गुजरात में HT सोया का गैरकानूनी उत्पादन :-
इसी वर्ष दीपावली के समय मोडासा तहसील (गुजरात) के 3 गांवों के किसानों के द्वारा गैर गैरकानूनी तरीके से पैदा की गई जीएम सोयाबीन, हर्बीसाइड टोलरेंस (एचटी) की उपज को प्रशासन की सहायता से भारतीय किसान संघ ने रंगे हाथों पकड़ा।
गुजरात सरकार/ प्रशासन ने बहुत ही सतर्कता के साथ बिना अनुमति बोई गई हर्बीसाइड टोलरेंट सोयबीन की फसल को जब्त करके सीज किया और दोषी पक्षकारों पर अपराध के लिए एफआईआर भी दर्ज कराई गई। गुजरात प्रशासन को इसके लिए साधुवाद।
फसलों की नमूनों की अधिकृत प्रयोगशाला में जांच कराई गई, जहां मोंसेंटो के द्वारा विकसित तकनीक ‘राउंडअप रेडी’ पर आधारित बीज पाए गए हैं.
प्रकरण GEAC के ध्यान में एक सप्ताह पूर्व ला दिया गया था और 25 अक्टूबर को ही सैंपल सहित शिकायत पहुंचा दी गई थी. परंतु उस स्तर पर कोई कार्यवाही नहीं करना भी शंका पैदा करता है।
बीज के विक्रेता ने चार गुना कीमत पर उपज को वापस खरीदने की गारंटी दी थी।
महाराष्ट्र : कॉटन उत्पादक किसानों की सामूहिक मौतें :-
गत माह में लगभग 1000 किसान विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हुए, सर्वाधिक प्रभावित यवतमाल के आसपास ही लगभग 50 किसानों की मृत्यु भी हो चुकी।
किसानों का दोष था कि बीटी कॉटन बीज बोया, कीट आक्रमण रोकने के लिए जिस पेस्टीसाइड का छिड़काव किया गया, उसने मृत्यु का तांडव खड़ा कर दिया।
बीज उत्पादक/ पेस्टीसाइड निर्माता कंपनी कहीं दिखाई नहीं देती, सरकार द्वारा गठित एसआइटी की अनुशंसा पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने सीबीआई से जांच की मांग की है।
ध्यान देने योग्य है कि महाराष्ट्र में भी एचटी कपास के बीज होने का मामला प्रकाश में आया है. इसी वर्ष में खरपतवारनाशी सहन जीएम कपास की बीज की 472 करोड़ रूपये की बिक्री के समाचार हैं।
यह खबर भी प्रकाशित हुई कि 4 लाख से अधिक बीज पैकेट का इस वर्ष महाराष्ट्र, आंध्र और तेलंगाना में गैरकानूनी तरीके स बिना अनुमति के किसानों को बीज बेचा गया है.
इस प्रकार का हर्बीसाइड टोलरेंस (एचटी) बीज क्षेत्र में आया है। इस बात की जानकारी राज्य सरकारों को भी नहीं थी।
साउथ एशिया बायो-टेक्नोलॉजी एसोसिएशन के पदाधिकारियों को यह एचटी कपास होने की जानकारी पहले से ही थी, किन्तु वे भी कम्पनी (CEAG) के षड्यंत्र में सम्मिलित होकर चुप रहे, वास्तविक स्थिति छुपाकर रखी गई।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा तत्काल किये गए प्रयासों के लिए भारतीय किसान संघ उनको धन्यवाद देता है और उनकी सीबीआई से जांच कराने की मांग का समर्थन करता है। साथ ही साउथ एशिया बायो-टेक्नोलॉजी एसोसिएशन एवं इसी प्रकार की एजेंसी/ अधिकारियों के कार्यों को भी जांच में सम्मिलित करने की मांग करता है।
देश में आजादी के बाद सर्वाधिक शोषण किसानों का हुआ, आत्महत्या में वह विश्व कीर्तिमान बना चुका है, अत: प्रभावी कदम उठाने के लिए भारतीय किसान संघ मांग करता है कि : –
1- GEAC की सीबीआई जांच हो, दोषी पाये जाने वालों पर राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में कार्रवाई हो।
2- ग्लाएफोसेट पर तत्काल प्रतिबन्ध लगे (डब्लूएचओ) द्वारा कैंसर का कारक माना गया है ।
3- जीएमओ के लिए कोई नियामक संस्था हो, कठोर कानून के द्वारा नियंत्रित हो और जब तक पूर्णतया सुरक्षित सिद्ध नहीं हो जावे, किसी फसल का व्यावसयिक उत्पादन नहीं किया जा सके, ऐसी व्यवस्था हो।
4- गैर-कानूनी तरीके से बीज बेचकर फसलो की खेती कराने वाली दोषी कम्पनी से मृतक किसानों, रोगियों एवं पर्यावरण नुकसान संबंधी क्षतिपूर्ति की संपूर्ण राशि वसूली जाए.
5- दोषी कम्पनी को हमेशा के लिए ब्लैक लिस्टेड किया जाना चाहिए.
6- दोषी वैज्ञानिकों, अधिकारियों, संस्थाओं, व्यापारियों और (GEAC) एवं कम्पनी संचालकों को कठोर से कठोर दंड दिया जाना चाहिए।
7- देश में कृषि में प्रयुक्त होने वाली सभी प्रकार के केमिकल्स पर प्रभावी नियंत्रण के लिए भी कठोर कानून बने, जिसमें आजीवन कारावास और पर्याप्त अर्थदंड के प्रावधान ।
भारतीय किसान संघ शुरू से ही नीति आयोग, GEAC और पर्यावरण मंत्रालय को सचेत करता आया है, भारतीय किसान संघ ने खुली बहस/चर्चा करने के लिए समय तय करने एवं बुलाने के लिए भी आग्रह किया है। देश में विभिन्न संस्थाओं/संगठनों ने भी विरोध प्रदर्शन किए हैं, लेकिन दुर्भाग्य देश कि नीति निर्धारकों को कवच की भांति जकड़े हुए बंधन के चंगुल से बाहर निकलने का कोई अवसर नहीं दिया और एक के बाद एक दुर्घटनाओं की भी अनदेखी होती जा रही है।