बिहार को भ्रष्टाचार की बीमारी नहीं लगी है, ऐसा लगता है कि प्रदेश को मानो भ्रष्टाचार की लत लग गई है। इसका परिणाम है कि पीड़ित और अपराधी दोनों को भ्रष्टाचार से फर्क पड़ना बंद हो गया है। यहां रिश्वत लेने देने को अब कोई अपराध नहीं मानता। रिश्वत लेकर काम कर देने वाले कर्मचारी को लोग ‘ईमानदार’ कर्मचारी मानते हैं। रिश्वत का पैसा सभी हिस्सेदारों तक बराबर पहुुंचाने वाला कर्मचारी अधिकारियों के बीच भी बड़ा सम्मान पाता है। यह बिहार का सुशासन मॉडल है।
पिछले दिनों बक्सर के सूचना अधिकार कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय ने बिहार के सभी पंचायतों के पांच साल का लेखा जोखा मंगाया। हैरानी की बात है कि सरकार से प्राप्त राशि और पंचायत में हुए खर्च को लेकर जिन जिन पंचायतों में उन्होंने जाकर निरीक्षण किया, एक भी पंचायत उन्हें नहीं मिला जिसने ईमानदारी से सरकार का पैसा खर्च किया हो। पंचायत के कुछ मुखियाओं से बात करने पर जवाब मिला कि यहां प्रखंड विकास पदाधिकारी को खुश किए बिना कोई काम नहीं होता। अब मुखिया क्या बीडीओ साहब को पैसा अपनी जेब से दें? वैसे भी जो पैसा नहीं देता है, उनका पैसा प्रखंड में फंस जाता है। यह बात बिहार में सब मुखिया लोगों को पता है। ईमानदार मुखिया पूरे बिहार में ढूंढ़ने से मिलेंगे।
वास्तव में कोई इस भ्रष्टाचार के चेन की ईमानदारी से पड़ताल करे तो बात सरकार के किसी ना किसी मंत्री तक पहुंच जाएगी। जब बिहार में चल रहे हर एक अपराध में सरकार का ही कोई ना कोई मुलाजिम शामिल है फिर कार्रवाई की उम्मीद किससे की जाए?
बिहार में बहार नहीं, भ्रष्टाचार है और नीतीशे कुमार है। ना स्कूल है और ना अस्पताल है। खर्च जाति के सर्वेक्षण पर हो रहा है और बिहार में गरीब परिवारों के पास रोटी का ठीकाना नहीं है। रोजगार के लिए दिल्ली मुम्बई जाइए और जात बताने के लिए बिहार आइए। यही बिहार की राजनीति रह गई है।
बिहार में विकास चाहे रिवर्स गियर पर है लेकिन यहां माफिया कारटेल बनाकर जिस गति से काम कर रहे हैं। उनकी पकड़ सरकार और प्रशासन पर कितनी मजबूत है, इसका प्रमाण प्रदेश सरकार में शामिल नेताओं के बयान और कार्रवाई से स्पष्ट होती है। जब बिहार के सरकार में कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह ने कहा कि हमारे विभाग में कई चोर लोग हैं और हम उन चोरों के सरदार हैं, हमारे ऊपर भी और कई सरदार मौजूद हैं।
मंत्रीजी की इस साफगोई के बाद नीतीश सरकार उन्हें साथ लेकर कृषि विभाग में भ्रष्टाचार को खत्म करने का कोई अभियान चला सकती थी लेकिन उन्होंने मंत्री को उनके पद से बर्खाश्त कर दिया।
शराब माफिया की वजह से बिहार में शराब के नाम पर लोगों को जहर पीला दिया गया। जहर का कच्चा माल स्थानीय थाने से ही उपलब्ध कराया गया लेकिन कार्रवाई के नाम पर ”जो पीएगा वो मरेगा” वाला सीएम साहब का चर्चित बयान सामने आया।
जब शिक्षा माफिया बिहार स्टाफ सेलेक्शन कमिशन की परीक्षा का पेपर लीक किया तो बिहार सरकार ने माफियाओं पर कार्रवाई के आश्वासन की जगह, प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर जनवरी की इस ठंड में लाठी चार्ज कराया। इतना ही नहीं छात्रों पर एफआईआर और उनकी गिरफ्तारी तक हुई। इस सारे घटनाक्रम पर जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह ने कहा— ”पहली बार हुई है क्या लाठीचार्ज। ये सब तो होते ही रहता है। इसका क्या मतलब है? प्रदेश में पहली बार लाठी चार्ज हुई है तो बात हो न।”
देशभर में नीतीश कुमार के सुशासन की चर्चा हुई लेकिन इस सुशासन में बिहार में ना अस्पताल बन पाया, न स्कूल मिला, ना कॉलेज मिला। शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार सब मामलों में बिहार फिसड्डी का फिसड्डी ही रहा। पहले उत्तर प्रदेश और बिहार का नाम साथ साथ ले लेते थे। अब पिछड़ेपन के मैदान में बिहार अकेला खड़ा है।