बिहार चुनाव डायरी- 6 जुलाई-बिहार चुनाव में कांग्रेस क्या महा-गठबंधन का हिस्सा होगी?- रवि पाराशर


रवि पाराशर

आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अतीत से क्या कोई सबक़ लेगी? लगता है कि इस सवाल पर कांग्रेस के अंतर कोई अंतर्मंथन नहीं चल रहा है। केंद्रीय स्तर पर राहुल गांधी और दूसरे नेता बातचीत ज़रूर कर रहे हैं और बिहार में भी ज़मीनी स्तर पर कुछ हलचल तो ज़रूर दिखाई दे रही है, लेकिन चुनावी तैयारी के लिए कांग्रेस किसी ठोस रणनीति पर आगे बढ़ना शुरू कर चुकी हो, ऐसा लग नहीं रहा है। कथित महा-गठबंधन की शक्ल क्या होगी, ये भी अभी समझ में नहीं आ रहा है। आरजेडी ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का अपना दावेदार पहले ही घोषित कर रखा है, उधर जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को ये शायद ही मंज़ूर हो। इस बीच कांग्रेस ने बीजेपी की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी पर पासा फैंका है कि अगर चिराग़ पासवान उससे हाथ मिला लेते हैं, तो मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी को हरी झंडी दिखाई जा सकती है। कुल मिलाकर कांग्रेस अभी तक तय नहीं कर पाई है कि वो आरजेडी की गोद में बैठे या फिर महा-गठबंधन के दूसरे धड़े जीतन-कुशवाहा से नज़दीकियां ज़ाहिर करे। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। क्या ये नतीजे बरक़रार रह पाएंगे, इस प्रश्न का जवाब कांग्रेस नेता भी देने से हिचकते हैं। आरजेडी ने कांग्रेस को लेकर अपना रुख़ हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में ही ज़ाहिर कर दिया था। आरजेडी ने कांग्रेस से राज्यसभा की एक सीट देने का वादा किया था, लेकिन उस पर अमल नहीं किया। कांग्रेस के कई नेता इस पर मुखर होकर कोपभवन में भी गए, लेकिन मजबूरी में आरजेडी का साथ नहीं छोड़ पाए।
क्या जेडीयू लगाने वाला है कांग्रेस में भी सेंध?
बिहार के सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि जनता दल यूनाइटेड तेजस्वी के ख़ेमे में सेंध लगाने के बाद अब कांग्रेस के जर्जर क़िले में भी सेंध लगाने की तैयारी में है। चर्चा है कि पांच-छह कांग्रेस विधायक जेडीयू के संपर्क में हैं। जेडीयू ने इसके लिए कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं को आगे किया है और सर्जिकल स्ट्राइक का ज़िम्मा नीतीश सरकार के भवन निर्माण मंत्री डॉ. अशोक चौधरी को सौंपा गया है। डॉ. चौधरी कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष पद संभाल चुके हैं।
बीजेपी ने की डिजिटल रैली, कांग्रेस डिजिटल बैठक पर अटकी
बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बिहार में बाक़ायदा बड़ी डिजिटल रैली कर चुके हैं। उधर कांग्रेस केवल डिजिटल बैठकों तक ही सिमटी हुई है। राहुल गांधी ने हाल ही में के सी वेणुगोपाल, बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल और दूसरे नेतांओं के साथ बिहार में मामले में वर्चुअल मीटिंग की थी। तीन घंटे चली उस बैठक में राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह पार्टी के कुछ नेताओं पर ही पिल पड़े। उन्होंने बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल पर ही ढिलाई बरतने का आरोप लगा दिया। उन्होंने राहुल गांधी पर भी ये कह कर निशाना साधा कि वे आगे आएंगे, तभी बिहार में कुछ होगा। राहुल गांधी ने अपने नेताओं को नसीहत दी कि सीटों के बंटवारे को लेकर अभी से निर्णायक बातचीत करें। लेकिन जीतन-कुशवाहा की तरह महा-गठबंधन की त्रिकोण कांग्रेस अभी तक कोई ठोस पहल करती हुई नज़र नहीं आती। जनाधार के मामले में कमज़ोर स्थिति को भांपते हुए कांग्रेस ने हाल ही में सदस्यता बढ़ाने के लिए डिजिटल अभियान शुरू किया था। पार्टी कोशिश कर रही है कि चुनाव से पहले दूरदराज के इलाक़ों में अपनी पैठ बढ़ाने का काम पूरा कर ले। इस अभियान में कांग्रेस ने बटन दबाकर मात्र 30 सैकेंड में ही पार्टी की सदस्यता देने की व्यवस्था की है। कांग्रेस ने ग्राम पंचायत स्तर पर अध्यक्षों की नियुक्ति भी की है। पार्टी की नज़र कोरोना संकट की वजह से देश के दूसरे प्रदेशों से लौटे बिहार निवासी प्रवासी मज़दूरों पर भी है।
कांग्रेस से ख़फ़ा है आरजेडी
आरजेडी इस बात से भी कांग्रेस से ख़फ़ा होगी कि हाल ही में बिहार किसान कांग्रेस की तरफ़ से जारी किए गए पोस्टरों में कांग्रेस के 30 साल के काम की तुलना बिहार की नीतीश और केंद्र की एनडीए सरकारों के 30 साल के काम की। आरजेडी के 15 साल को पोस्ट में कोई तवज्जो नहीं दी गई। वैसे तो तेजस्वी यादव ख़ुद ही अपने माता-पिता के दौर की आरजेडी सरकारों के कार्यकाल में सामाजिक इंसाफ़ नहीं हो पाने का हवाला देकर बिहार की जनता से माफ़ी मांग चुके हैं, लेकिन बेटा किसी दूसरे द्वारा माता-पिता के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकता।

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