ताव किया है। असल में तेजस्वी ने 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डीएनए वाले बयान पर कटाक्ष करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि उनका डीएनए शुद्ध है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि नीतीश कुमार के राजनैतिक डीएनए में कुछ गड़बड़ है। सीट बंटवारे से नाराज़ मुकेश सहनी ने भी इसी वजह से तेजस्वी के डीएनए वाले बयान पर निशाना साधते हुए तुरंत ही साफ़ कर दिया कि वे अब महा-गठबंधन में रहने वाले नहीं हैं। कुल मिलाकर पहले महागठबंधन कई गठबंधनों में टूटा और अब जब विपक्षी एकता का फूला हुआ गुब्बारा मीडिया के सामने लाया गया, तो वीआईपी की कील ने उसे फोड़ने में देर नहीं की।
महागठबंधन में आरजेडी ने 144 सीटें अपने पास रखने का ऐलान किया और कांग्रेस को 70 सीटें देने का ऐलान किया गया। तेजस्वी यादव ने कहा कि वे अपनी 144 सीटों में से वीआईपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए कुछ सीटें देने का ऐलान दो-तीन दिन में करेंगे। मुकेश सहनी 25 सीटों की मांग कर रहे हैं, लेकिन जब उन्हें इसकी संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं दी, तो उन्होंने तेजस्वी को तुरंत ही बाय-बाय करने में देर नहीं लगाई। ख़बर ये है कि सहनी एनडीए नेताओं के भी निकट संपर्क में हैं। महागठबंधन में सीपीआई (मार्क्सवादी, लेनिनवादी) को 19, सीपीएम को चार और सीपीआई को छह सीटें देने का फ़ैसला किया गया है।
शनिवार शाम के सियासी ड्रामे से पहले ही महागठबंधन कई हिस्सों में टूट चुका है। आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाहा और बीएसपी ने गठबंधन बना लिया है। पप्पू यादव, चंद्रशेखर रावण के साथ ढपली बजाएंगे और असदउद्दीन ओवैसी भी अपनी ढपली अपना राग अलापने की तैयारी कर चुके हैं। ऐसे में एंटी इंकंबेंसी के फेर में फंसे नीतीश कुमार की चांदी होती हुई साफ़ नजर आने लगी है। वैसे एनडीए को भी अभी एलजेपी को मनाना बाक़ी है। कहीं वे भी अपनी ढपली लेकर बिहार की चुनाव चौपाल पर न निकल पड़ें।