लद्दाख में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी पर चीनी सेना का फ्लॉप शो लगातार जारी है। पहले चीनी गलवान घाटी में पिटे और फिर ब्लैक टॉप जैसी सैन्य रणनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण चोटियां भी भारतीय सेना के हाथों खो दी। इलाके का चौधरी बनने की चाह में चीन ने भारत की जमीन दबाने की कोशिश की, जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया। चीन जानता है कि एशिया से निकल कर दुनिया का बेताज बादशाह बनने में केवल एक ही रूकावट है और वो है उभरता भारत। अगर भारत को दबा लिया तो जापान से लेकर आस्ट्रेलिया तक सभी छोटे बड़े तमाम देश उसे सलाम करेंगे।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की राजनीतिक एवं आर्थिक महत्वकांक्षा पर चीनी सेना ने पूरी तरह पानी फेर दिया है। चीनी राष्ट्रपति के इशारे पर, बफर जोन में घुसी चीनी सेना ने, यह हिमाकत इसलिए की क्योंकि उसे लगता था कि भारत 1962 की तरह ही रियक्टिव अप्रोच अपनाएगा। सही भी है, 1962 के बाद कई दशक बीत गए पर भारत ने कभी भी पहल नही की। चीनी सेना ‘सलामी स्लाइसिंग’ यानी धीरे धीरे जमीन कब्जाने की रणनीति पर चलती रही और हम बस रस्मी प्रोटेस्ट ही करते रहे।
गलवान घाटी में घात लगा कर कंटीले तार लगे हथियारों से हमला कर चीनियों को लगा कि वे निहत्थे भारतीय फौजियों के पखच्चे उड़ा देंगे, पर दांव उल्टा पड़ गया। बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमारे वीर सैनिक मारते मारते मरे। 20 भारतीय जवानों के जान के बदले सेना ने कम से कम 43 चीनियों को ढ़ेर कर दिया। कुछ स्वतंत्र सोर्स तो यह संख्या और भी अधिक बताते हैं। भारतीय सेना से रियक्टिव अप्रोच की आशा कर रहे चीनियों के लिए यह बड़ा सबक था। गलवान घाटी की हिंसक झड़प ने पूरी दुनिया को झंकझोर दिया। नए भारत की ताकत और भारतीय सेना की जाबांजी को सभी ने नोटिस किया।
अब सवाल यह उठता है कि भारतीय सेना की यह जाबांजी कहां छुपी हुई थी। क्यों पहले वह सिर्फ मूक दर्शक बनी हुई थी। दरअसल दुश्मन को सबक सीखाने का माइंडसेट तो भारतीय सेना के पास पहले से रहा है। 1972 और करगिल का युद्ध इसके बड़े उदाहरण है। कश्मीर भी भारतीय सरजमीं का हिस्सा इसलिए ही है क्योंकि वह सेना की हिफाज़त में है। पर राजनीतिक नेतृत्व ने सेना के हाथों को सदैव बांधे रखा। नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही पहला काम यह किया कि सेना के हाथ खोल दिए।
इधर नरेंद्र मोदी सरकार ने सेना के हाथ खोले उधर दुश्मनों के मुंह खुल गए। पाकिस्तान की नापाक हरकतों के विरूद्ध उड़ी की सर्जिकल स्ट्राइक हो या बालाकोट की एयर स्ट्राइक सेना ने अपना दमखम हमेशा साबित किया है। अब बारी चीन की है। डोकलाम में 73 दिनों तक भारतीय सेना चीनियों की आंखों में आंखे डाल कर खड़ी रही और आखिरकार चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा। डोकलाम से खदेड़े जाने के बाद से ही चीन बिलबिला रहा है। लद्दाख में भी यही होगा भातीय फौज का रोद्र रूप अब दुनिया देखेगी।
प्रसिद्ध पुस्तक “आर्ट ऑफ़ वॉर” में पुरातन चीनी सैन्य विचारक सन त्जु ने यह तो बताया कि किस तरह दुश्मन से बिना लड़े ही युद्ध जीता जा सकता है, पर वह यह बताना भूल गए कि अपनी जान की परवाह किए बिना अगर दुश्मन सेना चढ़ दौड़े तो अपने को कैसे बचाया जाए।
चीनी सैन्य कंमाडरों को लगता है कि लाउडस्पीकर्स पर पंजाबी गाने बजा कर और भारतीय सैनिकों को उकसा कर वे बिना लड़े ही युद्ध जीत सकते हैं। दूसरी तरफ चीनी साइक्लोजिकल वॉरफेयर और प्रोपेगेंडा से प्रभावित हुए बिना भारतीय फौज लद्दाख में सर्दियों की अपनी तैयारियों को अंजाम देने में जुटी है। सेना को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास है। उसे अहसास है कि 130 करोड़ भारतीयों का सम्मान उसके हाथ में है। राजनीतिक नेतृत्व का भरोसा भी भारतीय फौज के साथ है। उम्मीद है हर बार की तरह इस बार भी दुश्मन मुंह की खायेगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। संबंद्ध लेख में सभी विचार लेखक के हैं। बोल बिंदास की इससे सहमति होना आवश्यक नहीं है।