भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ आज अपनी मौसी रानी गुंडीचा के घर छुट्टियां मनाने जायेंगें । सोचिए ज़रा कोरोना काल में सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस संक्रमण की आशंका के चलते 18 जून को भगवान जी की वार्षिक छुट्टियां रद्द कर दी थीं । पूरे साल में एक बार तो भगवान अपनी मौसी रानी गुंडीचा के घर जाते हैं । वो भी रद्द होने पर तीनों भाई बहनों को कितना बुरा लगा होगा । अपने मन की बात उन्होनें अपने भक्तों से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचायी और आज भगवान जी को रथ यात्रा की अनुमति मिल गयी । पुरी , ओड़िशा और देश विदेश में जगन्नाथ जी के भक्तों में खुशी की लहर है । पुरी में भगवान के शबर जनजाति के सेवायत श्री रामकृष्णदास महापात्र जी को फोन किया तो मारे खुशी की उनकी आवाज़ ही नहीं निकल रही थी । भरे गले लेकिन आवाज़ में छलकती खुशी से उन्होनें कहा देखा मैनें आपको 18 जून को ही बोल दिया था ना जगन्नाथ जी की ये भी एक लीला है अभी पांच दिन बाकी हैं देखते हैं महाप्रभु क्या चाहते हैं । महाप्रभु रथ यात्रा करना ही चाहते थे ।
आज सारा दिन ज़ी न्यूज़ में मेरे सहयोगी और छोटे भाई समान सौमित्र हरिचंदन संपर्क में रहे . ये जानने की उत्कंठा , कि रथ यात्रा की अनुमति मिली की नहीं ? ऐसा पहली बार होगा कि भगवान कर्फ्यू में अपनी रथ यात्रा करेगें । आज रात 9 बजे से पुरी जिले में कर्फ्यू लगा दिया गया है , पुरी की सभी सीमाएं सील कर दी गयीं हैं । सुरक्षा बलों की 50 टुकड़ियां तैनात कर दी गयी हैं । केवल सेवायत कोई भक्त नहीं होगा इस साल । कहां तो दस लाख से ज्यादा भक्त आते थे पतित पावन के दर्शन करने । यहीं एक अवसर है जब गैर हिंदु भक्त अपने भगवान के दर्शन कर सकते हैं ।
बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित पुरी शहर को पुरूषोत्तम क्षेत्र कहा जाता है । चार धामों में ये कलयुग का धाम है । श्री बद्रीनाथ सतयुग का धाम जहां भगवान विष्णु स्नान करते हैं , द्वारका द्वापर युग का धाम यहां विष्णु जी वस्त्र बदलते हैं , पुरी कलयुग का धाम यहां आकर यहां आ कर भोजन करते हैं , इसलिए इसे अन्न क्षेत्र भी कहते हैं । और रामेश्वरम त्रेता युग का धाम जहां वो शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं ।
भगवान विष्णु पुरी में आदि अनादि काल से विराजमान हैं । बाकी मंदिरों की तरह ये मंदिर भी मुगल आक्रणकारियों, मुगल लुटेंरों और अत्याचारियों के निशाने पर रहा । कईं बार ऐसा हुआ कि भगवान पुरी में रथ यात्रा नहीं कर पाए । लेकिन पिछले 287 वर्ष से उनकी यात्रा निर्विध्न जारी है । इस बार लगा था कि नहीं हो पायेगी रथ यात्रा लेकिन महाप्रभु की जैसी इच्छा । ओडिशा के महान इतिहास कारों की किताबों में वर्णन है मुगल आतयाईयों ने कब कब नहीं होने दी रथ यात्रा –
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—– वर्ष 1731 में ओडिशा के तत्कालीन उप राज्यपाल मोहम्मद तकी खान ने श्री जगन्नाथ मंदिर पर हमला किया । मूर्तियों को पहले ही मंदिर से हटा कर चिल्का ले जाया गया और बाद में चिल्का तहसील के हरीश्वर मंडप में मूर्तियों को स्थापित कर दिया गया । बाद में गंजम जिले के चिकली गांव में मूर्तियां रखी गयीं । इस वर्ष रथ यात्रा नहीं हो पायी थी ।
——–1733 में मोहम्मद तकी ने फिर श्री जगन्नाथ मंदिर पर हमला किया । श्री मंदिर से मूर्तियों को फिर से हरीश्वर मंडप ले जाया गया । वहां से फिर गंजम जिले के हाथीबाड़ी में दो वर्ष तक मूर्तियों को रखा गया और गुप्त रूप से पुजारी भगवान की पूजा करते रहे । लगातार तीन वर्ष 1733 से 1735 तक रथ यात्रा नहीं हो पायी ।
— वर्ष 1692 में ओड़िशा के मुगल कमांडर इकराम खान ने श्री जगन्नाथ मंदिर पर हमला किया । जब इकराम खान अपनी सेनाओं के साथ पुरी की ओर बढ़ रहा तो सेवायतों ने पहले ही मूर्तियां वहां से हटा दीं ।खुर्दा के बिमला देवी मंदिर के पीछे मूर्तियां छुपा दी गयीं बाद में चिल्का झील के पास गाड़ा कोकला गांव में और फिर 1707 तक मूर्तियां बानापुर जिले के हनतुड़ा गांव में रखी गयीं । लगभग 13 वर्ष तक रथ यात्रा नहीं हो पायी ।
———1621 में मुस्लिम सूबेदार अहमद बेग ने मंदिर पर हमला किया मूर्तियों को बानापुर के एक गांव में ले जाया गया । बाद मे मूर्तियों का ब्रहम (प्राण ) खुर्दा जिले के एक गांव में ले जाकर स्थापना की गयी । 1621 और 1622 में रथ यात्रा मुगल आक्रमणकारियों के कारण नहीं हो पायी ।
——-1607 में ओडिशा के मुगल सूबेदार कासिम खान ने मंदिर पर हमला किया । मूर्तियां इस बार भी पहले ही हटा कर खुर्दा ले जायीं गयीं । इस वर्ष भी रथ यात्रा नहीं हो पायी ।
——–1601 में बंगाल के नवाब के सूबेदार मिर्जा खुर्र्रम ने मंदिर पर हमला किया । लेकिन पुजारियों ने पहले ही मूर्तियों को कपिलेश्वर के पंचमुखी मंदिर सुरक्षित पहुंचा दिया था । इस वर्ष भी रथ यात्रा नहीं हो पायी ।
1568 में बंगाल के बादशाह सुलेमान किरानी के जनरल काला पहाड़ ने मंदिर पर हमला किया लेकिन मूर्तियां भंग नहीं कर पाया पहले ही हटा ली गयीं । 1568 से 1577 तक रथ यात्रा नहीं हो पायी थी ।
कुल मिला कर इतिहास गवाह है कि शांति दूतों को केवल भारत का राज पाठ नहीं चाहिए था उनको हमारे मंदिर और मूर्तियां भंग करने का भयंकर रोग था जो आज भी ज़िदा है । कश्मीर घाटी के मंदिर इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं ।