देवशयनी एकादशी और विठ्टल एकादशी की शुभकामनाएं । आज मिलिए विठ्ठल भगवान की अनन्य भक्तिन और मन वचन कर्म से सच्ची संत से ,जिनके प्रयासों से दिल्ली के आर के पुरम सेक्टर 6 में विठ्ठल मंदिर बना है । भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तक क्षीर सागर में आज से शयन के लिए चले जायेंगें । बचपन से ही एकादशियों के साथ अपनी दादी के कारण गहरा संबंध रहा है । दिल्ली में आकर आषाढी एकादशी से एक अलग तरह का नाता जुड़ा । जी न्यूज में मंथन कार्यक्रम की डोयरेक्टर प्रोडयूसर होने के नाते देश भर के धार्मिक कार्यक्रमों ,तीर्थ यात्राओं ,त्योहारों, व्रत उपवासों भारतीय संस्कृति पर कार्यक्रम बनाती थी । महाराष्ट्र की अद्भुत वारि पंरपरा के बारे में जाना जिसे पंढरपुर यात्रा भी कहते हैं । महान संतों की पालकियां मुख्य रूप से संत ज्ञानेश्वर और संत तुका राम की पालकी पंढ़रपुर पहुंचती है । पंढ़रपुर में भगवान विष्णु पंढ़रीनाथ, या कहें तो विठ्ठल , पांडुरंगा के रूप में रूकमिणी जी के साथ विराजते हैं । हज़ारों वारिकर पैदल यात्रा करते हुए यहां आते हैं । वारि का मैनेजमैंट भी अपने आप में अद्भुत है उस पर फिर कभी आज बात करते है विठ्टळ की अनन्य भक्त संत तुल्य मंदाकिनी उपाधे आंटी की । उनसे मिलना भी संयोग ही रहा ,अपने कार्यक्रम के लिए मुझे महाराष्ट्र की संत परंपरा और विठ्ठल भगवान पर विशेषज्ञ चाहिए था । अपने मराठी पत्रकार मित्र ASHOK VANKHEDE जी से संपर्क किया उन्होनें आकाशवाणी में कार्यरत एक मराठी महिला का नंबर दिया । उन्होनें किसी और का सब कार्यक्रम में आने पर असमर्थता जताते रहे । ये वारि आरंभ होने के समय की बात थी । अंत में जो आने के लिए तैयार हुईं वो थीं श्रीमति मंदाकिनी उपाधे । उनसे फोन पर बात हुई थी मधुर आवाज़ सुन कर ही मन को अच्छा लगा था । उनका पता आदि लिया और ऑफिस की गाड़ी उन्हें लेने गयी । मैं अपने कार्यक्रम के प्रसारण के समय वहीं रहतीं थी । सुबह साढ़े छह बजे प्रसारण होता था । मंदाकिनी उपाधे जी दो तीन महिलाओं को साथ लेकर आयीं । एक बुजुर्ग महिला, चेहरे पर असीम शांति , सौम्यता , और दिव्य आभा । मराठी साड़ी , गले में तुलसी की माला माथे पर सुहाग की बिंदी के साथ वैष्णव तिलक । देख कर ही मन में श्रद्धा भाव उत्पन्न हुआ । मंदाकिनी उपाधे जी ने भगवान विठ्टल और वारि पर अपनी ओजस्वी वाणी में हमारे कार्यक्रम के दर्शकों को जानकारी दी । कार्यक्रम का प्रसारण समाप्त होने के बाद मैनें उनसे पूछा आपके लिए चाय मंगवाऊं । उनके साथ आयी महिलाओं ने कहा नहीं दीदी बाहर की चाय नहीं पीयेंगी हम उनके लिए थर्मस में घर से चाय और गिलास लेकर आयें हैं । उनसे पहली भेंट में मैं उनके प्रति बहुत आकर्षित हुई । उन्होनें बहुत स्नेह प्रेम से बात की । वारि क्योंकि लंबी चलती है इसलिए उन्हें फिर भी बुलाती रही । आषाढी एकादशी के दिन जाते जाते वो मुझे निमंत्रण दे गयी । आर के पुरम के विठ्ठल मंदिर की वारि में भाग लेने के लिए । हमें शूट भी करना था इसलिए अपनी टीम के साथ हम आर के पुरम् संगम विहार पहुंच गए वहां दिल्ली का मराठी समाज सुंदर वेशभूषा में एकत्र था । एक स्थान से वारि आरंभ हो कर आर के पुरम के सेक्टर 6 स्थित विट्ठल मंदिर तक जानी थी । उन्होनें मुझे तुलसी का एक छोटा सा गमला दिया कहा इसे अपने सिर पर रख लो और वारिकर ( तीर्थयात्री ) बन जाओ । मराठी में विठ्टळ भगवान के भजन और भक्तिमय वातावरण में मुझे बहुत आनंद आया वारि करने का । ये सांकेतिक यात्रा होती है जो लोग पंढ़रपुर नहीं जा सकते वे दिल्ली में मराठी समाज के साथ मिल कर यहीं यात्रा करते हैं और विठ्ठल मंदिर में पूजा करते हैं । विठ्ठला के अभिषेक और पूजा के बाद प्रसाद भंडारा होता है जिसमें साबूदाने की खिचड़ी दही और फलाहार दिया जाता है ।
मंदाकिनी आंटी की महिला मंडली से उस दिन मिलना हुआ । सभी दिखने में साधारण भारतीय गृहस्थ महिलाएं लेकिन असाधारण । भगवान विठ्ठल की भक्तिनें कोई आडंबर नहीं । बस था तो संपूर्ण समर्पण । उस दिन भजन और भोजन दोनों का आनंद लिया । धीरे धीरे मंदाकिनी आंटी से संपर्क बढ़ा । पता चला कि दिल्ली का ये जो भव्य विठ्ठल मंदिर है उन्हीं के प्रयासों का फल है । उन्होनें बताया कि यहां झाड़ झंखाड़ कांटे होते थे लेकिन इन निस्वार्थ सच्ची भक्तिनों ने संकल्प ले लिया था कि वो यहां मंदिर बनवाने में पूरा सहयोग करेंगी । ये घर घर जा कर कीर्तन करतीं जो पैसा मिलता उसे अलग रखती । मंदाकिनी आंटी आज भी अपने पास दो पर्स रखती हैं एक विठ्ठल का एक अपना । दोनों में कोई घालमेल नहीं । एक जो सबसे अच्छा बात थी कि ये सब अपनी गृस्थी भी कुशलता पूर्वक चलाती थीं । सांसारिक दायित्व निभाते हुए भगवान का भक्ति सभी जानते हैं बहुत कठिन है । इन सबकी लीडर मंदाकिनी आंटी । मंदाकिनी आंटी सच्ची संत है । यदि मैं कहूं कि मुझे अपने जीवन में उनके जैसा कोई सच्चा संत नहीं मिला तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । श्रीमति उपाधे की गुरू एक महिला ही थीं उन्होनें बताया उनकी गुरू ने अपने घर के बाहर ही एक वृक्ष के नीचे अपनी कुटिया बना रखी थी । वहीं रहती लेकिन घर से कोई संबंध नहीं रखती थीं चालीस साल तक त्यागमय जीवन बिता कर उन्होनें देह त्याग दी । मंदाकिनी आंटी ने संसार नहीं त्यागा लेकिन गुण अपनी गुरू के ही अपनाए । भजन कीर्तन , तीर्थयात्राएं ले जाना । यहां तक कि तीन बार कैलास मानसरोवर भी तीर्थयात्रियों को लेकर गयीं । यदि मंदिर निर्माण में सहयोग देना था तो निश्चित रुप से चंदा भी जुटाना था । ये सब चंडा जुचाने के माध्यम बने । उनकी सादगी सरलता और भक्ति भाव से प्रसन्न हो कर एक धन्ना सेठ ने उन्हें वृंदावन में आश्रम बनाने के लिए बहुत सारी ज़मीन दी । लेकिन मंदाकिनी आंटी तो कबीर जैसी संत है । जिसे ना दिखावा करना ,ना भगवा पहनना ना आश्रम बनाना ना ही चेले बनाना । उन्होनें मुझे बताया कि आश्रम बना लेने से बहुत से दुर्गण शुरू हो जाते हैं । उन्होनें वो ज़मीन बेच दी और दिल्ली के विठ्ठल मंदिर को सत्संग भवन बनवाने के लिए दान कर दी ।
सच्ची और निस्वार्थ भक्ति का पथ बहुत कठिन होता है । मंदाकिनी उपाधे और उनकी मंडली को भी बहुत कठिनाइयां झेलनी पड़ीं । लेकिन सच्चे भक्तों की सहायता भगवान भी करते हैं । धीरे धीरे इन लोगों ने एक स्क़ॉर्पियो खरीद ली भजन कीर्तन के लिए जाने में सुविधा हुई एक ड्राईवर भी रख लिया। बजट में कहीं एक रूपया भी इधर से उधर नहीं जो भगवान का है वो भगवान का ही है । दिल्ली के अनेक उद्योगपति भी उनकी मंडली को बुलाते । लड़कियों के विवाह से पहले गौरी पूजन का अनेक परिवारों में रिवाज़ है ।,हमारे यहां भी है । मंदाकिनी आंटी की मंडली बहुत सुंदर गौरी पूजन करवाती है एक गौरी पूजन में उन्होनें मुझे भी बुलाया था । उनकी मंडली को दान भी अच्छा मिलने लगा था । उनके साथ सत्संग का आनंद भी अभूतपूर्व रहता था । बहुत अच्छी अच्छी बातें बतातीं . महाराष्ट्र की संत परंपरा पर भक्ति मार्ग के बारे में । उनके घर बसंत कुंज में जब भी श्री रामचरित मानस का पाठ होता वो मुझे ज़रूर बुलातीं ।
इलाहाबाद में 2013 में महाकुंभ लगा तो उन्होनें मुझ से कहा जीवन का आखिरी कुंभ हो शायद इसलिए यदि तुम लोग जा रहे हों तो मुझे भी साथ ले जाना । ईश्वर की कृपा से महाकुंभ में जाने का कार्यक्रम बना और वायदे के अनुसार मंदाकिनी आंटी और उनकी मंड़ली की दो तीन महिलाएं भी साथ गयीं । हम ऋषिकेश के स्वामी चिंदानंद सरस्वती के अस्थायी आश्रम में ठहरे । मंदाकिनी आंटी बड़ी उम्र में किसी के उपर बोझ नहीं बनी उन्होनें पूरी कुंभ यात्रा में आत्मनिर्भरता नहीं छोड़ी । पिछले तीन चार साल से मंदाकिनी आंटी के संपर्क में नहीं हूं । संत कबीर बहुत बड़े योगी थे उन्होनें कभी आश्रम नहीं बनाया । शिष्य नहीं बनाए । भक्ति का आडंबर नहीं किया । पांच साल तक धर्म संस्कृति पर कार्यक्रम बनाते हुए बड़े बड़े संतों से संपर्क रहा । बहुत से भव्य आश्रमों में जाना होता ता । अनेक नामी गिरामी संतों से मिलना होता था । दुनिया की सारी सुख सुविधाएं लक्ज़री कारें । एक बार एक आश्रम में जाकर मन इतना खराब हुआ कि पूछों मत उन संत जी महाराज ने अपनी चरण पादुकाएं एक चौकी पर रखी हुई थीं और स्वयं भव्य सिंहासन पर बैठे थे । लोग उनके चरण नहीं छू सकते थे उनकी पादुकाओं को उन्हीं के सामने प्रणाम कर रहे थे । एक और बाबा से दिल्ली में मिलना हुआ गहनों से लदे हुए उनके शिष्य कहते थे बाबा जी के चरण खाली हाथ नहीं छूना । चांदी के बर्तनों में भोजन और दुख तो तब होता था जब वो थाली में आधा झूठा भोजन छोड़ देते थे । इसलिए भगवा पहनने से, सिर मुंडाने से ,संन्यास लेने से क्या मन भी रंग जाता है ? मैं तो कहूंगी संत मन होता है शरीर नहीं मंदाकिनी उपाधे आंटी सांसारिक परिभाषा में भले ही संत नहीं कहलायेंगी लेकिन वो हज़ारों संतों से बढ़ कर सच्ची संत है । विठ्ठल के प्रति उनकी अपार भक्ति भी देखने लायक है । मेरा विठ्ठला ,मेरा विठ्ठला करते उनके दिन बीतता है । वो कहतीं है विट्ठल ने उन्हें सब कुछ दिया । अपनी भक्ति दी इससे बढ़ कर क्या देंगें ।