शरद यादव जेडीयू संसदीय दल के नेता पद से हटा दिए गये हैं। शायद पार्टी से भी निकाल दिए जाएं। आखिर ये स्थिति बनी कैसे? जब जनता दल यूनाइटेड का गठन हुआ था, उस समय ये पार्टी चार मजबूत खंभों पर टिकी थी। जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, नीतीश कुमार और दिग्विजय सिंह। कई अन्य बड़े नेता भी थे, लेकिन मुख्य आधार यही चार थे। पार्टी का जनाधार हालांकि बिहार में ही केन्द्रित था, लेकिन तेवर किसी राष्ट्रीय दल से कम नहीं थे। अब इन चार स्तंभों पर नजर डालें। जॉर्ज फर्नांडिस। राष्ट्रीय स्तर के एक बड़े नेता। दक्षिण से आते हैं लेकिन राजनीतिक जमीन बिहार में हासिल हुई। शरद यादव। राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता। मध्य प्रदेश से आते हैं लेकिन राजनीतिक जमीन की तलाश में एमपी, यूपी होते हुए आखिरकार बिहार में ही टिकने के लिए जमीन हासिल हुई। दिग्विजय सिंह। बिहार के कद्दावर नेता थे और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान थी। काफी कम उम्र में निधन हो गया, नहीं तो आज राष्ट्रीय राजनीति में किसी मुकाम पर होते। और चौथे स्तंभ हैं नीतीश कुमार। क्या आज भी जेडीयू को ऐसे मजबूत स्तंभों की जरूरत है? नीतीश कुमार की नजरों में शायद नहीं। जैसे जैसे नीतीश कुमार मजबूत होते गये, उन्होंने पार्टी पर पूरी तरह से कब्जा सा कर लिया। सबसे पहले स्वास्थ्य का हवाला देकर उन्होंने जॉर्ज को किनारे किया। दिग्विजय ने इसका विरोध किया लेकिन शरद चुप रहे। इसके बाद दिग्विजय भी किनारे लगाए गये और वो कुछ बड़ा विरोध कर पाते इससे पहले ही उनका असामयिक निधन हो गया। शरद यादव पार्टी के अध्यक्ष बने रहे लेकिन सबको पता था कि पार्टी चलती है नीतीश कुमार के ही इशारों पर। लेकिन शरद यादव हमेशा अपनी ताकत को लेकर गलतफहमियों के शिकार रहे। अंततः नीतीश कुमार ने सभी भावनात्मक पर्दों को उतार फेंका और शरद यादव को अध्यक्ष पद से हटाकर पूरी तरह पार्टी के सर्वे सर्वा बन बैठे। शरद यादव के लिए इशारा साफ था कि आपका जमाना लद चुका और आराम से मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बन जाएं। लेकिन शरद जी इशारे थोड़ा कम ही समझते हैं। अब आज की तारीख में जेडीयू का मतलब है नीतीश कुमार। ऐसे में शरद यादव यदि खुशफहमी पालें कि उनके एक इशारे पर पार्टी में बगावत हो जाएगी तो उन्हें याद रखना चाहिए कि वो दिन कब के लद चुके जब उनके पेशाब से चिराग जला करते थे। आज लालू यादव अपनी राजनीतिक हार का बदला चुकाने के लिए शरद यादव को मोहरा बना रहे हैं। अब शरद यादव को इतनी अक्ल तो होनी चाहिए कि बिहार में यादव के नेता सिर्फ लालू यादव हैं। शरद यादव की यहां अपने दम पर कोई राजनीतिक औकात बची नहीं है। लालू के झांसे में बेवजह नीतीश से उलझकर अपना बुढ़ापा खराब करने पर तुले हैं। लालू पहले ही कह चुके हैं कि नीतीश के पेट में दांत है। पार्टी अब नीतीश की है, इस सच्चाई को शरद यादव यदि जल्द समझ जाएं तो बेहतर है।