अविनाश दास की फ़िल्म “अनारकली ऑफ़ आरा” एक तरफ़ जहाँ औरत के मन की तमाम गिरहों को खोलती है वहीं दूसरी तरफ़ ताक़त से भरपूर “मर्दाना” मानसिकता को ख़ूब नंगा करती है. अनारकली ऑफ़ आरा अकेली अनारकली की कहानी नहीं है. जिस समाज में लड़की को मर्दाना निगाह से महफ़ूज़ रखने के लिए “ऐंटी रोमीयो स्क्वॉड” के गठन की ज़रूरत पड़े वहाँ यह हर लड़की की कहानी बन जाती है, थोड़ी कम थोड़ी ज़्यादा. कहानी के दो सिरे दिखिए कि कैसे दो लोगों से बँध गए हैं। एक तरफ़ किताब की राह से मोड़ कर नाच गान की तालीम से जोड़ दी गई अनारकली तो दूसरी तरफ़ विद्या के सर्वोच मंदिर के महापुजारी- विश्वविद्यालय के कुलपति चौहान. एक बोल्ड नाचने गाने वाली के प्रति मर्दाना दबंगई के क़िस्से बड़े सुने सुनाए जाते हैं. पर एक कुलपति की इस क़िस्म की दबंगई ज़रा अतिरेक भरी लगती है. कैमरे वाले मोबाइल युग में VC को अनारकली का थप्पड़ पड़ना MMS स्कंडल से कैसे बचा रह जाएगा यह भी एक प्रश्न है. यह प्रश्न इसलिए कि इसे नज़र अन्दाज़ कर ही कहानी को इस ओर मोड़ा गया. वरना कहानी किसी और पटरी पर दौड़ती. बहरहाल अविनाश ने स्त्री अस्मिता के सवाल को सेमिनारों और नारों से निकाल कर खुली गलियों और सड़कों पर रखने का साहस दिखाया और स्वरा ने जिस अन्दाज़ में इस सवाल पर मर्दों को लपेटा है वह सराहनीय है. आरा के किसी मंच पर या मुंबई के किसी बार में बोल्ड या कहें द्वीअर्थी अन्दाज़ में गाना नाचना किसी अनारकली की विवशता नहीं है, यह रंगीला या कुलपति चौहान की ज़रूरत पहले है और इसलिए आरा की अनारकली हो या मुंबई की कोई इना मीना, उनकी ठसक कभी कम नहीं दिखती और दिखे भी क्यों. स्वरा इस कसौटी पर बहुतों को टेन्शन दे गईं हैं. बढ़िया है. पंकज त्रिपाठी को उनका चरित्र सुना दीजिए, उसके बाद वे भूल जाते हैं कि उनका नाम पंकज त्रिपाठी है. बेजोड़ अदाकारी को मिलना ही चाहिए इश्क़ वाला आदाब. संजय मिश्रा और बाक़ी सब तो जो हैं सो हइए हैं. फ़िट हैं सब लोग.
गाने वाली पर केंद्रित फ़िल्म है. तो इसका सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है संगीत। तो इसमें रस और जान दोनों उँड़ेल दिए हैं संगीतकार रोहित शर्मा क्लाइमैक्स में दो तरह के रस में भीगे तीन तीन गीतों को जिस तरह से इन्होंने एक सूत्र में पिरोया है उसमें उच्चतम क़िस्म के नाट्य संगीत की झलक साफ़ दिखती है, जिसका सिनेमाई प्रयोग बहुत कम हुआ है. बैकग्राउंड स्कोर भी रोहित का ही है और कमाल का है. रोहित ने इंजीनीयरिंग पढ़ने के बाद इस सिनेमाई संगीत फ़न को चुना। तो एकदम ठीक किया, वरना देश वंचित न रह जाता उनके जादुई संगीत से .
आलेख: कमलेश के मिश्र