कोविड-19 महामारी के महाप्रकोप के कारण देश में भारी संख्या में मजदूरों का अपने राज्य और घर की ओर पलायन हुआ। लॉक डाऊन के कारण लाखों की संख्या में मजदूरों का काम-धंधा बर्बाद हुआ फिर वो बेहाल हालत में पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े। हालांकि बाद में केंद्र और राज्य सरकारों ने मजदूर स्पेशल ट्रेनें भी चलाई पर मजदूरों के इस तरह के पलायन की स्थिति बेहद भयावह रही।
इन मजदूरों में कई लाख मजदूर बिहार के भी थे। जो काम-धंधे के सिलसिले में प्रदेश के बाहर कई राज्यों में वर्षों से रह रहे थे । चूंकि इस साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाला है, ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों के लौटने से इस चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?
अतुल गंगवार ने इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार रवि पाराशर, अनिता चौधरी और सोशल मीडिया एक्सपर्ट मनीष वत्स से चर्चा की है।
बिहार से मजदूरों एवं काम-धंधे के सिलसिले में लोगों का पलायन नया नहीं है। कई सालों से लाखों की तादाद में लोग बाहर जाते रहे हैं। इसका सबसे बड़ा सरकार द्वारा उद्योगों के विकास की दिशा में व्यापक कदम नहीं उठाना रहा है।
अब चूंकि लाखों की संख्या में मजदूर वापस आ गए हैं तो सरकार की चुनौती है इनके लिए उचित काम की तलाश करना। बिहार सरकार केंद्र की सहायता से इस दिशा में कार्यरत है। जिला स्तर पर लोगों की सूची तैयार की जा रही है ताकि लोगों को उनकी दक्षता के आधार पर रोजगार मुहैया कराया जा सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गरीब कल्याण रोजगार योजना की शुरुआत की है, मनरेगा की दैनिक मजदूरी राशि भी बढ़ाई गई है।
कुल मिलाकर सरकार इन मजदूरों को रोजगार देने की दिशा में लगी हुई है, हालांकि रिपोर्ट्स ये भी आ रहे हैं कि कई हजार मजदूर अपने काम पर लौटने भी लगे हैं। उन्हें उचित मजदूरी का वादा करके बाहर की कम्पिनियाँ उन्हें ले जाने का प्रयास तो कर रही है पर जिन परिस्थितियों में वो अपने घर लौटे हैं, उन्हें वापस ले जाना बहुत ही मुश्किल है।
कुल मिलाकर आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में मजदूरों का पलायन और रोजगार की उपलब्धता बड़े मुद्दे के रूप में उभरेंगे ।
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