51वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में हिंदी और बांग्ला फिल्मों के रोमांटिक हीरो , गायक निर्माता और निर्देशक बिश्वजीत चैटर्जी को भारत सरकार ने इंडियन पर्सनेल्टी ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित करने की घोषणा की । सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पणजी में जब ये घोषणा की तो उनकी कुछ सदाबहार फिल्मों के नाम भी गिनवाए मेरे सनम ,शहनाई अप्रैल फूल , किस्मत आदि । नयी पीढ़ी 84 साल के बिश्वजीत से भले ही परिचित न हो लेकिन आज भी उन पर फिल्माए गए गीत युवाओं के बीच भी खूब लोकप्रिय हैं । कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला कजरे ने ले ली मेरी जान हाय रे मैं तेरे कुर्बान आज भी हर दिल अजीज़ है । ज़रा नज़रों से कह दो जी निशाना ना चूक ना जाए आज भी जैसे ही बजता है पांव थिरकने लगते हैं । बांग्ला और हिंदी फिल्मों में धूम मचाने वाले बिश्वजीत जी हां इसी नाम से जानते हैं उन्हें उनके चाहने वाले उन्होने कभी हिंदी फिल्मों में अपना सरनेम प्रयोग नहीं किया ।हमारी संवाददाता सर्जना शर्मा के साथ एक फिर लौट चलिए 60 और सत्तर के उस दशक में जब बिश्वजीत लाखों दिलों की धड़कन हुआ करते थे —-
साठ के दशक में बॉलीवुड में एक बांका ,सजीला सुंदर हीरो आया । जिसके रूप रंग को लेकर सबसे ज्यादा परेशान रहते थे बॉलीवुड के मेकअप आर्टिस्ट । उस दौर की सफल और सुंदर अभिनेत्रियों माला सिन्हा , वहीदा रहमान , शर्मिला टैगौर , आशा पारिख, राजश्री के साथ जब वो लीड़ रोल में होते तो उनका रूप रंग इन सुंदर हीरोइनों पर इक्कीस पड़ता था । मेकअप आर्टिस्ट उनका मेकअप कुछ ऐसा करते कि उनकी गोरी गुलाबी रंगत उनकी हीरोइनों पर भारी न पड़े । ये थे बांग्ला फिल्मों में अपनी ब्लॉक ब्लस्टर फिल्मों से धूम मचा कर कोलकाता से मुंबई आए बिश्वजीत चैटर्जी । कोलकाता में पले बढ़े बिश्वजीत ने रंगमंच और आकाशवाणी रेडियो से अभिनय की दुनिया में कदम रखा । उनका थियेटर ग्रुप बहुरूपे उस ज़माने में बहुत बड़ा और सफल ग्रुप था । बिश्वजीत ने जूनियर कलाकार के रूप में इसमें काम शुरू किया । वे जितने अच्छे अभिनेता थे उतने ही अच्छे गायक भी थे । अपने चॉकलेटी फेस और अभिनय के दम पर बिश्वजीत बांग्ला फिल्मों के सबसे लोकप्रिय हीरो के रूप में मशहूर हो गए । माया मृग्या , चौरंगी , गृह नसीमपुर आदि फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही थी । यही वो समय था जब उत्तम कुमार और सौमित्रा चैटेर्जी भी बांग्ला फिल्मों में बेहतरीन कलाकार के रूप में उभर रहे थे । ये दोनों ही बाद में आगे चल कर बड़ा नाम बने । साठ के दशक का ये ज़माना था। बिश्वजीत की फिल्मों के लिए हेमंत कुमार गाते भी थे और संगीत भी देते थे । हेमंत दा हिंदी फिल्मों में भी अपना सिक्का जमा चुके थे । हेमंत कुमार ने बिश्वजीत को मुंबई बुलाया और बीस साल बाद फिल्म में हीरो का रोल ऑफऱ किया । वहीदा रहमान के साथ उनकी जोड़ी हिट हो गयी और सारे गाने भी सदाबहार हो गए। बेकरार करके हमें यूं ना जाइए आपको हमारी कसम मान जाइए . ज़रा नज़रो से कह दो जी निशाना चूक ना जाए , सपने सुहाने लड़कपन के मेरे नैनो में डोले बहार बन के ,ने लोगों पर जादू कर दिया । बिश्वजीत ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा । हर बड़ी हीरोईन के साथ उन्होनें काम किया और किंग ऑफ रोमांस के नाम से मशहूर हो गए । उनकी फिल्मों से ज्यादा हिट हुए उन पर फिल्माए गए गाने । हांलाकि वे खुद भी बहुत अच्छे गायक थे उनको प्लेबैक सिंगर के ऑफर भी मिले लेकिन उन्होनें मना कर दिया वे मुंबई आए थे केवल हीरो बनने । ये वो दौर था जब राजेंद्र कुमार और देवानंद भी रोमांटिक हीरो के रूप में जाने जाते थे । ये बहुत कम लोग जानते होंगें कि हिंदी फिल्मों में महिला का रोल करने वाले वे पहले हीरो थे । लावारिस में अमिताभ बच्चन चाची 420 में कमल हसन ने महिला की भूमिका अदा कर बहुत शोहरत बटोरी थी । बिश्वजीत ने इन से कई दशक पहले 1966 में बीबी और मकान में छोटी बहू की भूमिका निभाई थी । इस फिल्म के निर्माता हेमंत कुमार और निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी थे । ये हिट कॉमेडी रही । फिर दो साल बाद मनमोहन देसाई की किस्मत फिल्म में बिश्वजीत ने महिला का रोल किया और कजरा मोहब्बत वाला गीत उन पर फिल्माया गया गया । ये गाना भी बहुत हिट हुआ । एक फिल्म समीक्षक ने तो यहां तक लिख दिया था कि बिश्वजीत को ऐसे ही रोल करने चाहिए इसी में उनको ज्यादा सफलता मिलेगी । बिश्वजीत ने इस फिल्म समीक्षक पर मुकदमा कर दिया ।
रेखा ने जब 15 साल की उम्र में हिंदी सिनेमा में कदम रखा तो अंजाना सफर में वे बिश्वजीत की हीरोईन बनी । लेकिन ये फिल्म विवादो में आ गयी और दस साल बाद दो शिकारी के नाम से रिलीज़ हुई । दरअसल इसमें एक चुम्बन सीन था जिसके बारे में रेखा ने कहा कि उनको बताया नहीं गया था । रेखा ने बिश्वजीत पर आरोप लगाया तो उन्होनें अपनी सफाई में कहा कि जो निर्माता ने कहा मैनें किया । ये मामला उन दिनों सुर्खियों में रहा था । बिश्वजीत लंबे अरसे तक हिंदी फिल्मों में काम करते रहे तो उनकी बांग्ला फिल्में छूट गयीं । लेकिन उनके दिल से बांग्ला फिल्मों का मोह नहीं छूटा था वे कोलकाता और मुबई के बीच आते जाते जाते रहे । उन्होनें बांग्ला में अपने गीतो की हिट एलबम भी बनायी । उन्होनें दो शादियां की पहली पत्नी रतना से उनका तलाक हो गया । इस शादी में उनके दो बच्चे हुए एक बेटा एक बेटी । बेटा प्रसेनजीत बांग्ला फिल्मों को सफल हीरो है। और दूसरी पत्नी इरा हैं जो उनके साथ अब मुंबई में रहती हैं । बिश्वजीत ने जीवन में जो चाहा वो हासिल किया । आप को ये जान कर हैरानी होगी कि 1963 के दसवें नेशनल फिल्म अवार्ड में उनकी फिल्म दादा ठाकुर को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म की श्रेणी में राष्ठ्रपति स्वर्ण पदक मिला और सत्यजीत रे की फिल्म अभिजान दूसरे नंबर पर रही थी । बिश्वजीत ने राजनीति में भी हाथ आजमाया 2014 में वे तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए । अगले लोक सभा चुनाव में 2019 में उन्होने बीजेपी का दामन थाम लिया ।
साठ के दशक के जाने माने स्टार बिश्वजीत को इंडियन पर्सनेल्टी ऑफ द इयर अवार्ड बांग्ला और हिंदी सिनेमा दर्शकों के लिए बहुत खुशी की बात है विशेषकर वो पीढ़ी जो उनकी रोमांटिक फिल्में देख कर और उन पर फिलमाए गए रोमांटिक गीत गुनगुना कर बड़ी हुई थी ।