मज़ा तब है जब लोग ये पूछें कि क्यों छोड़ रहे हो, मज़ा इसमें नहीं कोई पूछे कि कब छोड़ रहे हो? अभी तो किसी ने तुमसे पूछा भी नहीं था कि कब छोड़ रहें हो और तुमने छोड़ने का फैसला कर लिया। सच में ये तुम्ही कर सकते थे। माही भारतीय क्रिकेट के आज तक के सबसे कामयाब कप्तान हैं। क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में भारत को नंबर वन बनाने वाले एक मात्र कप्तान। जिसके लिए खेल में देश सबसे पहले था। खेल के लिए माही ने किसी से समझौता नहीं किया। खुद से भी नहीं। जब लगा कि अब दूसरों को मौका देना है तो उसने खुद जगह खाली कर दी। माही जितने बड़े खिलाड़ी हैं उतने बड़े इंसान भी हैं। मुझे आज भी आपसे हुई पहली मुलाकात याद है।
सहारा के सेक्टर 11 के ऑफिस में अरुण पांडेय किसी काम से मुझे मिलने आये थे। मैंने उनसे कहा कि मुझे थोड़ा समय लग जायेगा आप ऊपर आ जाओ। लेकिन अरुण ने कहा मैं जल्दी से जल्दी आ जाऊं वो नीचे ही मेरा इंतज़ार कर रहें हैं। मैं लगभग 20-25 मिनट बाद फ्री हो पाया और नीचे गेट पर उनसे मिलने पहुंचा। बाहर एक ज़ेन कार में अरुण थे मेरे पहुंचते ही वो गाड़ी से बाहर निकले और बोले भैया आपको किसी से मिलाना है। दूसरी तरफ का दरवाजा खुला सामने माही खड़े थे। पाकिस्तान में अपने खेल के झंडे गाड़ने वाला माही मुस्कुराता हुआ मेरे सामने खड़ा था। मैंने अरुण को कहा मैंने आपको अंदर आने के लिए कहा था, आपने मुझे बताया भी नहीं कि आपके साथ माही भी है। माही हंसते हुए बोले भैया मैंने ही मना किया था। थोड़ा थका हुआ था इसलिए गाड़ी में ही सो रहे थे। चेहरे पर कोई शिकन नहीं एकदम कूल। यहां से मुलाकातों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो वह चलता ही रहा।
अरुण उनके दोस्त और बाद में बिजनेस पार्टनर भी थे तो जब भी दिल्ली में वह होते और उन्हें कुछ वक्त अपने लिए बिताना होता तो उनका फोन मेरे पास आ जाता। भैया आज फिल्म देखनी है। मेरे मित्रवत बड़े भाई हरीश शर्मा जी एक लीडिंग पीआर कंपनी के मालिक थे मैं उन्हें फोन कर देता और वह सारी व्यवस्था कर देते। कई फिल्में हमने साथ देखीं। धीरे धीरे माही की व्यस्तता बढ़ती गई और हमारी मुलाकातें कम होती गई।
माही भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी बन गए। एक बार नोएडा में एक कार्यक्रम के लिए वह आने वाले थे। मेरे एक मित्र ने कहा कि एक खेल पत्रकार हैं वह माही से मिलना चाहते हैं उनसे तुम माही को मिलवा दो। मैंने सोचा अब बहुत वक्त हो गया है हमें मिले हुए, पता नहीं वह पहचानेगा भी मुझे या नहीं। खैर मैं उस कार्यक्रम में पहुंचा। बहुत भीड़ थी। मुझे लगा आज खेल पत्रकार के सामने अपनी इज्जत का कचरा हो जाएगा। इतनी भीड़ में मैं कैसे खुद माही से मिलूंगा और कैसे पत्रकार की मुलाकात करवाऊंगा। मैं हैरान परेशान था कि देखा सामने से माही लोगों से घिरे हुए आ रहें हैं। मैंने हिम्मत करके उन्हें आवाज़ दी, माही…। माही ने मेरी आवाज़ सुनकर मुझे देखा, मैने आवाज़ देते हुए उनकी ओर हाथ हिलाया उन्होंने भी मेरी ओर हाथ हिलाया और भीड़ के साथ वो एक कमरे में चले गए। मैं थोड़ा मायूस हो गया, लेकिन तभी दरवाजे पर अरुण दिखाई दिए वह किसी को ढूंड़ रहे थे, मैने उन्हें देखा उन्होंने मेरी ओर देखा हाथ हिलाया। जब मैं उनके पास पहुंचा तो वह बोले भैया आप कब आए, आने से पहले फोन तो कर लेते, माही आपको अंदर बुला रहें हैं। उन्होंने ही मेरे को बताया की अतुल भैया बाहर खड़े हैं उन्हें अंदर लेकर आओ। अंदर पहुंचा। माही मुस्कराते हुए बोले भैया आपका वज़न बढ़ गया है थोड़ा ध्यान रखिए। लगा ही नहीं कि इतना वक्त बीत गया है। मैं भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान से मिल रहा हूं। एमएसडी से। मेरे लिए तो वक्त वहीं से शुरू हुआ जहां कभी हमने छोड़ा था। भाभी कैसी हैं, छोटू कैसा है, बिटिया कैसी है एक सांस में सबका हालचाल ले लिया। तब मुझे अहसास हुआ माही को रिश्ते बनाना और निभाना दोनों आता है। बहुत सी बातें हैं जो यहां लिख सकता हूं पर क्या लिखूं क्या ना लिखूं ये तय कर पाना मुश्किल है।
खिलाड़ी तो बहुत से आयेंगे-जायेंगे। शायद तुमसे बेहतर भी लेकिन माही ना तो पहले कभी हुआ है ना ही कभी दोबारा होगा। मुझे पता है तुम जो भी करोगे उसे अपने अंदाज़ में फिनिश करोगे आखिर तुम्हें देश का सर्वश्रेष्ठ फिनिशर यूं ही नहीं कहा जाता है। भविष्य के लिए शुभकामनाएं। जल्द मिलेंगे।