बोल की लब आज़ाद हैं तेरे, अरे हम क्या चाहें आज़ादी , हम लेकर रहेंगें आज़ादी, भारत तेरे टुकड़े होंगे ,इंशा अल्लाह ,इंशा अल्लाह । जेएनयू, जामिया , शाहीन बाग को इन नारों से गूंजा देने वाले ,डफली बजा कर सत्ता से टकराने वाले आखिर ये आजादी मांगते किसके लिए हैं ? सबके लिए या केवल अपने लाल– हरे सलाम के लिए । आज़ादी इनको ही मिलनी चाहे किसी दूसरे को नहीं ये भी ये लोग सुनिश्चित करते हैं । यदि आप इनके पैन इस्लॉमिक , पैन क्रिस्चियन , पैन मार्क्सवादी, सेकुलर , बुद्धिजीवी गैंग में नहीं है तो आप दुनिया के सबसे निकृष्ट प्राणी हैं ,आप कम्युनल हैं ,और अगर आप भारत में हैं तो आप फासिस्ट हैं , आप हिदुंत्व का एजेंडा लेकर चलते हैं , आप असहिष्णु हैं, आदि आदि । विदेशी फंडिंग से लबों की आज़ादी की मांग प्रधानमंत्री मोदी के काल में कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है । यूपीए सरकार के काल में तो सत्ता की मलाई में पूरी भागीदारी थी । हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा हो जाए , सरकार में कोई दायित्व भी नहीं लेकिन मज़े भी पूरे । जो भी अच्छा बुरा फैसला होगा वो कांग्रेस और अन्य सहयोगी दल भुगतें । खैर कहानी लंबी है फिलहाल बात करते हैं हाल ही में इनकी आज़ादी और सहिष्णुता की कलई खोल देने वाली घटना की । दिल्ली के दंगें क्यों हुए किसने करवाए , उद्देश्य क्या था ये सब तो आप जानते ही हैं । मैं स्वयं दिल्ली के दंगा ग्रस्त क्षेत्रों में अपने अखबार के लिए रिपोर्टिंग करने गयी थी और ये समझ आ गया था कि मास्टर माइंड आप पार्षद ताहिर हुसैन ही है ।
ग्रुप ऑफ इंटलेक्युअल्स एंड एकेडेमिक ( बुद्दिजीवी महिलाओं का एक समूह ) एक टीम ग्रुप की संयोजिका और जानी मानी वकील मोनिका अरोड़ा के नेतृत्व में दिल्ली के दंगा ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करने गयी । पूरी ईमानदारी से इन्होनें रिपोर्ट बनायी और उसे किताब का रूप दिया । ब्लूम्सबरी प्रकाशन किताब छापने के लिए राजी हो गया अनुबंध हुआ सौ प्रतियां छाप भी दी गयी । अब 22 अगस्त को किताब का वर्चुअल विमोचन था । कईं दिन पहले से सोशल मीडिया में इसकी जानकारी आने लगी । आज़ादी, सहिष्णुता , भाईचारे सद्भाव के तथाकथित ठेकेदारों को लगा ये क्या हुआ दिल्ली दंगों का सच हमारे अलावा कोई और कैसे बता सकता है । इस पर तो हमारा ही कॉपी राईट है ।
पूरा गैंग देश विदेश में ट्वीटर और सोशल मीडिया पर एक्टिव हो गया । इनको लगा जो नैरेटिव हम खड़े करते आयें हैं उनकी तो ज़मीन खिसक जाएगी । प्रकाशन के गोरे साहिब लंदन में बैठे हैं । गैंग के अंतरराष्ट्रीय सदस्य भी मैदान में कूद गए । त्राहि माम् ,त्राहि माम् ,हमारे अभेद किले में सेंध लग रही है ,बचाओ बचाओ की पुकार मची । गैंग में खलबली ,हमारा क्या होगा कालिया ! एक किताब से इतना डर क्यों ? दरअसल डर तो ठेकेदारी खत्म हो जाने का है । । क्योंकि दिल्ली दंगों की अनकही कहानी में वो सब सच्चाई हैं जो आज़ाद लबों वाली इनटॉलरेंट लॉबी छुपा लेती और अपने नेरेटिव खड़े करती । ब्लूम्सबरी प्रकाशन ने अपना हाथ खींच लिया किताब नहीं छापेंगें । चलिए कोई बात नहीं एक बार फिर टुकड़े टुकड़े गैंग बेनकाब हुआ । अब किताब का प्रकाशन गरूड़ा प्रकाशन कर रहा है । पहले शायद इतनी किताबें न बिकतीं लेकिन अब तो रिकॉर्ड तोड़ बुकिंग हो चुकी है । हे गैंग वालों ! अब तो समझ लो जनता तुम्हारी सच्चाई समझ गयी है । लेकिन हमें पता है तुम लोग नहीं मानोगे । तुम्हारी मर्जी है भाई अब पैन ड्राईव का ज़माना आ गया है। तुम अब भी हिज़ मास्टर्स वॉयस का पुराना रिकॉर्ड लेकर बैठे हो जिसकी कभी कभी सुई अटक जाती थी तो मधुर आवाज़ भी भद्दी लगने लगती थी ।