विश्व प्रसिद्ध तीर्थराज प्रयाग में कुंभ का आयोजन चल रहा है। इस बीच बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में भी एक संगमस्थली की खोज और उसकी पुनर्प्रतिष्ठा हुई। सिमरिया के प्रसिद्ध संत करपात्री अग्निहोत्री परमहंस स्वामी चिदात्मन जी महाराज की प्रेरणा से इस संगमस्थली की पुनर्प्रतिष्ठा की गयी। इसी क्रम में पौष पूर्णिमा के अद्भुत संयोग में इस ऐतिहासिक संगम स्थली पर हजारों लोगों ने स्नान किया। शताब्दी पंचांग की गणना के हिसाब से सोमवार को पड़ने वाली पौष पूर्णिमा और इससे जुड़ा ऐसा अमृत योग अब 2044 में ही आएगा। विगत 102 में चौथी बार यह योग आया।
पौराणिक मान्यताओं में पौष के सूर्य को विष्णु का रूप मानते हैं। सोमवार को चंद्रमा का वास होता है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्णता में रश्मियां प्रदान करती है। ऐसे में पौष मास में जब सोमवार को पूर्णिमा का योग बने तो कोशी, कमला और बागमती के संगम तट पर स्नान का महत्व करोड़ों सूर्य ग्रहण स्नान और कई कुंभ स्नानों से अधिक फल देने वाला होता है।
इस पावन दुर्लभ योग के अवसर पर स्वामी चिदात्मन जी महाराज के साथ हजारों की संख्या में लोगों ने पवित्र संगम में स्नान किया। पवित्र संगम का यह स्थान समस्तीपुर, दरभंगा, खगड़िया और सहरसा जिले की मिलन स्थली भी है। आस पास के जिलों से भी आए लोगों ने बड़ी संख्या में स्नान किया।
आध्यात्मिक-पौराणिक मान्यता में कोशी को मां काली, कमला को मां लक्ष्मी और बागमती को मां सरस्वती का साक्षात स्वरूप मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि पूर्व में यह स्थान पवित्र संगम स्थली और कल्पवास स्थली भी रही।
बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में पंद्रह सदानीरा नदियां वैदिककाल से प्रवाहमान है। इनमें कोशी, कमला और बागमती का प्रमुख स्थान है। हिमालय से निकलकर नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश करने वाली ये तीनों नदियां बिहार के समस्तीपुर जिले में बिथान प्रखंड में स्थित जगमोहरा के पास आपस में मिलती हैं। पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से यह स्थली कभी पवित्र संगम स्थली और कल्पवास का क्षेत्र भी रही।
कोशी नदी हिमालय से निकलती हैं और नेपाल के रास्ते भारत और बिहार की सीमा में प्रवेश करती हैं। बागमती नदी का उद्गम भी हिमालय है। यह बाग्द्वार से निकलती है। नेपाल का सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल पशुपतिनाथ भी इसी नदी के तट पर स्थित है। बिहार के सीतामढ़ी जिले में समस्तीपुर नरकटियागंज रेल लाइन के समीप भारत की सीमा में प्रवेश करती है। कमला नदी का उद्गम हिमालय में सिंधुलियागढी के पास है। बिहार के मैदानी इलाके में यह मधुबनी के जयनगर में प्रवेश करती है। ये तीनों नदियां नेपाल के रास्ते बिहार में प्रवेश करती है। लंबी दूरी तय करने के बाद समस्तीपुर जिले के बिथान प्रखंड के जगमोहरा में कमला, कोशी और बागमती नदियां आपस में मिलती हैं।
जगमोहरा में तीनों नदियों की मिलन स्थली अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करती हैं।
संगम स्नान से पूर्व जगमोहरा की परिक्रमा की गयी। इस परिक्रमा में स्थानीय लोगों ने हिस्सा लिया। काली दुर्गे राधे श्याम, गौरी शंकर सीताराम के जयकार के साथ हजारों लोगों ने लगभग चार किलोमीटर की परिक्रमा पूरी की।
इस अवसर पर यहां त्रिदिवसीय लक्षाहुति अंबा महायज्ञ का भी आयोजन किया गया। साथ ही त्रिदिवसीय धर्भ सभा का भी आयोजन किया गया जिसमें देश की राजधानी दिल्ली, बिहार की राजधानी पटना और बिहार के अन्य हिस्सों से आए विद्वानों ने हिस्सा लिया। इस धर्भ सभा और यज्ञ में स्थानीय लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। स्थानीय लोगों के अपार उत्साह से ऐतिहासिक संगम स्थली की पुनर्प्रतिष्ठा के अभियान में हजारों लोग शामिल हुए। संगम तट पर मेले सा माहौल हो गया।
कुंभ स्नान के संपन्न होने पर स्थानीय लोगों ने संगम की पवित्र मिट्टी को मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां सरस्वती का एक भव्य मंदिर बनाकर उसमें प्रतिष्ठित करने का संकल्प भी लिया।