1962 में प्रदर्शित पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो की सफलता ने भोजपुरी फिल्मों का बाजार गर्म कर दिया था। बहुत से निर्माता निर्देशक इस तेज हवा में अपनी पतंग उड़ाने के लिए भोजपुरी फिल्म बनाने के लिए मैदान में कूद गए। कुछ फिल्मों को सफलता ज़रूर मिली लेकिन 70 का अंत आते आते भोजपुरी फिल्में सफलता का सौदा नहीं रह गयी थी। 70 के दशक के आरंभ में गिनी चुनी भोजपुरी फिल्में बनी लेकिन सफलता का मुंह नहीं देख पायीं।
1977 में भोजपुरी की पहली रंगीन फिल्म रिलीज हुयी- दंगल। इस फिल्म के हीरो थे सुजीत कुमार और हीरोइन थीं प्रेमा नारायण। फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं थी। वही घिसा पिटा फैमली ड्रामा। चाचा का भतीजे की संपत्ति पर कब्जा करना। ऊंची जाति के हीरो का छोटी जाति की हीरोइन से प्यार हो जाना। थोड़ा रोमांस-थोड़ी मारपीट बस। भोजपुरी की पहली रंगी फिल्म होने का फायदा देगल को मिला और उसने बॉक्स ऑफिस पर झंडे गाड़ दिए। दंगल की सफलता ने भोजपुरी फिल्मों के दूसरे सुनहरे दौर की शुरूआत कर दी। इस फिल्म की सफलता में इसके संगीत का बड़ा योगदान था। इस फिल्म का एक गाना आज तक लोकप्रिय है। काशी हिले पटना हिले कलकत्ता हिलेला, तोहरी लचके जब कमरिया ता सारी दुनिया हिलेला। इस गाने की बहुत आलोचना हुई थी, कुछ समीक्षकों ने इसे सिरे से अश्लील करार दिया था। लेकिन दर्शकों ने इस गाने को अपना प्यार देकर कालजयी बना दिया।
दंगल का निर्देशन किया था रति कुमार ने, पटकथा लिखी थी राजपति ने। फिल्म के निर्माता थे बचु भाई शाह। फिल्म का संगीत दिया था नदीम श्रवण ने, कुलवंत जानी और श्रेस भास्कर के गीतों को स्वर दिया था मो. रफी, आशा भोंसले, सुमन कल्याण पुर और मन्ना डे ने। सुजीत कुमार प्रेमा नारायण के साथ इफ्तिखार, उर्मिला भट्ट, शुभा खोटे. लक्ष्मी छाया और अरूणा इरानी ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायी थी।
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