शरत सांकृत्यायन
नीतीश कुमार इसबार बुरी तरह फंस गये हैं उन्हें यह खुशफहमी थी कि सत्ता पर काबिज रहने का उनके पास खुला लाइसेंस है. जबतक लालू जी के साथ गलबहियां चलती है चले. यदि मामला गड़बड़ाया तो बीजेपी पलक पांवड़े बिछाकर बैठी ही है. लेकिन उन्हें अन्दाजा नहीं था कि बीजेपी अब अटल आडवाणी के हाथ में नहीं बल्कि आल्हा ऊदल के हाथ में जा चुकी है. अब ये दोनों इतने भी शरीफ राजनीतिज्ञ तो हैं नहीं कि चुपचाप मलाई का कटोरा नीतीश जी के हाथ में पकड़ा दें. नीतीश जी लगातार त्राहिमाम संदेश भेज रहे हैं. पिछले एक साल से आल्हा ऊदल पर डोरे डाल रहे हैं लेकिन उधर से सिग्नल ही नहीं मिल रहा. साथ ही साथ रोज लालू एण्ड फैमिली के भ्रष्टाचार पुराण की बखिया उधेड़ी जा रही है और जनता के सामने नीतीश जी के स्वच्छ छवि की ऐसी तैसी हो रही है. साफ दिखलाया जा रहा है कि नीतीश जी कुर्सी और सत्ता मोह में लालू जी के हर भ्रष्टाचार को न सिर्फ बर्दाश्त कर रहे हैं बल्कि मौन समर्थन भी दे रहे हैं. कहने का मतलब ये है कि बीजेपी ने नीतीश जी की नाक पूरी तरह जमीन में रगड़ने का मन बना लिया है. इनको साथ लेगी जरूर लेकिन अपनी शर्तों पर. कोई ताज्जुब नहीं कि इनसे विधानसभा भंग करवाने की अनुशंसा ही करवा ले भाई जनादेश तो लालू नीतीश के गठबंधन को मिला था .उसी धक्के में कांग्रेस ने भी छाली काट लिया और जनता ने दो साल में ही इस गलत फैसले का अंजाम देख लिया साफ दिखने लगा कि बिहार में नीतीश जी ने विकास की जो बयार बीजेपी के साथ मिलकर बहाई थी वो राजद के साथ जाते ही थम ही नहीं गयी दूषित भी हो गयी. मतलब ये कि जबतक सही साथी से गठजोड़ न हो नीतीश कुमार की खुद की छवि बेमानी है…और बीजेपी जोर शोर से लोगों के बीच यह प्रचारित करने में लगी है कि विकास की कुंजी उसके पास है…तो आगे अब तेजस्वी तो बर्खास्त होंगे जरूर और आरजेडी अपना समर्थन भी वापस लेगी. लेकिन ये संभावना कम है कि बीजेपी के समर्थन से नीतीश जी की कुर्सी बची रह जाएगी.आल्हा ऊदल पहले इनको पटकेंगे, फिर इन्हें घसीटेंगे, इनसे नाक रगड़वाएंगे. फिर कहेंगे कि चलो दोनों मिलकर नया जनादेश लेते हैं. अब नीतीश जी के सामने सांप छछुंदर वाली स्थिति है. लालू जी के साथ बने रहते हैं तो अगले चुनाव तक किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे और छोड़ते हैं तो नटवर नागर के इशारों पर नाचना पड़ेगा.अब देखिए ऊंट किस करवट बैठता है.