बिहार विधानसभा 2020 का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, अनेक तरह की संभावनाओं का जन्म हो रहा है। दलों के आपसी गठबंधन का आधार क्या होगा ? किस गठबंधन में कौन सा दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा? क्या महागठबंधन अपने वास्तविक स्वरूप के साथ चुनाव मैदान में जाएगा ? क्या लोजपा एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ेगी ? ऐसे उथल-पुथल चल रहे हैं, जो बिहार में नए समीकरण की ओर इशारा कर रहे हैं।
ऐसे तमाम सवालों पर बिहार अपडेट ने वरिष्ठ पत्रकार रवि पराशर, अनिता चौधरी और सोशल मीडिया एक्सपर्ट मनीष वत्स के साथ खास चर्चा की।
बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद और एनडीए की प्रमुख सहयोगी लोजपा ने जहां कोविड-19 के बढ़े महाप्रकोप को देखते हुए चुनाव टालने की बात कही है, अगर वास्तव में चुनाव टलते हैं तो इससे विपक्ष को चुनाव तैयारियों के लिए ज्यादा समय मिलेगा और विपक्ष कोविड-19 मुद्दे पर सरकार की नाकामियों और बेहतर क्रियान्वयन नहीं करने पर हमलावर होगी, यही नहीं चुनाव टलने से बड़ा फायदा जदयू की प्रमुख सहयोगी भाजपा को भी मिल जाएगा ।
एक तरफ भाजपा का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के जरिए सत्ता की बागडोर सम्भाल लेगा और केंद्र सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में अपनी ताकत झोंक देगा।
एनडीए का एक दल लोजपा भी चुनाव टालने की बात कर रहा है, वहीं लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान के कल के एक ट्वीट की बात की जाए तो उसमें उन्होंने कहा है कि लोजपा ने 94 सीटें सत्यापित कर ली है और 149 सीटों पर जल्द ही सत्यापन का काम हो जाएगा, ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या चिराग पासवान कुछ और खिचड़ी पकाने के मूड में हैं या फिर वे सिर्फ दबाब की राजनीति कर रहे हैं ?
बात राजद और उसके गठबंधन की हो तो महागठबंधन में जीतन राम मांझी बार-बार कॉर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग को लेकर अल्टीमेटम दे रहे हैं पर लगता है राजद इस बार मांझी को लेकर ज्यादा सीरियस नहीं है और उनकी बजाय वाम दलों को तरजीह देने मूड में है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर चल रही खींचतान और गठबंधन में छोटे दलों द्वारा हो रही दबाब की राजनीति एक हद तक दोनों गठबंधन को अनिर्णय की स्थिति में खड़ा रखा है। अब देखना यह होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है।
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