शुक्र है दिल्ली वालों, तुम्हारे एक तरफ योगी-दूसरी तरफ खट्टर और केन्द्र में मोदी-शाह हैं।

अतुल गंगवार

आजकल कोरोना काल का आकलन करना ख़तरे से खाली नहीं है। और यदि आप आकलन करते हुए कहीं आप भाजपा शासित राज्य की तुलना किसी अन्य पार्टी के राज्य से करने लगे तो आपको ऊपर वाला ही मालिक है। कोरोना को लेकर लगातार नए नए नेरेटिव बनाने का प्रयास किया जा रहा है। दिलचस्प बात ये है कि जहां आम आदमी केन्द्र सरकार के साथ खड़ा हुआ है वहीं दूसरी ओर कुछ खास किस्म के लोग केन्द्र सरकार को लगातार कठघरे में खड़ा करने में लगे हुए हैं। पता नहीं कौन सा चश्मा लगाते हैं कि उन्हें देश में सिर्फ बुरा ही बुरा दिखाई दे रहा है। सरकार के द्वारा किए जा रहे सारे प्रयास उनके हिसाब से बेकार हैं। बेकार तो हैं लेकिन क्या सही प्रयास होने चाहिए उसका उनके पास कोई जवाब नहीं है। दिल्ली वालों की हालत तो ओर भी ख़राब है। केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच दिल्ली की आम जनता कोरोना से दिशाहीन लड़ाई लड़ रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने अहम के चलते दिल्ली को कोरोना का सबसे तेजी से वाहक बनता राज्य बना दिया है। आज का सच तो ये हैं कि दिल्ली की जनता ने अपनी मुफ्तखोरी की कीमत अपनी और अपने परिजनों की जान दांव पर लगा कर चुकाई है।

अरविंद केजरीवाल

कोरोना से केजरीवाल की लड़ाई महज टीवी और अखबार के विज्ञापनों में ही सिमट कर रह गयी। क्या ये दिल्ली की जनता का दुर्भाग्य नहीं है कि उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस आदमी पर थी वह इस पूरे कोरोना काल में कहीं नहीं दिखाई दिया। दिल्ली में सुविधाएं जुटाने के लिए केन्द्र सरकार से 5000 करोड़ की मदद मांगने वाले केजरीवाल ने कितने पैसे अपनी फोटो छपवाने में खर्च किए कभी उसका ब्योरा देना भी ज़रूरी नहीं समझा। दरअसल केजरीवाल की कार्य शैली रही हैं। समस्या का समाधान ना करके कुछ नयी समस्या खड़ी कर दो जिससे लोग इधर से उधर घूमते रहें और साहब जीवन का आनंद लेते रहें।

केजरीवाल इस देश में अकेले मुख्यमंत्री नहीं है जो कोरोना से लड़ाई लड़ रहे हैं। सारा देश एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़ रहा हैं। हां लेकिन केजरीवाल देश के अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो इस लड़ाई को अखबारों और टीवी में लड़ते दिखाई दे रहे हैं। लॉक डॉउन के समय जब देश में लोगों को घरों में रहने आह्वान किया जा रहा था तो केजरीवाल दिल्ली से मजदूरों, प्रवासियों को निकाल कर दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल पर भेज रहे थे। वो भी ये जानते हुए की उत्तर प्रदेश की सरकार की किसी ऐसे पलायन से निपटने की तैयारी नहीं है। उनको पूरी उम्मीद थी की डरे हुए ये मजदूर, प्रवासी लोग सीमा पर उत्तर प्रदेश सरकार के लिए संकट खड़ा कर देंगे और वो मासूमियत से इसका सारा ठीकरा दिल्ली छोड़ कर जा रहे लोगों और उन्हें ना संभाल पाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार पर फोड़ देंगे। लेकिन उनके मनसूबों पर पानी फिर गया जब रात रात में उत्तर प्रदेश सरकार ने लगातार मेहनत करके सभी लोगों को उनके घरों में पहुंचा दिया। पर ध्यान रहे ये वही पल था जब केजरीवाल की कुटिलता जीती थी लेकिन देश के लोगों की कोरोना के खिलाफ लड़ाई की एक कड़ी टूट गयी थी। इसके बाद देश भर में प्रवासी बंधुओं का डर बढ़ा जिसके फलस्वरूप देश भर में लोग सड़कों पर बिना किसी साधन के अपने घरों के लिए निकल पड़े। दिल्ली में रोजाना 10 लाख लोगों को खाना खिलाने का दावा करने वाले केजरीवाल किसी को भी ये भरोसा नहीं दिला पाये कि दिल्ली में वो सुरक्षित हैं। करोडों रूपये के विज्ञापन भी आम लोगों के मन से ये डर नहीं निकाल पाये कि दिल्ली सरकार उनके जीवन को सुरक्षित रखने का काम कर सकती है।

मनोहर लाल खट्टर

लॉक डॉउन काल का इस्तेमाल जहां उत्तर प्रदेश सरकार, हरियाणा सरकार ( यहां मैं इन दोनों सरकारों की बात सिर्फ इसलिए कर रहा हूं क्योंकि एनसीआर में इनकी भी भागीदारी है) भविष्य में कोरोना से लड़ाई की चुनौतियों का आकलन करके अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने में लगी हुई थीं , केजरीवाल सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए विज्ञापन जारी करने में लगे हुए थे। उन्हें ये पता था कि जिस तरह से उन्होंने मजदूरों का पलायन कराया है और उत्तर प्रदेश सरकार ने उसको संभाला है, आगे भी वही संभालेगी। वो यह भी अच्छी तरह जानते थे कि यूपी, हरियाणा में बीजेपी की सरकार है, केन्द्र में बीजेपी की सरकार है। दिल्ली में केन्द्र का दखल है। तो उन्हें सिर्फ अपने वोट बैंक की चिंता करना ही सबसे ठीक लगा। क्या कोई सामान्य व्यक्ति राज्य के संसाधनों को सिर्फ राज्य के लोगों के लिए सुरक्षित कर सकता है। जो आदमी हरियाणा में जन्मा हो, अपनी उच्च शिक्षा प.बंगाल में पायी हो, उत्तर प्रदेश का निवासी हो, जिसे दिल्ली की जनता ने तीन बार मुख्यमंत्री बनाया हो वो ये कहे की दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के लोगों का इलाज होगा। क्या ये इस देश के लोगों के साथ अन्याय नहीं है कि देश की राजधानी में उसके लिए इलाज की व्यवस्था नहीं है। केजरीवाल को लगा कि दिल्ली की जनता बहुत खुश होगी की उनका मुख्यमंत्री उनके लिए कितना सोच रहा है। लेकिन क्या दिल्ली की जनता ने ये नहीं सोचना चाहिए कि अगर कल को उत्तर प्रदेश या फिर हरियाणा या फिर देश के अन्य राज्य भी ऐसा ही करने लगें कि वो सिर्फ अपने राज्य के नागरिकों को चिकित्सा सुविधाएं देंगे तो दिल्ली के लोग कहां जायेंगे? भला हो एलजी साहब का कि उन्होंने इस फैसले को पलटा जिससे अन्य राज्य के लोगों को सभी सुविधाएं मिल सकती है। दरअसल केजरीवाल ये जानते थे कि दिल्ली में चिकित्सा की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। उन्हें लग रहा था कि मुफ्त बिजली पानी पा रही दिल्ली की जनता उनके अहसानों तले दबी हुई है वो क्या मुंह खोलेगी? शायद उन्हें ये भी अंदाजा नहीं था कि कोरोना यहां से जल्दी जाने के लिए नहीं आया है। इसलिए जब देश के दूसरे राज्य कोरोना से मुकाबले की तैयारी में लगे थे ये साहब अपने घर में बैठे बांसुरी बजा रहे थे।

सच तो यह है कोरोना से निपटने के लिए जिस तरह की संवेदनशीलता दिल्ली सरकार को दिखानी चाहिए थी वह उसने नहीं दिखाई। उसका सारा ध्यान विज्ञापनबाजी में लगा रहा। जब सरकार की जनता को सबसे अधिक आवश्यकता थी तो वो उसके साथ नहीं थी। देश की जनता ने इस पूरी लड़ाई में अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन किया। लेकिन दुर्भाग्य केजरीवाल का वोट बैंक इस लड़ाई में भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। तबलीगी जमात ने इस लड़ाई को कमजोर किया। लेकिन केजरीवाल ये लोग नाराज ना हो जाये इसलिए उन्होंने इनके खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। केजरीवाल जी दिल्ली की सारी जनता आपकी थी, उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी आपकी थी। पर लगा तो ये कि आप सिर्फ अपना उल्लू साध रहे थे। ना तो आपको तबलीगियों से कुछ लेना देना था ना ही दिल्ली के अन्य नागरिकों से।

योगी आदित्यनाथ

23 करोड़ की आबादी वाला उत्तर प्रदेश अपनी किसी जिम्मेदारी से नहीं भागा।। ना केवल उसने प्रदेश की जनता के लिए सोचा बल्कि दूसरे राज्यों से आने वाले अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिए काम किया। आज उत्तर प्रदेश सरकार जो लोग अपने घर रहना चाहते हैं उनके लिए रोजगार की व्यवस्था करने में लगीं है। योगी के नेतृत्व में जहां प्यार दुलार की आवश्यकता थी वहां उन्होंने प्यार दुलार किया। जहां जमात वालों को फटकार की आवश्यकता पड़ी वहां उन्हें फटकार भी दी। योगी इस पूरी लड़ाई में अपने साथियों के साथ खड़े रहे, शायद इसीलिए उनकी टीम ने भी दिन रात एक कर दिया नागरिकों की रक्षा के लिए। राज्य में लेवल 1,2 एवं 3 के 503 अस्पताल, 1466 वेंटीलेटर बेड, कुशल डॉक्टर, नर्सेस अन्य स्टाफ उपलब्ध है। 18091 क्वारंटाइन सेंटर जहां 14 से अधिक लोग रखे जा सकते हैं बनाएं गए हैं। कोरोना के इलाज के लिए 1लाख से ज़्यादा बेड उपलब्ध हैं। प्रतिदिन 15 हजार से अधिक टेस्ट हो रहे हैं।3.6 करोड़ राशन कार्ड धारकों को 14.5 करोड़ यूनिट राशन उपलब्ध कराया जा चुका है। 2.34 लाख टेम्परेरी राशन कार्डों पर 6.1 लाख यूनिट राशन दिया जा चुका है। 22 लाख से अधिक श्रमिक वापिस लाये गए हैं। मनरेगा के माध्यम से 43 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। और अभी सरकार रुकी नहीं है, आगे की संभावनाओं का आकलन करते हुए निरंतर काम कर रही है।

अमित शाह

दिल्ली के लोगों के लिए राहत की बात है कि अब केंद्र सरकार दिल्ली में कोरोना प्रभावित लोगों की बढ़ती संख्या और केजरीवाल की इस समस्या से निपटने में असफल रहने के कारण दिल्ली के लोगों के लिए सीधे एक्शन में आ गई है। जिस समय केजरीवाल जी को सड़क पर अपनी सरकार के अन्य साथियों के साथ राज्य की जनता के लिए निकलना चाहिए था अपने घरों में बैठे हुए थे। समस्या के समाधान की बजाय गलत आंकड़ो से राज्य की जनता को धोखा दे रहे थे। चिकित्सा सुविधाओं की हकीकत जानते थे इसलिए वो लोगों से अपने घरों में ही रह कर अपना इलाज करने की अपील कर रहे थे। दिल्ली के लोगों को ये सवाल पूछना तो बनता ही है कि अगर घर पर ही कोरोना का इलाज संभव है तो ये लाखों की फीस अस्पताल क्यों ले रहे हैं। क्या आम आदमी इतनी फीस चुका सकता है। देश के गृहमंत्री अमित शाह अस्पतालों में गए ओर वहां उपलब्ध सुविधाओं का निरीक्षण किया। राज्य की जनता के लिए 250 रेल कोच की व्यवस्था की है। आने वाले समय की चुनौतियों को ध्यान में रखकर काम करना शुरू कर दिया गया है। और हां केजरीवाल जी अपने घर बैठकर पत्रकार वार्ता कर रहें है।

काश केजरीवाल जी आपने थोड़ी सी संवेदना दिखाते हुए उत्तर प्रदेश और हरियाणा से थोड़ा भी सीखा होता तो आज दिल्ली का ये हाल नहीं होता। दिल्ली की जनता के लिए सबक है कि मुफ्त बिजली पानी की कितनी कीमत उसको चुकानी पड़ रही है। संदर्भ से अलग है लेकिन दिल्ली के दंगों, शाहीन बाग़ के जमावड़े के तार भी सरजी की पार्टी से जुड़ते नज़र आ रहें हैं। तो अभी तो दिल्ली वालों आपको अभी बहुत कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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