बिहार के शराबी चूहे उड़ा रहे शराबबंदी की धज्जियां : शरत सांकृत्यायन
बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के तेरह महीनों के दरम्यान यहां के नशेड़ी चूहे 9 लाख लीटर से ज्यादा देसी विदेशी शराब पी चुके हैं। हैरान होने की जरूरत नहीं है। यह सुशासन बाबू की पुलिस का आधिकारिक आंकड़ा है। दरअसल शराबबंदी लागू होने के बाद से पुलिस ने छापेमारी और वाहन जांच के दौरान राज्य भर में 9 लाख लीटर से ज्यादा देसी विदेशी शराब जब्त की थी और जब्त शराब को संबंथित थानों के मालखाने में जमा करवा दिया गया था। अभी हाल में पुलिस मुख्यालय ने राज्य के सभी जिलों से जब्त शराब की अद्यतन रिपोर्ट तलब की थी। आधे से ज्यादा जिलों से तो रिपोर्ट ही नहीं आई और जहां से आई भी वह चौंकाने वाली थी। किसी भी थाने में जब्त शराब की एक बूंद भी मौजूद नहीं है। रिपोर्ट में बड़ी मासूमियत से बताया गया है कि ज्यादातर शराब की बोतलें तो बरामदगी के बाद थाने तक ले जाने के दौरान ही क्षतिग्रस्त हो गयीं और जो साबुत बची थीं उनमें भरी शराब मालखानों में मौजूद चूहों ने गटक लिया। इसलिए फिलहाल कुछ टूटी फूटी और खाली बोतलें ही बची हैं।
ये रिपोर्ट मिलने के बाद आलाधिकारी अब बिना पिये ही लड़खड़ाने लगे हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या मालखानों में पल रहे चूहे इतने बड़े शराबी हैं की एक साल में ही 9 लाख लीटर शराब गटक गये। नीतीश जी की इतनी बड़ी महत्त्वाकांक्षी योजना का रत्ती भर भी लिहाज नहीं किया। या फिर ये सारी शराब चूहों के नाम पर वर्दी वालों के पेट में पहुंच गयी?
नीतीश कुमार पूर्ण शराबबंदी के अपने इस ऐतिहासिक कदम की देश दुनिया में ढिंढोरा पीटते अघा नहीं रहे, लेकिन उनका ये अभियान कितनी बुरी तरह फ्लॉप हुआ है, उसकी ये बानगी भर है। अब थोड़ा बिहार में काफी तेजी से फल फूल रहे अवैध शराब के कारोबार का गणित समझ लें। सबसे पहले तो सरकार को शुद्ध पांच हजार करोड़ के राजस्व की हानी हुई और शराब हर जगह आपकी जरूरत के हिसाब से उपलब्ध भी है। एक लीटर देसी दो से ढाई सौ में और विदेशी ब्रांड के अनुसार 1500 से 3000 रु. प्रति लीटर आपको घर पर मुहैया करवा दी जाएगी। हालांकि फिलहाल तीन चार ब्रांड ही उपलब्ध हैं। इस हिसाब से पकड़ी गयी शराब जो गायब हो गयी सिर्फ उसी की कीमत बाजार भाव से हुई 100 करोड़ से ज्यादा। अब ये तो सर्वविदित है की जितना अवैध माल बाजार में उपलब्ध होता है उसका दस फीसदी भी पुलिस की पकड़ में नहीं आता। तो सीधा सा हिसाब ये बना की एक साल में बिहार में अवैध शराब का एक हजार करोड़ का काला कारोबार हुआ, जो शराब पकड़ी गयी उसे भी या तो पुलिसवाले खुद पी गये या लोगों को पिला दिया। अब मुफ्त में तो पिलाई नहीं होगी। ऊपर से पांच सौ करोड़ का राजस्व घाटा अलग। ये हालत पहले साल की है जब सरकार ज्यादा सतर्क थी, प्रशासन चुस्त था और शराबबंदी को सफल बनाने के लिए पूरा अमला जी जान से जुटा पड़ा था। अब तो एक साल बीत चुका सुशासन बाबू भी अपनी इस उपलब्धी से इतराते हुए अब पूरे देश में गैर बीजेपी मोर्चा बनाने की कवायद में जुट चुके हैं, प्रशासन राहत की लंबी सांस लेता हुआ आराम फरमाने जा चुका है और पकड़ी गयी शराब गटक कर चूहे दंड पेल रहे हैं। इस साल होने वाले अवैध कारोबार का तो बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
तो लब्बो लुआब यह की बिहार में शराबबंदी टांय टांय फिस्स हो चुकी है। एक नया शराब माफिया सिंडिकेट जन्म ले चुका है। पुलिस, प्रशासन और उत्पाद विभाग की नाक के नीचे हजारों करोड़ का खेल चल रहा है। पीने वाले मस्त हैं, पिलाने वाले मस्त हैं बस राजस्व का रोना लेकर बैठी सरकार ही पस्त है।