(22 अप्रैल पृथ्वी दिवस पर विशेष )
कहने को तो यह पृथ्वी हमारी धरती मां है हमने इसकी कोख में जन्म लिया इसका अन्न-जल खा-पी कर हम बड़े हुए, परंतु क्या सच में बडे हुए? बड़ी तो यह वसुंधरा ही है I धीर, गंभीर सब कष्ट सहती है पर कभी उफ़ नहीं करती I बहुमूल्य रत्नों के लालच में इस धरा में सैकड़ों फीट गहराई में खनन कर मां का सीना छलनी किये जा रहे हैं अपने नित्य प्रति के कृत्यों से शस्य श्यामला धरा को प्रदूषित कर रहे हैं कहने भर को यह मधुमास चल रहा है परंतु हरियाली कितनी छोड़ी है, हमने जी?
22 अप्रैल पृथ्वी दिवस चलो याद तो आई धरती मां की I औपचारिकता ही सही परंतु कुछ ने तो याद किया ब्रह्मांड के इस अनोखे ग्रह को I आज से 50 वर्ष पूर्व 22 अप्रैल 1970 से पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत हुई I प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ कोई थीम निर्धारित करता है I कुछ पृथ्वी प्रेमी, कुछ पर्यावरणविद व कुछ विद्यार्थी अपने हिस्से का प्रयास करते हैं I इस वर्ष 2021 की थीम है ‘रिस्टोर अवर अर्थ’।
एक ओर आधी दुनिया में गत एक वर्ष से करोना का तांडव चल रहा है जो हमें बार-बार संभलने की सलाह दे रहा है I धरती मां चीख चीख कर कह रही है बढ़ती जनसंख्या का और भार सहने की ताकत अब मुझ में नहीं बची है भौतिकता वादी जीवन की गति को थोड़ा धीमा करो इस पृथ्वी और पर्यावरण की भी सुध लो धरती मां बार-बार दोहरा रही है 2 गज की दूरी संतुलित, समझदार, संवेदनशील जनसंख्या से ही होगी पूरी I प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन इस सुजला -सुफला को बदरंग कर मरुस्थल बना रहा है | सतह का जल तो मानवीय क्रियाकलापों से प्रदूषण की भेंट चढ़ा गया अब सैकड़ों फीट गहरे बोर कर कर के भूमिगत जल का अवदोहन किया जा रहा है | न हरे-भरे जंगल छोड़ें न शांत गगनचुंबी पहाड़ ही बख्शे जा रहे हैं | विकास की आंधी में बुलेट ट्रेन पूरी दुनिया में दौड़ रही है | प्रतिवर्ष महामार्गों के चपेट में हजारों वृक्ष धराशाई हो रहे हैं, पहाड़ों में मीलों लंबी सुरंगें बनाई जा रही हैं,महानगरों में भूमिगत मेट्रो, सैकड़ों उपग्रहों का प्रक्षेपण वर्तमान भौतिकता की चमक में भरमाये जगत में इस विकास का न कोई आदि न अंत | हां ! इस अभियान में मात्र गत तीन दशकों में ही 40% जीवो की अनेकों प्रजातियां विलुप्त हो गई और अनेक दुर्लभ प्रजातियाँ समाप्त होने के कगार पर हैं |
अनेक महानगरों में ऑक्सीजन की किल्लत मुख्यमंत्री गुहार लगा रहे हैं कुछ घंटों की ऑक्सीजन बची है ऑक्सीजन व पानी के लिए भी विशेष ट्रेन चलाने की नौबत आ गई है अब भी वक्त है संभल जाओ यही आज सौम्य धरा का मुक संदेश है | दुनिया के पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित करने की चिंता नितांत आवश्यकता है बढ़ता तापमान ही जलवायु परिवर्तन का एकमात्र कारण है और पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है- मानव की अविवेकी गतिविधियों से, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से |
हजारों लाखों वर्षों से मानव का इस पृथ्वी से नाता है ईश्वर ने इस पृथ्वी पर जब सभी जीवो की रचना कर दी तो सबसे अंत में मानव की रचना की और उसे ही प्रकृति सहित सभी जीवो के संरक्षण का दायित्व सौंपा था परंतु मानव रक्षक से भक्षक बन गया। उसकी लालसा ने ममता को तार तार कर दिया। भारत ही वह देव भूमि है जहां धरती को मां का श्रेय दिया गया अथर्ववेद में सुक्त है माता भूमि:पुत्रो अहम पृथिव्या। हम भारतवासी नदियों को पहाड़ों को श्रद्धा भाव से पूजते हैं, दंडवत प्रणाम करते हैं,परिक्रमा करते हैं नदियों में स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं गंगा आदि नदियों के जल का आचमन कर जीवन को धन्य मानते हैं परंतु ये सब मान्यताएं अब जड़ बन गई। अज्ञानता तथा अविवेक ने बुद्धि को जकड़ दिया है।इस अज्ञानता से शीघ्र मुक्त हो ठोस प्रयास करने होंगे। इस वर्ष की पृथ्वी दिवस की थीम इस पृथ्वी को पुनर्स्थापित करने के लिए है । जो पर्यावरण संवर्धन की मानव की जिम्मेदारियों को उसे बारबार स्मरण कराती है।हमारे प्रधानमंत्री महोदय ने ‘कैच द रैन’ नारा नहीं अपितु सार्थक अभियान का संकल्प हमारे लिए दिया है। वर्षाजल का मानसून के समय संग्रह करें,इस हेतु अभी से तैयारी करें । वृक्षारोपण मात्र सांकेतिक न करें,रोपित पौधों को जीवन दें। जो वृक्ष खड़े हुए हैं उन्हें सम्मान दें अर्थात जंगलों को अब और न उजाड़े।इस शुभ कार्य में जन जन की भागीदारी आवश्यक है सरकारी अथवा अ-सरकारी परंतु सभी योजनाएं होनी चाहिए असरकारी और यह सब संभव होगा हम आप सबकी सहभागिता से।
संजय स्वामी ‘पर्यावरण मित्र ‘
राष्ट्रीय संयोजक पर्यावरण शिक्षा
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली