बिहार की राजनीति – हरि अनंत, हरि कथा अनंता : शरत सांकृत्यायन

बिहार की राजनीति – हरि अनंत, हरि कथा अनंता : शरत सांकृत्यायन

बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को काफी दिनों बाद मनपसंद काम मिला है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद सुशील मोदी एक तरह से हाशिए पर सिमट गये थे। पार्टी आलाकमान ने भी इनकी खोज खबर लेनी बंद कर दी थी। अब यहां तक कहा जाने लगा था कि भविष्य में यदि पार्टी बिहार को लेकर कोई बड़ा फैसला लेती भी है तो उसमें सुशील मोदी के लिए शायद कोई जगह न हो। अब सुमो भी कोई कच्चे खिलाड़ी तो हैं नहीं। पार्टी में इतनी मेहनत से बनाई गयी जगह इतनी आसानी से कैसे छोड़ दें? तो लगे थे तिकड़म भिड़ाने में और बैठे बिठाए लालू के परिवार की अघोषित संपत्ति और घोटाले का पका पकाया मामला झोली में आ गिरा। बस हो गये सुशील मोदी शुरू। दे दना दन लालू यादव और उनके परिवार पर आरोपों की झड़ी लगा दी है। रोज एक नया खुलासा, नये आरोप, नये दस्तावेज। मार बाउंसर पर बाउंसर।


लालू यादव तो ऐसे भौंचक हुए हैं कि बोलती बंद हो गयी है। अभी पिछले आरोपों पर ढंग से सफाई भी नहीं दे पाए थे कि सुमो ने एक बार फिर लालू प्रसाद यादव के परिवार पर बेनामी संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया है। उन्होंने लालू प्रसाद के पुत्र और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव पर औरंगाबाद में 20 वर्ष की उम्र में 45 डिसमिल जमीन खरीदने और उसका विवरण चुनाव आयोग के हलफनामे में नहीं देने का आरोप लगाया।
अब गौर करने वाली बात ये है कि इन सारे मामलों में मॉल की मिट्टी बेचने के मामले को छोड़कर एक भी मामला नया नहीं है। तो ये सारे मामले इतने वर्षों तक दबे रहने के बाद अभी ही अचानक क्यों भरभरा कर बाहर आ रहे हैं? मामलों से जुड़े इतने पुख्ता दस्तावेज सुमो को कहां से मिल रहे हैं? तो इन सवालों का जवाब पाने के लिए बिहार की राजनीति को समझना पड़ेगा। कभी लालू, नीतीश और सुमो साथ साथ राजनीति का ककहरा पढ़ते थे। फिर लालू नीतीश एक दल में गये, सुमो दूसरे दल में। लेकिन दोनों दल साथ साथ चले। फिर लालू ने अलग राह थामी पर नीतीश और सुमो की आपसी दोस्ती भी बनी रही और दोनों के दल भी एक दूसरे के नजदीक रहे। फिर सुमो नीतीश ने मिलकर बिहार में लालू के जंगलराज के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और अंततः 2005 में लालू को सत्ता से बेदखल कर जेडीयू बीजेपी गठबंधन की सरकार बनायी। नीतीश सीएम और सुमो डिप्टी। सात आठ साल तक इस गठबंधन ने जमकर राज किया लेकिन इसके बाद फिर राजनीति का पहिया घूमा, नीतीश ने बीजेपी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ा और लालू जी का दामन थाम लिया….लालू जी को भी अपने दोनों बेटों को राजनीति में स्थापित करना था इसलिए लपक कर नीतीश कुमार को गले लगाया।

अब बेटे स्थापित तो हो गये लेकिन लालू जी को ये चिंता सताने लगी कि कबतक नीतीश को पालते रहें और इनके दोनों बेटे नीतीश की मातहती में खटते रहें? इसलिए किसी तरह अपने बेटे को सीएम बनाने की गोटी बैठाने में लग गये।

हालात बिगड़ते देख एक बार फिर नीतीश कुमार को अपने पुराने मित्र सुशील मोदी की याद सताने लगी है। सुमो भी चार साल से सत्ता सुख से अलग रहकर थोड़े दुबले से हो गये हैं। इसलिए लालू और उनके परिवार से जुड़े संपत्ति और घोटालों के दस्तावेज निर्बाध गति से सुमो के पास पहुंचाए जा रहे हैं। उनके आधार पर सुमो लगातार लालू और उनके दोनों मंत्री पुत्रों के खिलाफ आरोपों की बौछार कर रहे हैं और नीतीश कुमार को चुनौती दे रहे हैं कि वे इन दोनों को मंत्रीमंडल से बर्खास्त करें। अब नीतीश कुमार ठहरे साफ सुथरी सरकार का दावा करने वाले। आखिर कबतक विपक्ष के आरोपों को नजरअंदाज कर सकते हैं। अपनी स्वच्छ छवि को बरकरार रखने के लिए कड़ा फैसला लेना ही पड़ेगा। लालू जी को ये कड़ा फैसला रास नहीं आएगा। वे सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे।

आयुष्मान तेजस्वी यादव सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। लेकिन नीतीश जी बीजेपी के समर्थन से सरकार बचा ले जाएंगे। सुशील मोदी फिर से उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पाएंगे और लालू-नीतीश-सुशील मोदी जैसे धुरंधरों की लड़ाई में दो उदियमान राजनेताओं की राजनीति असमय ही अस्त हो जाएगी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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