आरोप प्रत्यारोप के बीच पिसती बिहार की जनता

बिहार विधानसभा का चुनाव नजदीक है, सत्ताधारी दल चुनाव की तैयारी में जुटा है, विपक्ष चुनाव टालने की कोशिशों के साथ तैयारी भी कर रहा है, दूसरी ओर बिहार कोरोना महामारी और बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहा है। कई जिले बाढ़ की चपेट में हैं, ऐसे में कल विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने दरभंगा में बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत कार्य चलाते हुए भोजन वितरण किया और सरकार पर आरोप लगाया कि राहत के नाम पर घोटाला किया जा रहा है।

बढ़ते कोरोना के मामले, बाढ़ के पीड़ित बिहार और विपक्ष के आरोपों पर बिहार अपडेट के अतुल गंगवार ने वरिष्ठ पत्रकार रवि पाराशर, अनिता चौधरी और सोशल मीडिया एक्सपर्ट मनीष वत्स से चर्चा की।

बिहार में बाढ़ आज नई समस्या नहीं है, हर साल बारिश के मौसम में जब नदियां उफनती है, नेपाल से पानी छोड़ा जाता है और उत्तर बिहार के सैंकड़ों गांव डूब जाते हैं। हर साल कमोबेश के स्थिति सामने आती है और हर साल आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है, बाढ़ के भीषण चपेट में जनता हर साल प्रभावित होती है, हर साल जान माल का व्यापक नुकसान होता हैओ, सरकार वादे करती है और फिर साल खत्म हो जाता है।

बात जहां तक तेजस्वी के आरोप की है तो जब उनकी पार्टी की सरकार हुआ करती थी, बाढ़ राहत के नाम पर करोड़ों रुपये के बारे न्यारे हुए थे, चाहे बात 1995-96 की हो, जब 90 करोड़ का घोटाला बाढ़ राहत के नाम पर हुआ था। जिन जिलों में बाढ़ नहीं भी आई थी, उन जिलों के नाम पर रुपयों का आवंटन हुआ और उन रुपयों को नेताओं ने अपनी तिजोरी में डाला। 2004 का बाढ़ राहत घोटाला कौन भूल सकता है, जब पटना के डीएम गौतम गोस्वामी ने करोड़ों रुपये ऐसी कम्पनी के खाते में डाले जो राहत के नाम पर कोई काम नहीं कर रही थी, और उन समय भी बिहार में तेजस्वी की पार्टी की ही सरकार थी।

कहने का मतलब यह है कि तेजस्वी की पार्टी की सरकार ने बाढ़ राहत के नाम पर करोड़ों का बंदरबांट किया और अभी दूध के धुले बन रहे हैं।

बाढ़ बिहार की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, कोरोना का कहर इस साल हुआ है पर बाढ़ के कहर से हर साल हजारों परिवार प्रभावित होते हैं, सरकार किसी की भी रही हो, किसी ने इस समस्या के सम्पूर्ण समाधान का जिम्मा नहीं लिया।

नीतीश कुमार चाहे जितने दावे कर लें पर उनकी सरकार ने भी बाढ़ की समस्या को गम्भीरता से नहीं लिया, अगर लिया होता तो इतनी तबाही नहीं होती। एक तरफ उत्तर बिहार जहां बाढ़ की चपेट में हर साल बर्बाद होता है वहीं दक्षिण बिहार सूखे की मार सहता है। सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए कि दोनों तरफ के लोगों का कल्याण हो।
कुल मिलाकर इस चुनावी वर्ष में कोरोना के अलावा बाढ़ की समस्या भी एक गम्भीर मुद्दे के रूप में सामने आ रहा है, ऐसे में सत्ता पक्ष को अपनी चुनावी तैयारी को कुछ दिन रोककर बिहार की जनता के लिए तत्पर हो जाना चाहिए ताकि ऐसे आपद काल में बिहार की जनता के हितों की रक्षा हो सके।

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