नई दिल्ली, स्वतंत्र प्रश्न करने की प्रज्ञा, सामर्थ्य और छूट का नाम है हिन्दुत्व। प्रश्न करने की छूट न होना अहिन्दुत्व है। भारत में अनेकों मत, विचार स्वतंत्रता के साथ फले-फूले इसका आधार यहां की अध्यात्म की भावना है। उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने श्री जे.नंद कुमार की पुस्तक ‘हिन्दुत्व फौर द चेंजिंग टाइम्स’ के विमोचन के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में प्रकट किए।
डॉ. कृष्ण गोपाल ने बताया कि हिन्दुत्व शब्द सातवी-आठवीं शताब्दी से अधिक प्रचलन में आया इसका कारण था पहली बार भारत का विविधतापूर्ण समाज एक ऐसे आक्रमण को देख रहा था जो अत्यंत असहिष्णु था। इस अत्यंत कठिन समय में भारत में जो भी समाज, मत सम्प्रदाय, विचार, दर्शन था उसने अनुभव किया कि यह संकट सबके ऊपर है, उन्हें उस बाहरी और यहां के समुदाय में अंतर साफ-साफ दिखाई दिया कि वे तुर्क और हम हिन्दू। वह बाहरी आक्रमण अनेक देशों के मत सम्प्रदाय, विचार, दर्शन को बलपूर्वक समाप्त करते हुए भारत में आया। यहां लोगों ने उसके सामने खुद को असहाय महसूस किया। इसलिए यहां का समाज खुद को बचाए रखने के लिए एक मंच पर आ गया जिसका नाम हिन्दुत्व हो गया। हिन्दुत्व के इस मंच पर आने के बाद भारत का समाज खुद को बलशाली और सुरक्षित महसूस करने लगा और 11वीं 12वीं शताब्दी में बिना किसी प्रस्ताव को पारित किए हिन्दुत्व शब्द देशव्यापी हो गया।
उन्होंने बताया कि ईश्वर एक है तथा उसे प्राप्त करने के अलग-अलग मार्गों के उपयोग को यहां के समाज ने मान्यता दी। हिन्दुत्व नाम किसी ने दिया नहीं है वह मिल गया है। हिन्दुओं के बारे में बहुदेववादी होने की चर्चा समय-समय पर फैलाई गई। हिन्दू बहुदेववादी इसलिए है क्योंकि दुनिया में लोगों की बुद्धि में विविधताएं हैं। विचार करने के स्तर की विविधता है, सामाजिक परिवेश तथा जानकारी की विविधताएं हैं। जलवायु की विविधता है अपनी-अपनी विविधताओं के अनुसार परम शक्तिशाली ईश्वर की आराधना करने की पद्धति यहां लोगों ने अपनाई। कोई चाहता है कि वह बलशाली बन जाए तो वह हनुमान की पूजा करता है। जो अध्ययन अध्यापन में रुचि लेता है वह सरस्वती की उपासना करके ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर चलता है। यह सब ईश्वर प्राप्ति के साधन हैं।
डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि भिन्न-भिन्न परिवेश, जलवायु खान-पान, भाषा बोली होते हुए भी यहां लोगों को जो जोड़ता है वह यहां का अध्यात्म है। यहां सुदूर गांवों में अनपढ़ व्यक्ति भले ही वेद शास्त्रों के ज्ञाता न हों लेकिन धर्म की मूल बात को समझते हैं दरवाजे पर आए व्यक्ति को भूखा नहीं जाना चाहिए, यह हिन्दुत्व है। भारत के करोड़ों लोग एक दूसरे की भाषा नहीं जानते लेकिन यहां की पवित्र नदियों, पर्वतों, धरती के प्रति भक्ति का भाव सभी में एक है जिसने सब को जोड़ रखा है यह अध्यात्म का भाव हिन्दुत्व है। जो यह मानता है कि दुनिया के सब लोग सुखी रहें हम मानते हैं कि वह हिन्दू ही है पूजा पद्धति चाहे कोई भी हो। आचरण की सुचिता होनी चाहिए कर्मकांड कोई भी करिए, कर्मकांड के लिए आप स्वतंत्र हैं आचरण के लिए नहीं। हमारे द्वारा लोकमंगल कार्य होना चाहिए न कि लोक को कष्ट देने वाला। आध्यात्मिक भाव मन में रखकर जीवन के समस्त कार्यों को जो करता है वह हिन्दू है, इसका नाम हिन्दुत्व है। आज दुनिया में अनेक प्रकार की जो समस्याएं हैं उनका हल अध्यात्म के प्रकाश में जाकर ही मिलेगा। हर समस्या का समाधान हिन्दुत्व के आध्यात्मिक दर्शन में है।
प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार जी ने कहा कि आज देश में हिन्दुत्व और हिन्दू शब्द को जानबूझकर बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। हिन्दुत्व का मतलब सिर्फ हिन्दू धर्म नहीं होता. पश्चिम बंगाल और केरल में हिन्दुओं पर खतरा मंडरा रहा है। पश्चिम बंगाल में सामाजिक बदलाव हो रहा है. नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के नाम पर हो रही हिंसा के पीछे केरल के प्रशिक्षित बौद्धिक लोग काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रेक इंडिया ब्रिगेड देश को तोड़ने में जुटी हुई है. देश के भीतर ही युद्ध छेड़ने की कोशिश की जा रही है. ‘Hindutva For The Changing Times’ पुस्तक में कुछ भी भावनाओं में बहकर नहीं लिखा गया, बल्कि तथ्यों के आधार पर लिखा गया है. नंदकुमार जी ने कहा कि बंगाल का रंग बदला जा रहा है. एक खास धर्म के लोगों को लाकर बसाया गया है. पाठ्यक्रमों से हिन्दुओं से जुड़े शब्द बदले जा रहे हैं. हिन्दुओं के त्यौहारों पर रोक लगाई जा रही है.
प्रज्ञा प्रवाह तथा इंडस स्क्रॉल प्रेस के संयुक्त तत्वावधान में नेहरु मेमोरियल संग्रहालय तीन मूर्ति भवन के सभागार में आयोजित इस विमोचन कार्यक्रम में पुस्तक का परिचय आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने करवाया। कार्यक्रम की अध्यक्ष के रूप में आई.सी.सी.आर. के पूर्व अध्यक्ष प्रो. लोकेश चन्द्र तथा बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी इस अवसर पर उपस्थित थे।