फिल्म “हरियाणा” हरियाणवी सिनेमा की नई आस-विकास कुमार बेरवाल

“हरियाणा” बहुत लंबे इंतजार के बाद एक रीजनल हरियाणवी फिल्म थिएटर में आई और आज लोगों की जुबान पर चढ़कर बोल रही है। फिल्म के प्रति लोगों में उत्साह सोशल मीडिया पर और थिएटर के आसपास सामान्य देखने को मिल रहा है। कहानी हरियाणवी पृष्ठभूमि की है, जाट परिवार की कहानी और इस कहानी ने हरियाणा की उस छवि को बखूबी दिखाया गया है जो उसकी पहचान है। हर गंभीर से गंभीर स्थिति में हरियाणवी हंसना और हंसाना नहीं भूलते। सामाजिक सरोकारों से भरपूर, आपसी रिश्ते, मेल-मिलाप, रीति-रिवाज और मखोल आपको ग्रामीण परिवेश में खींच कर ले जाता है। ऐसे ही कुछ रंग दिखाती फिल्म “हरियाणा” हमारे सामने आई है। कहानी में हाजिर जवाबी और सिचुएशनल कॉमेडी ने दर्शकों को हर तीसरी चौथी मिनट में हंसाया कहानी में संवाद अदायगी बाद में, रिएक्शन बाद में आता है लेकिन सिचुएशन ही ऐसी हो जाती है कि दर्शक को पहले ही हंसना पड़ता है, वहां एक माहौल बन चुका होता है और छोटा सा संवाद भी दर्शकों को हंसने के लिए मजबूर कर देता है। भले ही वह सामाजिक प्रथाएं हो, सामाजिक परिवेश हो, घर-परिवार का आंगन हो, खेत-खलियान हो या उद्योग और राजनीति। हर जगह जो खुशनुमा वातावरण पूरे हरियाणा में वह साफ-साफ देखा जाता है। अक्सर यह कहा जाता है राजनीति में खून-खराबा और दंगे होते हैं लेकिन हरियाणा में ऐसा इलेक्शन होता है जहां पर सामने वाले प्रतिद्वंदी से मिलकर हालचाल पूछे जाते हैं, उनके चरणों में नमन किया जाता है, राम-राम की जाती है और इलेक्शन की प्रतिद्वंदिता में हरियाणा की इस खूबसूरती को बड़े प्यार और सहजता के साथ दिखाया गया है, जो कहीं से भी राजनीतिक द्वेष की भावना आपसी रिश्तो से बड़ी नजर ही नहीं आती। एक ऐसा सामाजिक परिवेश जहां पर सब आपस में मिल जुल कर रहते हैं, भले ही वह दुश्मन हो।

कहानी में इतना प्यारा संगीत और इमोशनल संगीत है जो एक चीज तो स्पष्ट कर चुका है कि बिना फूहड़ता के भी दर्शकों को बांधे रखा जा सकता है, उन्हें रुलाया जा सकता है, उन्हें इमोशनल किया जा सकता है और नचाया भी जा सकता है। गीत लेखन बहुत ही कमाल का है जो कहानी के फील को संभाल कर रखता है। “हो रामजी” जैसा रोमांटिक गीत लोगों को मदहोश करता है। वहीं “ताऊ तनै झुमके आली लयादूं” लोगों को अपने साथ नाचा लेता है। “इसका नाम सै हरियाणा” फिल्म का टाइटल ट्रैक डांस एंथम की फॉर्म में सुंदर लेखनी और संगीत के साथ साथ आवाज बहुत प्यारी है। गीत संगीत, अभिनय, कहानी, संवाद अदायगी अगर भावनात्मक रूप से दर्शकों को जोड़ रहे हैं, तो यह उस फिल्म की कहानी और उसको पर्दे पर जीवंत बनाने के बीच का बेजोड़ कमाल है।

फिल्म के सिनेमैटिक एंगल की बात करें तो फिल्म का हर फ्रेम हरियाणा के कल्चर को दिखा रहा है। वहां पर हरियाणवी पृष्ठभूमि कहीं भी अछूती नजर नहीं आती। फिल्म का कैमरा बड़ा ही कमाल तरीके से हैंडल किया गया है। जिसमें एक्शन, कॉमेडी, रोमांस और नाच गाना अपनी परिभाषा से बाहर नहीं जाता। कहानी में दिखाए जाने वाले हर तत्व चाहे ग्रामीण परिवेश दिखाना है, खेत खलियान दिखाना है, पहनावा दिखाना है, सामान्य जीवन में प्रयोग होने वाली चीजें सब को बड़ी सुंदरता से दिखाया गया है। सिनेमैटोग्राफी जड़ों से जुड़ी हुई महसूस होती है।

हर एक पात्र हर तरह के कपड़ों में अच्छा दिखे यह जरूरी नहीं है लेकिन वही पात्र ग्रामीण परिवेश के कपड़ों में सहजता से दर्शकों को आकर्षित कर रहे हैं और वही पात्र जब मुंबई जाकर सूट बूट पहन लेते हैं तो भी दर्शक स्वीकार कर रहे हैं। वहां कहीं भी हंसी का पात्र उनके कपड़े नहीं होते। हम अक्सर देखते हैं कि फिल्म में बेतरतीब कपड़े पहना कर कॉमेडी क्रिएट करने की कोशिश की जाती है लेकिन यहां पर पहनावे को इतना सुंदर डिजाइन किया गया है कि हर पात्र कुर्ते पजामे में भी और सूट बूट में भी बहुत सहजता से स्वीकार किया गया। इस फिल्म में रेणुका कादयान कॉस्टयूम डिजाइनर है, जो हरियाणा के बेटी है बड़ा ही कमाल का काम किया है। हर कैरेक्टर के कपड़े उसकी पर्सनैलिटी को इस कदर उभारते हैं कि वह आकर्षित ही नजर आए। कॉस्टुयम डिजाइनर रेणुका कादयान ने अपने काम से ना केवल हरियाणा में बल्कि मुंबई में भी अपना नाम कमाया गर्व होता है हरियाणा की ऐसी बेटी पर।

अगर फिल्म में कॉमेडी की बात करें तो एक छोटी सी कहानी में हद से ज्यादा सिचुएशनल कॉमेडी डिजाइन की गई है, जो बहुत सारे पात्रों को परिभाषित करती हुई कहानी को आगे बढ़ाती है। कहानी में हर एक पात्र चाहे वह एक फ्रेम के लिए आया हो, दर्शकों के दिमाग में अपनी अमिट छाप छोड़ता चाहे वह मुंबई रहने वाले अमर सिंह काका के रूप में जोगेंद्र कुंडू, काका के रूप में राजू मान और लोकेश मोहन खट्टर, लांबा के किरदार में कुलदीप, रोकी के किरदार में शंकर और विजय के रूप में अरमान अहलावत। ये सभी पात्र हमें अपने आस-पड़ोस में रहने वालों के जैसे दिखते हैं और जो भी यथार्थ और सच्चाई से जुड़ी होती हैं तो हम ज्यादा जुड़े हुए महसूस करते हैं।

कहानी के पात्रों की बात करें तो यश टांक जो महेंद्र के पात्र में है। अपनी धीर-गंभीर और जिम्मेदार पात्र होने के साथ-साथ सहज, सरल और आजाद ख्यालों की छवि को निभाने में अपने कैरेक्टर के साथ न्याय करते हुए दिखे हैं। बल्कि पूरे हरियाणा के किरदार को उनमें देखा जा सकता है, जो दिल खोलकर प्यार बांटता है। सभी की खुशियों का ख्याल रखता है। उम्र में बड़ा है, जिम्मेदार है लेकिन उनकी एक्टिंग गंभीरता में भी हंसी दिलाती है। जिम्मेदार आदमी के सामने सिचुएशन ही ऐसी खड़ी हो जाती है कि उसकी जिम्मेदारी निभाने का पक्ष भी दर्शकों को हंसा देता है जैसे रिश्ते की शुरुआत में हम कैसे बात करें, उनमें महेन्द्र बहुत असहज है। कहीं लड़की का पीछा करते हुए बात नहीं हो पाती तो वह लड़की के हाथ में पैसे थमा देता है। आकर्षण सिंह, महेन्द्र का सबसे छोटा भाई जुगनू को जब हीरोइन से प्यार होता है तो बड़ा भाई होने के नाते उसे प्यार से या मार से समझा सकता है लेकिन जुगनू को मुंबई भेज देता है, अपना प्यार तलाशने के लिए जहां पर दुनियादारी में जुगनू खुद ही यह समझ लेता है कि अपना कल्चर, अपनी सोशल वैल्यू क्या होते हैं। यह एक बड़े भाई का प्यार, बड़प्पन और सीख देने अनूठी कला दिखाई गई है

अश्लेषा सावंत जिन्होंने बिमला के किरदार को बड़ी सुंदरता से निभाया है, अश्लेषा सावंत ने अभिनय और बेबाक संवाद अदायगी ने पात्र में जान डाल दी। बिमला इमोशनल है, केयरिंग है, सोशल है, जागरूक है, पढ़ी लिखी है लेकिन अपनी मर्यादाओं को जानती हैं सहजता और सरलता से अपने संस्कारित और पारिवारिक धर्म का मान रखती है। समाज की औरतों को उनके अधिकार और हकों के लिए जागरूक करती है।

महिंद्र का बीच का भाई जयबीर जिसका किरदार रॉबी ने निभाया, यूनिवर्सिटी में पड़ता है। जयबीर इमोशनल, केयरिंग और सेंसिटिव है एक तरफा प्यार की दीवानगी को सिर पर चढ़ते भी दिखाया है लेकिन एक जिम्मेदारी का अहसास उसने साथ में रखा। प्यार के लिए जिस तरीके की कॉलेज यूनिवर्सिटी में लड़ाई-झगड़े होते हैं। जयबीर को अपनी गलती का एहसास भी होता है और सुधरता है। कॉलेज में पढ़ते हुए प्यार होना आम बात है लेकिन यह भी हरियाणा में आम बात है कि प्यार करने वालों की बात लड़की को कभी पता ही नहीं चल पाती। प्यार में हर बार पाना ही सब कुछ नहीं होता, कभी-कभी जिसको हम चाहते हैं उसको सही मंजिल तक पहुंचाना भी प्यार ही होता है। हर एक रंग में कमाल का अभिनय किया है जो हर दृष्टिकोण से निर्धारित किरदार में समाए हुए दिखता है।

मोनिका शर्मा जिसने वसुधा का किरदार निभाया हरियाणवी फिल्म जगत को ऐसी अभिनेत्री मिली है जो डायलॉग्स और एक्टिंग से बढ़कर आंखों से बात करती है। हर एक इमोशन को और हर एक भाव को अपनी आंखों से इतनी खूबसूरती से वसुधा ने निभाया है कि हर कोई उनकी आंखों का दीवाना हो ही जाएगा। हर गीत में उनकी भाव-भंगिमा भाव-विभोर कर देने वाली हैं। फिल्म के अंत में भी दिखाया गया है कि आंखों से दो प्रकार की बात करती है कि आपने जो किया है, उस सब का पता है लेकिन फिर भी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

आकर्षण सिंह जिन्होंने जुगनू का किरदार निभाया और हरियाणा को एक ऐसा स्टार मिला है जो हर एक्सप्रेशन को बखूबी निभा रहा है। एक किशोरावस्था में प्यार होने पर किस तरीके की ऊंची उड़ान एक किरदार भर सकता है, चेहरे पर साफ देखी जा सकती है।

बड़े भाई को मक्खन लगाना हो, इमोशनली ब्रेकडाउन होना हो या फिर अपने और अपने परिवार के गौरव की बात समझ में आती है तो वहां पर गंभीर और समझदार भी है। अपनी जमीन, अपनी सोशल वैल्यूज और अपने कल्चर को जब महत्व दिया जाता है तो फिर आदमी समझदार हो ही जाता है। कमाल का अभिनय और संवाद अदायगी आकर्षण सिंह ने निभाई है।

हरिओम कौशिक जिन्होंने रोहताश का किरदार निभाया है। फिल्म का पहला सीन है जो रोहताश के नाचने से शुरू होता है यह एहसास करवा देता है कि यह फिल्म रूटेड है और बहुत हंसाने वाली है। हरियाणा की शादियों में ऐसा किरदार हमें अक्सर देखने को मिलता है जो सबसे पहले शुरू होता है और जब तक शादी शुरू होती है तब तक तो वह शराब पीकर किसी कोने में पड़ा होता है। रोहताश को होश पूरी शादी खत्म होने के बाद ही आता है।

फिल्म के ओपनिंग शॉट्स से ही हरिओम ने खुद की उपस्थिति दर्ज कराई और अपने को पात्र में ढाल के रखा। एक बिल्कुल मंदबुद्धि, पागल और हरियाणवी में कहें तो बावली बूच के रंग में रंगे रखा। अपने संवाद अदायगी, चेहरे की भाव-भंगिमा, बॉडी-लैंग्वेज और एक्टिंग से पूरी फिल्म में दर्शकों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते नजर आए।

उसी प्रकार सतीश कश्यप जो फौजी के किरदार में है, तुरंत फैसला लेने वाला एक पात्र होता है जो बिना सोचे हां में हां करता रहता है हर महफिल में रंग जमाने की हिममत रखता है और ऐसे बहुत सारे किरदार नजर आए जो प्रमुखता से उभरे हैं और जिन्होंने हरियाणवी सिनेमा में अपनी छाप छोड़ी है।

फिल्म निर्देशक संदीप बसवाना जिन्होंने फिल्म ही नहीं हरियाणवी सिनेमा को एक नई आस बना कर दी है। बहुत सुंदर कहानी और बहुत सुंदरता से इसका चित्रांकन, धरातल पर टिकी हुई, सहजता के साथ, सांस्कृतिक परिवेश से लबरेज, सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी, हरियाणा की कहानी, हरियाणवी कल्चर और हरियाणवी परंपराएं, हरियाणवी मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, सामाजिक वातावरण और इतने सारे किरदारों को लेकर निसंदेह हरियाणा की अब तक की सबसे बड़ी फिल्म कहूंगा क्योंकि हर एक पात्र की अपनी एक कहानी होती है उस कहानी के साथ दर्शकों को जोड़ना, दर्शकों को संतुष्ट करना अपने मूल सांस्कृतिक परिवेश को पकड़ के रखते हुए। यह सब कर पाना आसान नहीं है। फिल्म तकनीकी रूप से काफी मजबूत है ऐसा अब तक किसी हरियाणवी सिनेमा में देखने को नहीं पाया गया। फिल्म की कहानी, उसका स्क्रीनप्ले, उसका पिक्चराइजेशन, फिल्म का पार्श्व संगीत, संपादन, कलर समायोजन, सेट डिजाइनिंग, अभिनय, कॉस्टयूम, लोकेशन और सबसे जरूरी जो एक निर्देशक का धर्म होता है कि निर्देशक ने अंत तक फिल्म के इमोशन को पकड़ के रखा और दर्शकों में भी वही भाव उत्पन्न करवाया। हंसते और हंसाते हुए एक गंभीर संदेश कि जमीन-जायदाद, रुपया-पैसा सब कुछ होने का मतलब यह नहीं होता हम बच्चों को पढ़ाएंगे नहीं, उनको समाज और देश से अनजाना रखेंगे और सिखाएंगे नहीं तो दुनिया से कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चल पाएंगे। फिल्मों के कल्पना जगत को सच मानते हुए हरियाणा के शायद हर लड़के की कहानी कि वह किसी न किसी हीरोइन से प्यार कर बैठता है, मगर यह तो हद ही कर दी कि आप रिश्ता लेकर पहुंच गए।

सच में परिस्थिति वश हास्य उत्पन्न कर देना अपने-आप में बेहद अनूठा होता है और निर्देशक संदीप बसवाना ने इस जिम्मेदारी को बड़ी गंभीरता से निभाया और फिल्म के अंत में संदेश दिया कि

“भाई जुगनू सियाणा हो गया।

मुंबई हरियाणा हो गया ।।”

-विकास कुमार बेरवाल

 

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