चरित्र निर्माण व राष्ट्र निर्माण में मातृशक्ति की भूमिका:- माधुरी मराठे

16 जुलाई , दिल्ली,राष्ट्र सेविका समिति की आद्य संचालिका वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर के 117 वें जन्म दिवस उत्सव पर मेधाविनी सिंधु सृजन, दिल्ली प्रांत द्वारा दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज में कार्यक्रम आयोजित किया गया। समिति इस दिन को संकल्प दिवस के रूप में मनाती आई है । आज के कार्यक्रम की मुख्य वक्ता माननीय माधुरी मराठे (अखिल भारतीय संगठन सचिव, संवर्धिनी न्यास), विशिष्ट अतिथि प्रो. सुदेश छिकारा (कुलपति बी.पी.एस विश्वविद्यालय, सोनीपत), विदुषी शर्मा (राष्ट्र सेविका समिति ,सह कार्यवाहिका ,दिल्ली प्रांत), प्रो.पायल मागो (प्रिंसिपल शहीद राजगुरू कॉलेज एंड डायरेक्टर एस.ओ. एल. दिल्ली विश्वविद्यालय) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। मेधाविनी की संयोजिका प्रो. निशा राणा ने कार्यक्रम की प्रस्तावना दी।

माधुरी मराठे जी ने राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका और प्रथम संचालिका के विषय में यह बात कही कि समर्पण का भाव राष्ट्रहित के लिए होगा तो राष्ट्र उन्नति करता है । उन्होंने कहा कि माननीय लक्ष्मीबाई केलकर जी ने अपने वैधव्य को अभिशाप न मानकर शक्ति माना और राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुट गई तथा वर्धा में समिति की स्थापना की। हम अपनी कमियों को अपनी शक्ति बनाएं और जिस प्रकार भी संभव हो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें। यही लक्ष्मी बाई केलकर के जीवन का आदर्श वाक्य था । उन्होंने मौसी जी के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन की अनेक घटनाओं के माध्यम से बताया कि आज के युवा इस बात से परिचित हों कि किस प्रकार उन्होंने मातृशक्ति के संगठन द्वारा राष्ट्र निर्माण की नींव रखी। उन्होंने कहा कि समाज में नेतृत्व करने वाला व्यक्ति मौसी जी जैसा अनुकरणीय होना चाहिए। उनके जीवन और वाणी में मैं का स्थान नहीं था सब कुछ राष्ट्र को समर्पित था ।उन्होंने बताया कि मातृशक्ति संगठन द्वारा ही राष्ट्र और विश्व में परिवर्तन संभव है। उन्होंने कहा कि मौसी जी ने मातृशक्ति को परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़ने वाली कड़ी कहा है। संस्कृति का रक्षण, भाषा, आचरण और व्यवहार द्वारा ही संभव है।

प्रत्येक राष्ट्र जो अपनी उन्नति चाहता है उसे अपनी संस्कृति और इतिहास को कभी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि भूत कालीन कृतियां व घटनाएं ही भविष्य की पथ प्रदर्शक होती हैं। हम अपनी नींव ,अपनी संस्कृति पर अडिग रहकर वर्तमान और भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं तो देश और समाज का निर्माण संभव होगा।उन्होंने रामायण के महत्व को समझ कर बाद में स्थान स्थान पर माता सीता के चरित्र व रामायण पर व्याख्यान दिए। देश के विभाजन के समय पर सेविकाओं के आह्वान पर लक्ष्मीबाई केलकर कराची पहुंची और सेविकाको को विषम परिस्थितियों का साहस के साथ सामना करने के लिए प्रेरित किया । उन्होंने महिलाओं के जागरण के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया ।

पायल मागो जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि मौसी जी ने एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो कार्यकर्ताओं को तराशने का काम करता है। उन्होंने एक ऐसा वट वृक्ष लगाया जिसने अन्य कई वट वृक्षों को जन्म दिया।इस संकल्प दिवस पर उन्होंने महिलाओं को संगठित होकर राष्ट्र को संगठित करने का संकल्प लेने का आह्वान किया।

वंदनीय लक्ष्मी बाई जी का संपूर्ण जीवन अनुकरणीय रहा ।आज अगर समाज में भी मातृशक्ति की गूंज है तो उसमें भी कहीं ना कहीं लक्ष्मीबाई केलकर के विचार को ही प्रधानता मिली है कि उन्होंने 1936 में जिस मातृशक्ति के विषय में सोचा था आज समाज में उस मातृशक्ति की उपस्थिति प्रत्येक भारतीय के मन में प्रेरणा का संचार करती है। महिला शक्ति अगर कुछ मन में ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है।

राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका और आद्य प्रमुख संचालिका श्रीमती लक्ष्मी बाई को प्यार व असीम श्रद्धा से हम वंदनीय मौसी जी के उपनाम से जानते हैं। आषाढ़ मास दशमी तिथि शुक्ल पक्ष, 1905 में नागपुर में जन्मी कमल अर्थात लक्ष्मीबाई साधारण बालकों से भिन्न थी। उन्होंने महिलाओं में छुपी शक्तियों को उस समय पहचाना जब नारी सशक्तिकरण की बात से कोई परिचित भी नहीं था।

25 अक्टूबर ,1936 विजयदशमी के दिन उन्होंने महिलाओं के एक ऐसे संगठन की नींव रखी जो व्यक्ति निर्माण के साथ समाज और राष्ट्र के निर्माण में भी योगदान दे ।राष्ट्र सेविका समिति भारतीय महिलाओं का सबसे बड़ा और सुदृढ़ संगठन है जिसकी शाखाएं पूरे भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी फैली हुई हैं। भारत के 2380 शहरों ,कस्बों और गांवों में समिति की 3000 शाखाएं चल रही हैं। समिति के 1000 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। दुनिया के 16 देशों में समिति की सशक्त उपस्थिति दर्ज हो चुकी है ।सेविका समिति सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक धरातल पर 1936 से काम कर रही है ।शाखाओं के माध्यम से समिति की सेविकाएं (सदस्या) समाज और देश के समग्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

इस प्रत्यक्ष कार्यक्रम में लगभग 300 बहनें व गूगल मीट के माध्यम से लगभग 250 बहनों ने भागीदारी की।

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