बिहार चुनाव डायरी- 8 जुलाई- 11 जुलाई को दिखने लगेगा महा-गठबंधन के चेहरे का आकार?

 रवि पाराशर

कोरोना वायरस के संकट के साथ-साथ बिहार में राजनैतिक सरगर्मी भी बढ़ती जा रही है। जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी जहां निश्चिंत हैं और डिजिटल चुनाव प्रचार में बाज़ी मार चुकी हैं, वहीं राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा यानी हम समेत महा-गठबंधन की सभी पार्टियां सक्रिय हो गई हैं। अलग-अलग रुख़ की वजह से महा-गठबंधन को लेकर अभी कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं उभरी है, लेकिन अगले कुछ दिनों में आकार साफ़ हो जाएगा। ये भी साफ़ हो जाएगा कि विपक्षी गठबंधन मुख्यमंत्री पद के लिए किसी चेहरे पर सहमत होगा या फिर इसे चुनाव बाद के लिए टाल दिया जाएगा।


हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने दिल्ली में जानकारी दी है कि बिहार में विपक्षी गठबंधन पर फ़ैसला 11 जुलाई को होने वाला है। उन्होंने मीडिया से जो कहा, उससे साफ़ हो जाता है कि महा-गठबंधन की राह में कांग्रेस ही अभी तक रोड़ा बनी हुई है। कांग्रेस को कुछ ऐतराज़ हैं। मांझी के मुताबिक़ कांग्रेस अपनी समस्याएं 10 जुलाई तक सुलझा लेगी। मांझी के सुर से साफ़ है कि कांग्रेस अपनी ही तीन-तेरह में लगी हुई है। उन्होंने साफ़ कहा कि अगर 10 जुलाई तक कांग्रेस कोई रुख़ स्पष्ट नहीं कर पाती है, तो बाक़ी पार्टियां अगले क़दम का ऐलान 11 जुलाई को कर देंगी। वैसे राजनीति का महाराष्ट्र मॉडल सामने आने के बाद अब चुनाव पूर्व और चुनाव पश्चात गठबंधन के प्रति निष्ठा को लेकर अनिश्चय का माहौल बन गया है, इसलिए कांग्रेस गठबंधन में शामिल नहीं भी हुई, तो बाद में अवसर आने पर गठबंधन में शामिल हो भी सकती है। जहां तक विपक्ष के मुख्यमंत्री पद के चेहरे का सवाल है, तो वह भी बाद में बदल दिया जाए, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि सियासत में अब नैतिकता की बात करना ही बेमानी है। फिर भी जीतन राम मांझी के मुताबिक़ महा-गठबंधन की तालमेल समिति ही मुख्यमंत्री के चेहरे के बारे में कोई फ़ैसला करेगी।
महा-हठ-बंधन तो नहीं बन जाएगा महा-गठ-बंधन?
जिस समय जीतन राम मांझी दिल्ली में महा-गठबंधन के बारे में मीडिया से बात कर रहे थे, उसी समय पटना के सदाक़त आश्रम में कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल बिहार में कांग्रेस की सम्मान वापसी को लेकर विचार मंथन कर रहे थे। गोहिल ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर ये समझने की कोशिश की कि बिहार में कांग्रेस की ज़मीनी हालत आख़िर है क्या? गोहिल कह चुके हैं कि महा-गठबंधन का नेता कौन होगा, ये सही समय और सबकी सहमति से तय किया जाएगा। साफ़ है कि कांग्रेस के मन में भी नेतृत्व करने का विचार है। हालांकि सहयोगी पार्टियों के रुख़ से साफ़ हो रहा है कि गोहिल के मन का विचार ज़मीन पर उतर पाना दूर की कौड़ी है। गोहिल ये भी कह चुके हैं कि बिहार में विचारधारा की लड़ाई है, इसमें किसी एक व्यक्ति को नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करना सही नहीं होगा। लेकिन आरजेडी दावा कर चुकी है कि समन्वय समिति की बैठक में तेजस्वी यादव के नाम पर सहमति बन जाएगी। इससे ये भी लग रहा है कि कांग्रेस यही चाहेगी कि बिना सीएम के चेहरे के ही चुनाव लड़ा जाए। मांझी और उपेंद्र सिंह कुशवाहा अपना नाम आगे करना चाहेंगे, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ, तो फिर वे भी बिना चेहरे चुनाव का ही समर्थन करेंगे, ऐसा लगता है। लेकिन सियासत में कब कौन महाबली बन जाए, कहा नहीं जा सकता। बहुत कम जनाधार वाले नेताओं को मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनते हम देख ही चुके हैं।
काम करेगा यशवंत सिन्हा का 5-बी का नारा?
उधर तीसरे मोर्चा का ऐलान कर पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा बिहार की यात्रा पर निकल चुके हैं। पटना में उन्होंने बाक़ायदा नारा दिया कि बिहार बदलो – बनाओ बेहतर बिहार यानी 5-बी। सिन्हा की राजनीति का स्वर्णकाल भारतीय जनता पार्टी में रहते बीता है। वे देश के विदेश और वित्त मंत्री रह चुके हैं। लेकिन राजनीति के मोदी युग में वे बीजेपी से किनारा कर एक तरह से राजनीति के मैदान में फ़्रीलॉन्स खिलाड़ी के तौर पर पसीना बहा रहे हैं। परिवार की राजनैतिक विरासत की उन्हें चिंता नहीं है। उनके बेटे जयंत सिन्हा एनडीए सरकार में अच्छी हैसियत में फिट हैं। अगले 10 दिन तक यशवंत सिन्हा बिहार यात्रा के पहले चरण में केंद्रीय बिहार के ज़िलों का दौरा करें। यात्रा में उनके साथ जहानाबाद से पूर्व सांसद अरुण कुमार और पूर्व मंत्री रेणु कुशवाहा भी नज़र आ रही हैं। सिन्हा का कहना है कि समान विचारधारा वाले लोग उनके मोर्चे में शामिल हो सकते हैं। हालांकि उन्होंने अभी ये साफ़ नहीं किया है कि वे महा-गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं या नहीं।
कोरोना भी बन रहा है चुनावी मुद्दा
बिहार पर इस बार भी मॉनसून मेहरबान है। पिछले साल यानी वर्ष 2019 में हम राजधानी पटना में बाढ़ के दुरूह हालात से दो-चार हो चुके हैं। पटनावासी इतने दुखी थे कि अगर तभी चुनाव होते, तो वे नीतीश सरकार को बाढ़ के ठहरे हुए पानी में डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ते। लेकिन लगता है इस बार सरकार ने व्यवस्था में थोड़ा सुधार कर लिया है। फिर भी इस बार भी अगर पानी पिछले साल की तरह बरसा या उससे भी ज्यादा बरसात हुई, तो सरकार के लिए मुसीबत बढ़ सकती है। दूसरी तरफ़ कोरोना बीमारी का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। जेडीयू ने इस क़ुदरती क़हर को भी चुनावी मुद्दा बना लिया है। तेजस्वी यादव कोरोना जांच के आंकड़ों को आधार बनाकर सरकार पर हमले कर रहे हैं। वे चुनौती दे रहे हैं कि अगर सरकारी आंकड़े सही निकले, तो वे राजनीति से संन्यास ले लेंगे। साफ़ है कि चुनाव का समय नज़दीक आते-आते विपक्ष और सरकार के बीच बयानों की जंग और तेज़ होती जाएगी।

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