अपनी धरती से प्यार का घिनौना ढोंग मात्र है – Earth Day
शरत सांकृत्यायन
Earth Day मतलब पृथ्वी दिवस। सुनने में बड़ा अच्छा लगता है। हमारी पृथ्वी सौरमंडल का एक ग्रह है। यह अपनी धुरी पर 24 घंटे में एक बार पूरा घूम जाती है और 364 दिन 6 घंटे में सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है। तो इस हिसाब से हर दिन पृथ्वी दिवस होना चाहिए। फिर साल में एक दिन पृथ्वी दिवस का क्या मतलब हुआ? हमारे सभ्य समाज में यह एक बढ़िया चलन है। पूरे साल किसी की कोई कद्र न करो, जमकर उसकी ऐसी तैसी करो, गाली दो और एक दिन उसकी खूब आवभगत कर दो। बस, सारे पाप धुल गये। यही हम अपनी पृथ्वी के साथ भी कर रहे हैं। अभी तक हमारे विज्ञान ने जितनी तरक्की की है, उसके हिसाब से पूरे ब्रह्मांड में बस पृथ्वी ही अकेला ग्रह है जिसपर जीवन का आधार है। यहां पानी है, हवा है जिससे जीवन के फलने फूलने लायक जलवायु है। उद्भव और विकास के करोड़ों वर्षों की यात्रा में अन्य जीवों से अलग मनुष्य ने अपनी एक पहचान बनायी है। इसका दिमाग विकसित हुआ और सोचने समझने की विलक्षण ताकत ने इसे श्रेष्ठतम बना दिया। लेकिन इस श्रेष्ठता को पाकर मनुष्य ने किया क्या? अपनी इस खूबसूरत धरती को ही तबाह करने में जुट गया। आधुनिकता, विकास, शहरीकरण और औद्योगीकरण की अंधी दौड़ में हमने इस पृथ्वी के अस्तित्त्व को ही खतरे में डाल दिया है। प्रकृति ने पृथ्वी की संरचना को काफी खूबसूरती से व्यवस्थित किया है और यहां उपलब्ध हर संसाधन को इतनी बारीकी से संतुलित किया है कि सृष्टि का चक्र अनवरत चलता रहे। लेकिन अपने आप में परिपूर्ण व्यवस्था में आप व्यवधान डालेंगे, उसके करीने से सजी आलमारियों को बेतरतीबी से उलट पलट करेंगे तो जाहिर तौर पर संतुलन बिगड़ेगा। और एक बार किसी का संतुलन बिगड़ जाए तो फिर उसे धराशायी होने से कौन बचा सकता है। लेकिन हमें इसकी चिंता नहीं है। हम तो मनमानी करेंगे चाहे आने वाली पीढ़ियों को इसका कुछ भी खामियाजा भुगतना पड़े। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, ऊर्जा के प्राकृतिक स्त्रोंतों का अनियंत्रित दोहन, भूगर्भीय जल का बेतहाशा दुरुपयोग, आत्मघाती रफ्तार से वायुमंडल में घुलता प्रदूषण का जहर, आखिर कबतक बर्दाश्त कर पाएगी धरती। परिणाम भी उतनी ही तेजी से दिखने लगे हैं। लगातार बढ़ रहा धरती का तापमान, क्षतिग्रस्त ओजोन लेयर, तेजी से पिघलती दोनों ध्रुवों पर जमी बर्फ की चादर, अनियमित बारीश, तूफान और भूकंप। प्रकृति लगातार अपने तरीकों से चेतावनी दे रही है कि अभी भी वक्त है संभल जाओ। लेकिन यदि हमने जान बूझकर अपनी आंखों पर लालच का इतना मोटा परदा डाल रखा है कि कुछ भी देखने सुनने को तैयार नहीं हैं तो फिर अपनी तबाही और बरबादी के जिम्मेदार भी तो हम ही होंगे। तो जब हमने ठान ही लिया है अपने इस Earth को तबाह कर देने का फिर Earth Day का ढोंग क्यों?