आजमदर्स डे की सोशल धूम है. पहली नज़र में मेरा मानना है कि यह बाज़ारजनित नवसृजित पर्व है. एक दिन में क्या जतेगा माँ के प्रति आदर.
माँ तो युगों में बसी हस्ती है
माँ मेरे साँसों की किश्ती है
तो आजका दिन माँ के लिए स्पेशल बन रहा है तो अच्छा ही है. तो चलिए माँ को लेकर मैं भी एक वाकया शेयर कर रहा हूँ.
माँ का नामकरण
नाना का घर अच्छा ख़ासा खाता पिता घर था, रुतबा था. ज़मींदारी थी. बड़ा परिवार था, कई चचेरे बड़े भाइयों के बाद माँ का जन्म हुआ था. परिवार में ख़ुशी थी पर माँ थीं तो बेटी ही, थाली थोड़ी बजी. माँ बेटा तो थी नहीं कि पतरा पंडित बुलाकर नाम ढूँढा जाता, मुहूर्त देख नामकरण होता. गाँव की कोई काकी बुआ आयीं होंगी और सांत्वना पुरस्कार के तौर पर बोलीं होंगी कि “आछा बेटी जनमली त जीयस” ( बेटी हुई तो क्या ईश्वर इन्हें ज़िंदा रखें) नाम भी कुछ ऐसे रख दिया “जियछा” शायद “जीयस” से बन गया होगा
“जियछा”। अब माँ को क्या पता क्या नाम रखा गया है. माँ चौथी तक स्कूल गईं. वहाँ भी तो यही दर्ज हुआ होगा. माँ बड़ी हुईं तो घर में पूछीं थीं अपने नाम का मतलब. किसी को पता हो, या इस नाम का कोई मतलब हो तब न कोई बताए. “जियछा” के आगे कुमारी जोड़कर माँ ब्याह दी गईं. ” जियछा कुमारी” से “जियछा देवी” हों गईं. ससुराल में आकर माँ के इस नाम की भी पहचान ख़त्म हो गई. अब वह पहले “रमेश ब” ( श्री रमेश मिश्र की पत्नी) फिर “दिनेश के माई” ( श्री दिनेश मिश्र की माँ) हों गईं. लेकिन अब माँ और परिवार को माँ के नाम का पता तभी होता जब खाता खतिहान में कहीं ज़रूरत पड़ती ( अव्वल तो वो भी नहीं). पूजा संकल्प में तो बिलकुल ही नहीं. हम पाँच भाई बहन भी बाबूजी की संतान के रूपमें बड़े हो गए. स्कूलों में सिर्फ़ बाबूजी का नाम ही काफ़ी था. एक ज़माना आया कि घर का राशन कार्ड बना, तब बहुत दिनों बाद माँ का “जियछा” नाम कहीं लिखा गया. हमने भी शायद पहली बार माँ का लिखा नाम पढ़ा. जो भी हो “जिअछा” नाम का कोई मतलब नहीं था. और माँ को कभी यह नाम अच्छा नहीं लगा. माँ अब इस बात को खुलकर बताने लगीं थीं. पर माँ का नाम जो है सो है. क्या किया जा सकता. फिर भी जबतब ये बात उठ जाती थी, माँ को पता था नाना नानी ने रखा होता तो नाम कुछ और कुछ बेहतर होता. उनका दर्द जबतब छलक जाता। और हम पूरे परिवार को यह बात सालती थी. हम भाई-बहन, भतीजा- भतीजी सब ने मिलकर तय किया कि माँ का कुछ सुंदर सा नाम रखना है. जो उन्हें अच्छा लगे. उन दिनों वोटर कार्ड नहीं होते थे. पर उस साल से वोटर कार्ड ज़रूरी हो रहे थे और बन रहे थे। हमने तय किया कि यही मौक़ा है कि माँ को अफ़िशयली एक सुंदर नाम दे दिया जाय. हमने सोचा कि माँ के मूल नाम में ही कुछ न कुछ सुंदर सा नाम छिपा है और हमने ढूँढ लिया, “जियछा” में से “जिया” नाम. माँ का नाम वोटर कार्ड में छप कर आया श्रीमती “जिया” मिश्र। माँ बहुत ख़ुश हुईं थीं. हम तो ख़ुश हुए ही. अब पैन कार्ड, आधार सब पर यही नाम है . मेरी बेटियाँ आज जब फ़िल्म “जब तक है जान” का गाना ” जिया जिया रे जिया रे…” गातीं हैं, माँ की ख़ुशी देखने लायक होती है.
अगर माँ बाप हमारे लिए सुंदर सा नाम ढूँढते हैं, रखते हैं, तो अगर किसी लापरवाही से उनका अच्छा नाम नहीं रखा गया है तो उनकी पसंद का कोई सुंदर नाम हम क्यों न रख सकते!!
कमलेश के मिश्र